हँसना-मुस्कुराना भी एक कला है!

- जय शंकर

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दुनिया यही जानती है पैसा कमाने और लड़की घुमाने में ही कारीगरी की आवश्यकता पड़ती है, पर आप जानते हैं कि भोजन चबाने से लेकर बोलने-बतियाने और हँसने-मुस्कुराने तक में कला की उपस्थिति अनिवार्य है। नहीं समझे... देखिए एक आदमजात लॉलीपॉप को पूरी नफासत से चाटता-काटता है, इतनी कि दूसरे की इच्छा (खाने की!) जग जाए तो दूसरा उसी लॉलीपॉप को इतने वीभत्स तरीके से ‘झोंकत’ है कि सामने वाले को ‍वितृष्‍णा पैदा हो जाए... बोलने-बतियाने में निपुणता रखने वाले तो कहीं भी अपनी सल्तनत सजा सकता है।

मार्केटिंग से लेकर बाबागिरी तक, कहीं भी ये बड़ी आसानी से ‘फि’ हो सकते हैं। अब रही हँसने-मुस्कुराने की बात... तो यहाँ तो ऐसा है महाराज कि हँसना-मुस्कुराना भी सब में ‘सू’ नहीं करता। देखिए न किसी-किसी की सूरत ही ‘रोन’ होती है। यही इनके चेहरे का स्थायी भाव बन जाता है। उदाहरण के लिए आप गुजरे जमाने की विख्या‍त फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी का नाम ले सकते हैं। मुर्दनी उनके चेहरे पर बिलकुल वैसी ही फबती थी जैसे गंजे के सिर पर बादाम का तेल।

पर यह सौभाग्य भी (बाकी सौभाग्यों की तरह) सबके नसीब में नहीं होता। विरले ही ऐसी मनहूसियत से अपना सौंदर्य और अपनी पर्सनालिटी चमका पाते हैं। पर कुछ ऐसे भी महानुभाव है जिन्हें हँसते हुए देखना किसी उपलब्धि से कम नहीं है। बच्चन साहब, मनमोहन सिंह, रतन टाटा और वेंगसरकर उनमें प्रमुख हैं।
  कमाने और लड़की घुमाने में ही कारीगरी की आवश्यकता पड़ती है, पर आप जानते हैं कि भोजन चबाने से लेकर बोलने-बतियाने और हँसने-मुस्कुराने तक में कला की उपस्थिति अनिवार्य है। नहीं समझे... देखिए एक आदमजात लॉलीपॉप को पूरी नफासत से चाटता-काटता है।      


अब यह गहन शोध का विषय हो सकता है कि ये हँसते क्यूँ नहीं हैं। स्थितियाँ इनके अनुकूल नहीं होतीं या ये हँसी को अपने से दूर रखने में ही अपनी भलाई समझते हैं। इन्कम टैक्स या शायद प्रभु चावला जैसे पत्रकारों के सवाल से डरते हो जो उनके दिवंगत प्रमोद महाजन से पूछा था- आपके चेहरे पर यह निर्लज्ज हँसी क्यूँ बनी रहती है?

...वजह जो भी हो, पर इतना सच तो है ही कि न हँसने के अपने फायदे हैं... आपका गंभीर और इंटेन्स चेहरा देखकर कोई आपसे कुछ माँगने का साहस नहीं करेगा। साथ ही साथ आपकी इंटेन्सिटी से आपकी धाक भी जमी रहती है। लगे हाथ यह भी बताते चलें ‍आपको कि कुछ पेशे ऐसे भी हैं दुनिया में जहाँ हँसना-मुस्कुराने की कोई गुंजाइश ही नहीं रहती। बेस्ट (मुंबई में अहले सुबह से देर रात तक दुकानों और कार्यालयों में खटने वाले प्राणियों को ढोने वाली परिवहन प्रणाली‍) के कंडक्टरों और पुलिसवालों को हँसते देखना उतना ही दुर्लभ है जितना दो बूँद शहद से समुद्र के खारे जल को मीठा बनाना।

वैसे पुलिसवालों की हँसी से उतना ही, उसी परिणाम में खौफ पैदा होता है जितना कि कैटवॉक करने वाली नवयौवनाओं की मादक, मारक मुस्कान से। दुनिया कितनी अजीब है न! एक तरफ पुलिसवालों को सख्त रहने के पैसे देती है ‍तो दूसरी तरफ परिचारिकाओं को मुलायम रहने के। इनको हर हाल में मुस्कुराने के पैसे मिलते हैं तो पुलिसवालों को टफ दिखने के। पर, हास्यास्पद स्थितियों में भी अपनी हँसी को रोके रखना... किसी साधना से कम नहीं है।

बहरहाल, जिस तरह न हँसने के अपने फायदे हैं उसी तरह हँसने के भी अपने लाभ हैं। यकीन न हो तो सतत मुस्कुराते रहने वाली रानी मुखर्जी या गोविंदा से पूछ लीजिए। अपने दंत सौंदर्य के साथ अपने अधरों की मादकता को, यूँ ही बाँटते फिरना, क्या किसी यज्ञ से कम दिखता है आपको.... पर ठहरिए, आज के उपभोक्तावादी दौर में कौन फोकट में अपनी हँसी बाँटता फिरता है? कहीं कोलगेट जैसी कंपनियाँ इन्हें इसके लिए पैसे तो नहीं देतीं।

