राजपरिवार की बहू एवं यहां की वर्तमान सांसद माला राज्य लक्ष्मी शाह तीसरी बार भाजपा के टिकट पर भाग्य आजमा रही हैं। उनकी टक्कर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष प्रीतम सिंह से है। सिंह उत्तरकाशी के रवाई जौनसार क्षेत्र से हैं और उस पूरे क्षेत्र में उनका अच्छा प्रभाव है लेकिन पिछले चुनावों में इस क्षेत्र में भी राजपरिवार दूसरों पर भारी पड़ा है।
टिहरी रियासत के आखिरी राजा मानवेंद्र शाह यहां से 8 बार चुनाव जीते थे। उनकी मां कमलेंदुमति शाह पहला आम चुनाव जीतकर यहां से लोकसभा में पहुंची थीं। इस सीट के लिए 2 बार उपचुनाव हुए हैं। कुल 18 बार हुए चुनावों में 11 बार राजपरिवार ने यहां से जीत हासिल की है। मानवेंद्र शाह ने 3 बार कांग्रेस के टिकट पर और 5 बार भाजपा के टिकट पर यहां से चुनाव जीते थे। क्षेत्र के मतदाताओं ने जहां 11 बार राजपरिवार को सरमाथे बिठाया वहीं 2 बार उन्हें हार का स्वाद भी चखाया।
2 दशक के राजनीतिक वनवास के बाद मानवेंद्र शाह 1991 में फिर चुनावी समर में कूदे और भाजपा के टिकट पर फिर संसद में पहुंच गए। उसके बाद जीवन के आखिरी दिन तक वे इस सीट से सांसद रहे। उनके निधन के बाद 2007 में उपचुनाव हुए तो उनके पुत्र मनुजेंद्र शाह अपने समय के दिग्गज नेता स्व. हेमवती नंदन बहुगुणा के पुत्र विजय बहुगुणा से चुनाव हार गए। टिहरी की जनता ने 2009 के आम चुनाव में बहुगुणा को ही चुनकर भेजा।
टिहरी-गढ़वाल लोकसभा क्षेत्र देहरादून, टिहरी गढ़वाल और उत्तरकाशी जिलों में फैला हुआ है। इस संसदीय क्षेत्र के तहत विधानसभा की 14 सीटें हैं जिनमें गंगोत्री, पुरोला, धनौल्टी, घनसाली, प्रतापनगर, टिहरी, चकराता, मसूरी, देहरादून कैंट, रायपुर, राजपुर रोड़, सहसपुर और विकासनगर शामिल हैं। वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में पुरोला और चकराता सीट पर कांग्रेस ने कब्जा किया था जबकि धनौल्टी सीट पर निर्दलीय ने और शेष 11 सीटों पर भाजपा ने कब्जा किया था।
इस क्षेत्र में 15 लाख से ज्यादा मतदाता हैं। पिछली लोकसभा के समय यहां कुल 13 लाख 52 हजार 845 मतदाता थे। इनमें से 7 लाख 12 हजार 39 पुरुष मतदाता और 6 लाख 40 हजार 806 महिला मतदाता थीं। वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक यहां की जनसंख्या 19 लाख 23 हजार 454 थी। आबादी का लगभग 62 फीसदी आबादी गांवों में रहती है जबकि 38 फीसदी शहरों में है। इस इलाके में अनुसूचित जाति का आंकड़ा 17.15 प्रतिशत है जबकि अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 5.8 प्रतिशत है।