भारतीय राजनीतिक दल अपने चुनावी घोषणा पत्र में बड़े-बड़े वादे और घोषणाएं करते हैं। उनके घोषणा पत्र में किसी जाति विशेष, किसान, व्यापारी और मजदूरों के लिए प्रलोभन होते हैं, क्योंकि उन्हें उक्त वर्ग का वोट चाहिए होता है। लेकिन उनके घोषणा पत्र में वे संवेदनशील मुद्दे नहीं होते हैं जो कि वास्तविकता में मुद्दे हैं और जिन पर ध्यान दिए जाने की अत्यधिक जरूरत है। दरअसल, यह ऐसे मुद्दे हैं जो वोट नहीं दिलाते। आओ जानते हैं ऐसे ही 10 मुद्दों के बारे में।
1.रोड एक्सीडेंट्स- यह एक बहुत ही संवेदनशील और गंभीर मुद्दा है। बीमा कंपनियों के चलते किसी को भी किसी की जान की परवाह नहीं रह गए है। सरकार इस और गंभीरता से सोचती नहीं है। 2018 के सड़क दुर्घटना के आंकड़ों के अनुसार सालाना करीब 1.35 लाख लोग सड़क हादसों का शिकार होते हैं। देश में हर मिनट एक सड़क दुर्घटना होती है, हर चार मिनट में एक मौत हो जाती है।
जान गंवाने वालों में से 72 फीसदी लोग 15 से 44 साल की उम्र के होते हैं। किसी के जवान बेट गया तो किसी की बेटी। कई बच्चे अपने माता पिता को खो बैठे तो कई महिलाएं विधवा हो गई। कुछ तो ऐसे हैं जिनका पूरा परिवार ही सड़क दुर्घटना में अकाल मौत मर गया। भारत में दुनिया के कुल वाहनों का महज 2 फीसदी हिस्सा है लेकिन सड़क हादसों में इसका हिस्सा 12 फीसदी का है। कुल मिलाकर देश के रोड नेटवर्क को दुनिया में सबसे असुरक्षित करार दिया जा सकता है।
2.ह्यूमन ट्रैफिकिंग- ह्यूमन ट्रैफिकिंग अर्थात मानन तस्करी। इसी से जुड़े मुद्दे हैं- वैश्यावृत्ति, एक ही महिला को कई बार बेचना, मानव अंग बेचना और दूसरे मुल्कों में देश की लड़कियों को गुलामी के लिए बेच देना। इससे तस्कर लोग मोटी रकम कमाते हैं। इसके लिए कई राज्यों से बच्चे, किशोर और महिलाएं गायब होती जा रही हैं। मानव तस्करी देश के कई राज्यों में प्रमुख समस्या बनी हुई है। दिल्ली पुलिस और अन्य एजेंसियों के अनुमानित आंकड़े देखें तो दिल्ली-एनसीआर से हर दिन 50 बच्चे गायब हो रहे हैं।
मानव तस्करों का जाल बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, झारखंड, पंजाब व आंध्र प्रदेश सहित कई राज्यों में बड़ी संख्या में फैला है। हर 5-6 गांवों में तस्करों ने एजेंट छोड़ रखे हैं, जो गरीब तबके के युवक-युवतियों के परिजनों से मिलकर उन्हें दिल्ली में अच्छी नौकरी दिलाने का झांसा देते हैं और यहां उन्हें प्लेसमेंट एजेंसी मालिकों, पबों, होटलों, बार में नौकरी पर लगवा देते हैं। किशोरी और युवतियों को गोपनीय तरीके से देह व्यापार से जुड़े लोगों के हाथों बेच देते हैं।
साल 2017 में रोजाना दिल्ली से 18 बच्चे गायब हुए। उस पूरे साल में 6450 बच्चे लापता हुए। जिनमें 3915 लड़कियां व 2535 लड़के थे। जबकि 2016 में रोजाना 19 बच्चे लापता हुए। उस पूरे साल में 6921 बच्चे लापता हुए, जिनमें 3982 लड़कियां व 2939 लड़के थे। 2018 में 31 मार्च तक 17 पुरुष व 5 महिला तस्करों को गिरफ्तार कर उनके कब्जे से 142 लड़कों व 41 लड़कियों को मुक्त कराया गया। यह महज दिल्ली के आंकड़े हैं। संपूर्ण देश से लाखों लोग गायब हो रहे हैं जिसके बारे में राजनीतिक दल कोई गंभीर चिंतन नहीं करते हैं।