... अब यह जानकर तो आपको कोई फायदा होगा नहीं कि रानी या गोविंदा को उनकी मुस्कुराहट के पैसे मिलते हैं या नहीं। या मिलते हैं तो कितने मिलते हैं। अलबत्ता यह आपके फायदे की बात अवश्‍य हो सकती है कि हँसी को आकर्षक कैसे बनाया जाए.... आप गलत समझ गए। मैं यह नहीं कह रहा कि आपकी हँसी चित्ताकर्षक नहीं है। पर इसे और बेहतर, और धारदार तो बनाया ही जा सकता है।

तो सबसे पहले यह गाँठ बाँधिए कि बगैर किसी प्रयोजन के आप हँसते नहीं रहिएगा। इसका नुकसान हो सकता है। उदाहरण के लिए, इससे आपके कोलगेट के खर्चे में खासी बढ़ोतरी हो सक‍‍ती है। इतनी कि आपकी जेब कराहना शुरू कर दें... अब यह तो कोई बात हुई नहीं कि हँसें भी और अपने पी‍तवर्ण की दंतपंक्ति का प्रदर्शन भी करते चलें। आपका सहयोगी किसी उलझन और परेशानी में है और आप मुस्कुराते और हँसते चले जा रहे हैं.... कुछ अजीब नहीं लग रहा आपको। पर किसी के चेहरे से अनुमति माँगकर हँसना तो और भी विचित्र बात होगी।

बहरहाल, जब आप मुस्कुरा ही रहे हों तो क्यूँ न श्वेत दंतपंक्ति के साथ मुस्कुराएँ। सामने वाला आपकी मुस्कुराहट में अपना दर्द कुछ देर के लिए वैसे ही भूल जाएगा जिस तरह नायिका के काले घने बालों में नायक अपना दु:ख, अपनी पीड़ा भूल जाता है। बहरहाल, गंभीरता को हमेशा अपने चेहरे से चिपकाए रहिए। इससे होगा यह कि जब आप हँसेंगे तो ऐसा लगेगा गोया आप दुनिया पर एहसान करने के लिए हँस रहे हों। अपनी मुस्कुराहट, अपनी हँसी से भी कुछ बटोरने झपटने की लियाकत पैदा कीजिए।

दूसरे, आपकी मुस्कुराहट संतुलित और सधी हुई हो। सीमित और आकर्षक मुस्कान का स्वामी बनने का प्रयास कीजिए। कन्याएँ इस कला में सिद्ध होती हैं। वर्ना बार-बार होठों को रंगने में समय नष्ट होगा। इतना कि कोई चाहक-याचक खिन्न होकर दूसरी ओर देखना शुरू कर देगा। तीसरे, आपकी हँसी ‍आपको लंपट न सिद्ध कर दे, इसका विशेष ध्यान रखें।

कोई भी संवेदनशील आदमी को हँसते-मुस्कुराते देखा है आपने? चौथे, हँसिए, मुस्कुराइए पर आपकी हँसी, आपकी मुस्कुराहट बेलाग और बेलौस न हो, इसका ध्यान रखिए। यह न कि आपकी हँसी आपका सारा रहस्य, आपकी सारी तिकड़मबाजी सार्वजनिक कर दे। दूसरे शब्दों में आपकी हँसी शुष्क होनी चाहिए, किसी बच्चे की तरह निर्दोष नहीं। अत्यंत संक्षेप में यह समझिए कि आपकी मुस्कुराहट दिल से नहीं, दिमाग से निकले। छल-प्रपंच और कूट‍नीतियों से भरे हुए दिमाग से। आपकी मुस्कुराहट साफ और सफेद न हो, इससे षड्‍यंत्र की बू आनी चाहिए-

बेसबब मुस्कुरा रहा है चाँद
कोई साजिश छुपा रहा है चाँद

तो जनाब, हँसी दोधारी तलवार है। कई बार यह आपके काम बना सकती है तो कई बार... आपको गच्चा भी दे सकती है। इसलिए सबसे पहले आप यह पता लगाइए कि आपकी पर्सनालिटी में हँसी‍सूट करती है या नहीं। देखिए न शाहिद कपूर के चेहरे पर गुस्सा वैसे नहीं फबता जैसे नाना पाटेकर के चेहरे पर मुस्कुराहट। नाना के चेहरे पर मुस्कुराहट भी ऐसी लगती है जैसे वे किसी पर व्यंग्य कसने जा रहे हों।

...क्या सोच रहे हैं? मैं फिर कहता हूँ कि चलिए, किसी पर्सनालिटी चमकाने वाले दुकानदार से यह पता लगाइए कि हँसी आपमें सूट करती है या नहीं।

यदि आपको न हँसने की सलाह दी जाती है या आप अपने गंदे दाँतों के कारण न हँसने का मन बना चुके हैं तब सतत यह सिद्ध करते रहिए कि हँसने वाले लफंगे होते हैं और न हँसने वालों के कारण ही संसार में संवेदनशीलता और बौद्धिकता बची हुई है। जानते नहीं ‍है क्या कि किसी की टाँग खींचकर ही कोई हँसता है। स्वस्थ माहौल में हँसी जन्म ही नहीं लेती।

हँसने-मुस्कुराने वालों को तो कुछ बताने की आवश्यकता ही नहीं। वे तो बड़ी सहजता से इसे अपनी ऊर्जा और अपने आत्मविश्‍वास से जोड़ सकते हैं। अलमुख्तसर-मकसद सफलता प्राप्त करना है। जहाँ हँसी से आपको फायदा मिले वहाँ फट से हँस दीजिए। और जहाँ मुर्दनी सूरत से काम चले वहाँ मनहूसियत को ‍िसर पर बैठा लीजिए।