बसपा : दलितों की 'आवाज' ने दिलाया सत्ता का ताज

दलितों (बहुजन समाज) की राजनीति में यकीन रखने वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की स्थापना करिश्माई नेता कांशीराम ने 14 अप्रैल 1984 को की थी। इस पार्टी का चुनाव चिह्न हाथी और इसका मुख्य रूप से जनाधार उत्तर प्रदेश में है। इसकी वर्तमान मुखिया मायावती चार बार यूपी की मुख्‍यमंत्री रह चुकी हैं।
 
उत्तराखंड, मध्यप्रदेश, राजस्थान में भी बसपा का मामूली जनाधार है। बसपा की स्थापना से पहले कांशीराम ने दबे–कुचले लोगों का हाल जानने के लिए पूरे भारत की यात्रा की और फिर 1978 में 'बामसेफ' और फिर डीएस-4 नामक संगठन बनाया। अंत में उन्होंने बसपा नाम से राजनीतिक पार्टी बनाई, जिसके पहले अध्यक्ष स्वयं कांशीराम बने। 
 
सवर्ण समाज के विरोध को आधार बनाकर जन्मी बसपा ने बाद में सवर्ण समाज में भी पैठ बनाई है। मुस्लिमों को भी जोड़ा। वर्तमान में इसकी मुखिया सुश्री मायावती हैं। मायावती चार बार यूपी की मुख्‍यमंत्री रहीं। 1995, 1997, 2002 में वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाईं, जबकि चौथी बार 2007 से 2012 तक उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। 
बसपा की 13वीं लोकसभा में 14, चौदहवीं लोकसभा में 17, जबकि 15वीं लोकसभा में 21 सदस्य थे। हालांकि 2014 में हुए 16वीं लोकसभा के चुनाव में उनकी पार्टी यूपी में खाता भी नहीं खोल पाई। अगले लोकसभा चुनाव 2019 के लिए बसपा ने अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी से गठबंधन किया है।
 
आमतौर पर दलितों की राजनीति करने वाली मायावती ने 2007 के विधानसभा चुनाव में 'सोशल इंजीनियरिंग' का सहारा लिया। इसके तहत उन्होंने सतीश मिश्रा को पार्टी में अहम भूमिका दी और टिकट वितरण में भी सवर्णों (ब्राह्मण, राजपूति आदि) को भी स्थान दिया। इसके चलते बसपा को दलित वोटों के साथ सवर्ण वोट भी मिले और वह पूरे बहुमत के साथ सत्ता में आई।

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