3.नकली खाद्य पदार्थ- मानव जीवन की तीन मूलभूत आवश्यकताएं हैं– अन्न, जल, वायु, वत्र और आवास। अन्न में फल, सब्जी और अन्य खाद्य पदार्थ जहां महंगे होते जा रहे हैं वहीं उनके शुद्ध और असली होने की कोई गारंटी नहीं। नकली खाने से तरह तरह की बीमारियां पैदा हो रही है। आजादी के 70 वर्ष बाद भी भारत इस मूलभूत समस्या को ही हल नहीं कर पाया। संपूर्ण देश में मिलावटखोरों की कालाबाजारी धड़ल्ले से जारी है, जिसके चलते देश की सेहत खराब हो गई है। बाजार में नकली या मिलावटी मिठाई, दूध और घी तो धड़ल्ले से बिक ही रहा है साथ ही डिब्बे में बंद अनाज, बेसन, दाल, चावल, तेल और अन्य खाद्य सामग्रियों के असली या मिलावटी नहीं होने की कोई गारंटी नहीं। एक अनुमानित आंकड़ों के अनुसार भारत में करीब 20 फीसद मौत मिलावटी खान-पान के कारण हो रही है।
4.प्राकृतिक संसाधनों का अनावश्यक दोहन- बिजली उत्पादन के लिए नदियों की अविरल धारा को रोक दिया गया है जिसके चलते हजारों दुर्लभ जल-जंतु अपना अस्तित्व खो बैठे हैं। करोड़ों हेक्टेयर भूमि के जंगल नष्ट हो गए हैं। पानी का व्यापार तेजी से बढ़ता जा रहा है और निश्चित ही एक दिन दूध से ज्यादा महंगा होगा पानी। नदियों और समुद्र से लगातार बहुतायत में रेत निकाली जा रही है। गिट्टी और सिमेंट के लिए हजारों पहाड़ों को काट दिया गया है जिससे जहां हवाओं का रुख बदला है वहीं कई घने जंगल नष्ट हो गए हैं। इस सबका परिणामय यह हुआ कि अब आसमान में पक्षियों की चहचहाट सुनाई नहीं देती।
मानव गतिविधियों के कारण ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभावों में तेजी से जलवायु परिवर्तन भी बदलने लगा है। अनेक पर्यावरणविदों व वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ग्लोबल वॉर्मिंग के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन निकट भविष्य में कई प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण बन जाएगा। वैसे भी भारत के पशु, पक्षी और पेड़ पौधे अभी से ही लुप्त होने लगे हैं जिसकी चिंता किसी को नहीं है।
5.नशे का व्यापार- शराब, स्मैक, अफीम, हेरोइन, तंबाकू, सिगरेट, भांग, चरस और गांजे का व्यापार भारत में कई वर्षों से जारी है। हालांकि पिछले कुछ वर्षों से सिगरेट, तंबाकू और शराब के व्यापार में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है। देश का युवा यदि नशे में डूब जाएगा तो फिर देश का भविष्य क्या होगा? भारत के सीमावर्ती राज्यों में ड्रग्स का व्यापार अपने चरम पर है। पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश, बिहार, पूर्वोत्तर राज्य और पश्चिम बंगाल के लोगों को कमजोर किया जा रहा है।
पूरी दुनिया में करीब 1 अरब स्मोकर्स हैं। WHO ने भारत जैसे अन्य सारे विकासशील देशों को आगाह किया कि तेजी से बढ़ रहे स्मोकर्स की संख्या को रोकने का प्रयत्न नहीं किया तो हालत बहुत खराब हो सकती है। सिगरेट पीने के मामले में भारत दुनिया में 7वें नंबर पर है। कच्ची शराब पीने से मरने वालों की खबरें तो आए दिन आती ही रहती हैं। हालांकि सरकार ने शहरों में अब अंग्रेजी शराब की दुकानें और देशी शराब के ठेके पहले की अपेक्षा कई गुना बढ़ा दिए हैं। आज से 15 साल पहले शराब की दुकानें शहरी आबादी से एक ओर हुआ करती थीं, लेकिन अब हर आधा किलोमीटर पर शराब की दुकानें खुल गई हैं।
शराब से सिर्फ राजस्व में बढ़ोतरी नहीं की जा रही, बल्कि खपत भी बढ़ाई जाती है। सरकार द्वारा शराबबंदी का दावा झूठा है। हालांकि केरल और गुजरात ने शराबबंदी कर रखी है, लेकिन इससे शराब बिक्री बंद नहीं होगी। यदि हम औसतन या अनुमान लगाएं तो 1 जिले में सालाना देशी शराब लगभग 15 लाख लीटर तक बिक जाती है। उसी तरह विदेशी शराब की बिक्री 5 लाख लीटर तक रहती है। भारत में लगभग 675 जिले हैं। अब आप अनुमान लगा सकते हैं कि शराब की कितनी खपत होती होगी। शराब से मर रहा है देश और सरकार को राजस्व की चिंता है। देश की लाश पर राजस्व इकट्ठा कर रही है सरकारें।
