लखनऊ। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVM) के इस्तेमाल से न सिर्फ मतदान और मतगणना में लगने वाला समय कम हुआ है, मतगणना के मौके पर आमतौर पर दिखाई देने वाला जोश एवं रोमांच भी सिमट-सा गया है। जरा अपनी यादों की किताब के पुराने पन्ने पलटिए और और करीब 2 दशक पहले तक के मतगणना स्थल के बाहर के नजारे याद कीजिए, जब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनें नहीं आई थीं और न ही चुनाव आयोग का इतना खौफ था।
उत्तरप्रदेश के निदेशक सूचना अधिकारी और मतपत्रों से मतगणना कराने का अनुभव रखने वाले आईएएस अधिकारी शिशिर बताते है कि ‘तब, पहले मतपेटियां खुलती थीं, मेजों पर बैलेट पेपर पलटे जाते थे, उनकी गडि्डयां बनती थीं और इसके बाद 1-1 बैलेट पेपर की गिनती होती थी।
राजनीतिक विश्लेषक राजेंद्र द्विवेदी ने कहा कि उन दिनों 3-3 दिन तक मतगणना का काम होता था और प्रत्येक राउंड के बाद कौनसा प्रत्याशी कितने वोट से आगे है, इसकी घोषणा होती थी और स्थिति हर कुछ घंटे में बदलती रहती थी। चुनाव परिणाम आने पर 'होली' के त्यौहार सा नजारा होता था।’
पहली बार मतदान करने वाले छात्र शिखर सिन्हा कहते है कि इसके बारे में हमें कोई जानकारी नहीं है, अपने घरवालों से सुना जरूर है कि चुनाव परिणाम आने में 2 से 3 दिन लगते थे। अब तो फटाफट का जमाना है। ईवीएम से समय बचता है और एक ही दिन में सारा हो हल्ला खत्म हो जाता है।