भोपाल। लोकसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में पहले चरण की वोटिंग में अब बहुत ही कम वक्त शेष बचा है। सूबे की जिन 6 सीटों पर 29 अप्रैल को मतदान होगा, उसमें सबसे हाईप्रोफाइल सीट संस्कारधानी के तौर पर पहचानी जाने वाली सीट जबलपुर लोकसभा सीट है। जबलपुर में इस बार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह लगातार चौथी जीत की तलाश में हैं, तो कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्यसभा सांसद विवेक तनखा हिसाब बराबर की लड़ाई लड़ते हुए दिखाई दे रहे हैं।
2014 के लोकसभा चुनाव में भी राकेश सिंह और विवेक तनखा ही आमने-सामने थे जिसमें राकेश सिंह ने विवेक तनखा को 2 लाख से अधिक वोटों से पटखनी दे दी थी। 2016 में कांग्रेस ने मध्यप्रदेश से विवेक तनखा को राज्यसभा भेजकर उनका कद और बढ़ा दिया था। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के करीबी नेताओं में गिने जाने वाले विवेक तनखा को मुख्यमंत्री कमलनाथ का भी भरोसा प्राप्त है।
विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने महाकोशल की जिम्मेदारी विवेक तनखा को सौंपी थी और जबलपुर समेत महाकोशल में कांग्रेस की वापसी ने उनके सियासी कद में और इजाफा कर दिया, वहीं दूसरी भाजपा उम्मीदवार राकेश सिंह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के विश्वासपात्र माने जाते हैं और पहले लोकसभा में सचेतक और फिर मध्यप्रदेश भाजपा की कमान सौंपकर पार्टी नेतृत्व ने उन पर अपना भरोसा और जताया है।
किसका पलड़ा भारी- जबलपुर लोकसभा सीट भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई है। सीट को जीतने के लिए दोनों ही दलों के स्टार प्रचारकों ने एक तरह से जबलपुर में ही डेरा डाल दिया है। 1996 से भाजपा के कब्जे वाली सीट पर साल 2004 से राकेश सिंह लगातार 3 बार सांसद चुने जा चुके हैं और इस बार चौथी बार मैदान में हैं। संगठन पर अच्छी पकड़ रखने वाले राकेश सिंह को इस बार अपने घर में ही बगावत का सामना करना पड़ा है।
भारतीय जनता युवा मोर्चा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धीरज पटैरिया ने पार्टी से बगावत करते हुए कांग्रेस का हाथ थामकर विवेक तनखा को अपना समर्थन दे दिया, वहीं सियासी मैनेजमेंट के अच्छे खिलाड़ी समझे जाने वाले विवेक तनखा कई छोटे दलों के नेताओं को अपने साथ ले जाने में सफल हुए हैं।
कांग्रेस के बड़े नेता माने जाने वाले राज्यसभा सांसद विवेक तनखा के सामने सबसे बड़ी चुनौती कांग्रेस का कमजोर संगठन और राजनेता के तौर पर उनकी छवि का सीमित होना है। विवेक तनखा अपने चुनाव प्रचार में लोगों के बीच जबलपुर के विकास के मॉडल को बता रहे हैं, तो दूसरी राकेश सिंह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चेहरे और उनके कामकाज पर जनता के बीच में हैं।
वरिष्ठ पत्रकार का नजरिया- हाईप्रोफाइल सीट जबलपुर पर सभी की नजरें लगी हैं। मध्यप्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार और चुनावी विश्लेषक शरद द्विवेदी कहते हैं कि जबलपुर में इस बार एक नजदीकी मुकाबला देखने को मिल रहा है। पिछला चुनाव राकेश सिंह से हार चुके विवेक तनखा इस बार एक परिपक्व राजनेता के तौर पर चुनाव लड़ते नजर आ रहे हैं। पिछली हार से सबक लेते हुए विवेक तनखा ने अपनी चुनाव रणनीति में अहम बदलाव करते हुए ग्रामीण वोटरों वाली विधानसभा सीटों पर खासा फोकस किया है। विवेक तनखा अपने पूरे चुनावी कैंपेन में उनके बीच जाकर महाकोशल और जबलपुर के विकास का विजन समझा रहे हैं।
शरद कहते हैं कि विधानसभा चुनाव के बाद मध्यप्रदेश में विवेक तनखा और मुख्यमंत्री कमलनाथ की एक नई सियासी जोड़ी जो बनकर सामने आई है, उसका असर जबलपुर में देखने को मिल रहा है। पिछले दिनों जिस तरह मुख्यमंत्री कमलनाथ ने जबलपुर के विकास के लिए करोड़ों के विकास कार्यों को मंजूरी दी है, उसका फायदा कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में हो सकता है, वहीं शरद द्विवेदी वर्तमान सांसद राकेश सिंह के लिए कहते हैं कि 2014 की तुलना में उनके सामने इस बार हालात एकदम अलग हैं।
भाजपा उम्मीदवार राकेश सिंह के सामने सबसे बड़ी चुनौती उनका भाजपा प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जबलपुर को समय नहीं दे पाना और प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर जबलपुर के नेताओं और कार्यकर्ताओं की सभी अपेक्षाओं को पूरा नहीं कर पाने से उभरी एंटी इनकंबेंसी मानते हैं।
द्विवेदी कहते हैं कि किसी भी राजनेता का पार्टी में बड़े पद पर पहुंचकर सभी कार्यकर्ताओं को संतुष्ट कर पाना वास्तव में संभव नहीं हो पाता जिसका खामियाजा चुनाव में नेताओं को उठना पड़ता है, जैसे नेता प्रतिपक्ष रहते हुए कांग्रेस के दिग्गज नेता अजय सिंह का चुरहट से पिछला विधानसभा चुनाव हारना और उससे पहले 1998 में विक्रम वर्मा का भी नेता प्रतिपक्ष के तौर पर चुनाव हारना। ऐसे में राकेश सिंह के सामने इस बार कई चैलेंज हैं जिनसे निपटना आसान नहीं होगा।
सीट का सियासी समीकरण- 2014 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तनखा को 2 लाख से अधिक वोटों से पटखनी देने वाले राकेश सिंह को विधानसभा चुनाव में तगड़ा झटका लगा था। जबलपुर संसदीय क्षेत्र में आने वाली 8 विधानसभा सीटों में कांग्रेस ने 3 सीटें भाजपा से छीनते हुए 4 सीटों पर अपना कब्जा जमा लिया था, वहीं भाजपा अध्यक्ष को उनके घर में घेरने के लिए व्यूहरचना तैयार करते हुए मुख्यमंत्री कमलनाथ ने अपनी कैबिनेट में 2 मंत्री जबलपुर से बना दिए, जो अब लोकसभा चुनाव में भाजपा की लिए मुश्किल खड़ी कर रहे हैं।
क्या थी 2014 की तस्वीर- 2014 में जबलपुर संसदीय क्षेत्र में 58.55 फीसदी मतदान हुआ था जिसमें भाजपा उम्मीदवार राकेश सिंह को 5,64,609 और कांग्रेस उम्मीदवार विवेक तनखा को 3,55,970 वोट मिले थे। अगर जबलपुर लोकसभा सीट के इतिहास को देखें तो इसकी पहचान भाजपा के गढ़ के रूप में होती है। भाजपा 1996 से इस सीट पर लगातार अपना कब्जा करती आई है।