6.देह व्यापार-कुछ लोगों के अनुसार पूंजी के बाद स्त्री को समाज को संचालित करने वाली एक वस्तु माना गया है। जिस समाज की जितनी ज्यादा महिलाएं वेश्यालयों में होंगी वह उतना कमजोर होता जाएगा। यही कारण था कि गुलाम व्यवस्था में वेश्यालयों की संख्या बढ़ गई थी। हजारों की तादाद में महिलाओं को वेश्यालयों के हवाले कर दिया जाता था। गुलाम व्यवस्था में उनके मालिक वेश्याएं पालते थे। मुगलों के हरम में सैकड़ों औरतें रहती थीं। मुगलकाल के बाद जब अंग्रेजों ने भारत पर अधिकार किया तो इस धंधे का स्वरूप बदलने लगा। भारत को पूरी तरह से खत्म करने के कई उपाय किए गए। भारत के कई गांव और समाज इस व्यापार में सैकड़ों सालों से लगे हुए हैं। अब यह उनका पुश्तैनी धंधा बन गया है।
आधुनिक युग में देह व्यापार का तरीका और भी बदल गया है। पुराने वक्त के कोठों से निकलकर देह व्यापार का धंधा अब वेबसाइटों तक पहुंच गया है। यहां कॉलेज छात्राएं, मॉडल्स और टीवी व फिल्मों की नायिकाएं तक उपलब्ध कराने के दावे किए गए हैं। माना जाता है कि इस कारोबार में विदेशी लड़कियों के साथ मॉडल्स, कॉलेज गर्ल्स और बहुत जल्दी ऊंची छलांग लगाने की मध्यमवर्गीय महत्वाकांक्षी लड़कियों की संख्या भी बढ़ रही है।
देह व्यापार परंपरागत समाज, मुंबई के रेड लाइट या कोलकाता के सोनागाछी से निकलकर अब यह हाईप्रोफाइल लोगों का धंधा बन गया है। अब देह व्यापार आलीशान होटलों और बंगलों में चल रहा है। भारत के कुछ राज्यों के कुछ क्षेत्रों में आज भी देह व्यापार भले ही एक छोटी आबादी के लिए रोजी-रोटी का जरिया बना हुआ है लेकिन पिछले कुछ महीनों में जिस देह व्यापार के हाईप्रोफाइल मामले सामने आए हैं उससे यह बात तो साफ हो गई है कि देह व्यापार अब केवल मजबूरी न होकर धनवान बनने का एक हाईप्रोफाइल धंधा बन गया है। यह देश के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
कुछ वर्ष पूर्व आई सामाजिक संस्था दासरा की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 1 करोड़ 60 लाख महिलाएं देह व्यापार का शिकार मानी गई थीं। भारत में महिलाओं की तस्करी तेजी से बढ़ी है जिसमें 80 फीसदी महिलाओं को देह व्यापार के लिए बेचा जाता है। भारत की दासरा, ब्रिटेन की हमिंगबर्ड ट्रस्ट और जापान की कामोनोहाशी प्रोजेक्ट ने अपने अध्ययन में पाया कि भारत में ट्रेफिकिंग के जरिए देह व्यापार में उतारी गईं 40 फीसदी लड़कियां किशोर उम्र की हैं। 15 फीसदी लड़कियों की उम्र 15 साल से भी कम है।
ग्लोबल मार्च अगेंस्ट चाइल्ड लेबर की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देह व्यापार से मुक्त कराई गईं 60 फीसदी महिलाओं ने बताया कि उन्होंने नौकरी की तलाश में घर छोड़ा था लेकिन उन्हें वेश्यावृत्ति के दलदल में ढकेल दिया गया। 40 फीसदी ने बताया कि उन्हें शादी, प्यार और बेहतर जिंदगी का वादा करके या अपहरण करके इस धंधे में उतारा गया।
7.देश में बड़ रहे हैं दलाल- आजकल हर कहीं दलाल नजर आते हैं। जहां दलाल नहीं होना चाहिए वहां भी। इन दलालों के चलते देश में व्यवस्थाएं ठप हैं और लोगों में असंतोष फैला हुआ है। दलालों के कारण कई जगह असंवेदनशीलता की हदें पार हो गई हैं। दलालों के कारण ही देश में खाद्य वस्तुओं और प्रॉपर्टी के रेट आसमान पर हैं। लाखों प्रकार के दलाल आपको दिखाई दे जाएंगे। वायदा बाजार के दलाल, शेयर बाजार के दलाल और सरकारी विभागों के दलालों के बारे में तो सभी जानते हैं कि ये क्या करते हैं?
स्कूल या कॉलेज में एडमिशन के लिए तो दलाल हैं ही लेकिन आजकल अस्पतालों में मरीजों की भर्ती को बढ़ाने के लिए भी दलाल हैं। हालांकि ये नजर नहीं आते फिर भी ये काम करते हैं। ये दलाल मरीजों को कन्वींस करते हैं कि फलां-फलां अस्पताल अच्छा है और बहुत कम में आपका काम हो जाएगा। ऐसे में किसी व्यक्ति की किडनी खराब नहीं हो तब भी डायलिसिस करवा दिया जाता है।
8.शिक्षा का व्यवसायीकरण और सांप्रदायिकरण- मध्यकाल में किस तरह शिक्षा का धार्मिकीकरण किया गया और फिर अंग्रेज काल में किस तरह संस्कृत पाठशालाओं को बंद कर कॉन्वेंट स्कूल शुरू कर शिक्षा का व्यवसायीकरण किया गया? उक्त सभी प्रश्नों पर चर्चा छोड़ दें तो आज की शिक्षा के दुष्परिणाम पर चर्चा करेंगे तो ज्यादा उचित होगा।
कहते हैं कि जिस राष्ट्र में राष्ट्रीय शिक्षा का अभाव हो, वह राष्ट्र कभी शक्तिशाली, खुशहाल, सपन्न एवं सुरक्षित नहीं रहता, क्योंकि ऐसे राष्ट्र में इन सबका स्थान स्वार्थ ले लेता हैं। ऐसे राष्ट्र की स्थिति का विदेशी लोग फायदा उठाकर अपने विचार, भाषा, संस्कृति और प्रॉडक्ट को लादकर उस राष्ट्र को मानसिक तौर पर गुलाम बना लेते हैं। क्या भारत में यही हो रहा है? शिक्षा का व्यवसायीकरण एक चुनौतीभरा मुद्दा है लेकिन यह किसी राजनीतिक दल के घोषणापत्र का हिस्सा नहीं बनता है। शिक्षा में आरक्षण उससे भी बड़ा मुद्दा है और फर्जी परीक्षा देकर डॉक्टर बन जाना उससे भी बड़ा मुद्दा है।
अधिकतर वे लोग जो सफल हैं, उन्हें यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि वे भारतीय शिक्षण संस्थाओं में पढ़कर सफल नहीं हुए। उनकी सफलता के पीछे और भी कई कारण हैं। कई छात्र आजकल विदेशी स्कूलों में पढ़ रहे हैं तो यह भी शिक्षा के व्यवसायीकरण का एक वृहद हिस्सा है। छात्र का जीवन शुरू हो, उससे पहले ही उसे लाखों के कर्ज से लाद दिया जाता है। आज शिक्षा केवल धनाढ्य परिवारों के बच्चों की बपौती बनकर रह गई है जिसके चलते इसके दुष्परिणाम भी सामने आने लगे हैं।
दूसरा है शिक्षा का सांप्रदायिकरण। मदरसे तो पहले से ही चल ही रहे हैं और वे खुद को बदलना भी नहीं चाहते थे और न ही उनकी किसी गैरमुस्लिम को पढ़ाने में रुचि है। लेकिन क्रिश्चियन कम्युनिटी इस तरह नहीं सोचती, क्योंकि उनको तो संपूर्ण भारत को क्रिश्चियन मानसिकता में ढालना है। जब कॉन्वेंट का क्रेज समाप्त हुआ, तब देशभर में नए सिरे से क्रिश्चियनों ने स्कूल खोलना शुरू किए और आज देशभर में उनके सबसे ज्यादा स्कूल हैं। इसके एवज में हिन्दुओं ने भी सरस्वती शिक्षा केंद्र नाम से स्कूल शुरू किए। लेकिन इस सबका परिणाम क्या हुआ? हमने तीनों ही तरह के स्कूलों में किस तरह का भविष्य निर्माण किया?
सचमुच हमने इन स्कूलों में दाखिला करके बच्चों की आत्मा को मार दिया है। भारत के भविष्य को अंधकार में धकेलने का कार्य किया किया है। संविधान की धारा 29, 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदाय को अपने शैक्षिक संस्थान स्थापित करने का अधिकार दिया गया था। लेकिन इस धारा का इस प्रकार से दुरुपयोग होगा यह किसी ने सोचा नहीं था।
9.नकली दवाओं का कारोबार- देशभर के बाजारों में बड़ी कंपनी के नाम पर नकली दवाओं के कारोबार फल फूल रहा है। सरकार के पास इस पर नियंत्रण का कोई इलाज नहीं है। हाल ही में अमेरिका के फार्मास्युटिकल सिक्युरिटी इंस्टिट्यूट यानी पीएसआई ने एक सर्वेक्षण किया है जिस के अनुसार भारत नकली दवा के कारोबार में दुनिया में तीसरे स्थान पर है। पहले स्थान पर अमेरिका और उस के बाद चीन है। जबकि ब्रिटेन भारत के बाद चौथे स्थान पर है। वर्ष 2014 के इस सर्वेक्षण के अनुसार, अमेरिका में 319, चीन में 309, भारत में 239 तथा ब्रिटेन में 157 दवाएं नकली पाई गई हैं।
भारत में 8.4 फीसदी दवा नकली बिक रही है अथवा उन में गुणवत्ता नहीं होती है। नकली दवाओं के कारण दुनिया में हर साल लगभग 10 लाख लोगों की मौत हो रही है। इन दवाओं के इस्तेमाल से यदि मरीज बच जाता है तो उसे अन्य कई तरह की परेशानियां होनी शुरू हो जाती हैं। सर्वेक्षण के अनुसार नकली दवाओं की दुनिया में लगभग 90 अरब डॉलर का सालाना कारोबार है जो लगातार बढ़ रहा है। वर्ष 2014 के दौरान भारत में 2,35,000 डॉलर की नकली दवाएं पकड़ी गई थीं। इस के अलावा इस अवधि में 39,300 डॉलर की विटामिन, कैल्शियम आदि की नकली दवाएं पकड़ी गई थीं।
10.खतरे में है भारत की सीमाएं- पड़ोसी मुल्क भारत को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से निगलते जा रहे हैं। इसके लिए वे बकायदा नकली नोट बनाते हैं, अलगाववादी, उग्रवादी और नक्सली तैयार करते हैं और तस्करों की फौज को सपोट करते हैं। तमाम तरह की घुसपैठ कराने में उनकी सेना हर संभव मदद भी करती है। आज भारत में 3 करोड़ से ज्यादा बांग्लादेशी है। 40 लाख से ज्यादा रोहिंग्या है और इतने ही अन्य देश के नागरिक निवास कर रहे हैं। लाखों बांग्लादेशी, बर्मी, थाई और पाकिस्तानी सीमावर्ती इलाकों में भूमि दबाए बैठे हैं। खतरे में है भारत की सीमाएं लेकिन इसके प्रति राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारें गंभीरता से नहीं सोचती हैं।
भारत के 5 राज्यों पश्चिम बंगाल, मेघालय, मिजोरम, असम और त्रिपुरा की 4,095 किलोमीटर लंबी सीमा बांग्लादेश के साथ जुड़ी हुई है। बांग्लादेशी जमात ने सभी राज्यों में उग्रवाद फैलाने के लिए सैंकड़ों संगठनों का सपोट कर रखा है। अरुणाचल, सिक्किम, लेह-लद्दाख, कश्मीर और अक्साई चिन के एक बहुत बड़े भू-भाग पर चीन और पाकिस्तान का कब्जा है। आजादी के बाद से भारत लगातार सीमाओं पर मार खाता रहा है। शहीदों की लिस्ट बढ़ती जा रही है और सरकार संसद में बहस करने में लगी है। पूरा देश बहस और बयान में उलझा है लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं होती।