पटना साहिब सीट पर हैट्रिक लगाने उतरेगी भाजपा, शत्रुघ्न सिन्हा बढ़ा सकते हैं मुश्किलें
शुक्रवार, 15 मार्च 2019 (11:59 IST)
पटना। भारतीय जनता पार्टी के मजबूत गढ़ पटना साहिब संसदीय क्षेत्र में उसके सांसद शत्रुघ्न सिन्हा के बगावती तेवर और विपक्ष की सेंध लगाने की कोशिशों के बीच वह 17वें लोकसभा चुनाव में इस सीट पर लगातार तीसरी बार कब्जा बरकरार रखने के लिए उतरेगी।
बिहार के पटना जिले में वर्ष 2008 में हुए परिसीमन से पहले पटना लोकसभा सीट पर भाजपा को पहली सफलता प्रो. शैलेंद्रनाथ श्रीवास्तव ने 1989 में दिलाई। वर्ष 1998 और 1999 में हुए लोकसभा चुनाव में इस सीट से डॉ. चन्द्रेश्वर प्रसाद (सीपी) ठाकुर लगातार दो बार विजयी रहे।
वहीं परिसीमन के बाद 2009 और 2014 के चुनाव में पटना साहिब सीट पर अभिनेता से राजनेता बने शत्रुघ्न सिन्हा ने भाजपा का परचम लहराया लेकिन नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र में बनी भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार में मंत्री पद नहीं मिलने से बागी हुए सिन्हा लगातार अपने विवादित बयानों और गतिविधियों के कारण पूरे पांच साल चर्चा में रहे।
इस दौरान उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ न केवल विवादित बयान ही दिए बल्कि दबाव बनाने के लिए वे विरोधी दलों के नेताओं से नजदीकियां भी बढ़ाते दिखे। जब तक बिहार के मुख्यमंत्री एवं जनता दल यूनाइटेड (जदयू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार महागठबंधन के साथ रहे तब तक बिहारी बाबू (सिन्हा) कुमार से मुलाकात करते रहे।
जदयू का राजग से गठबंधन होते ही उन्होंने कुमार से दूरी बना ली और उनका झुकाव राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की तरफ हो गया। इसी तरह जब अटल बिहारी वाजपेयी मंत्रिमंडल में मंत्री पद नहीं मिला तो दबाव बनाने के लिए उन्होंने 'पति पत्नी और वो' नाटक का मंचन कर अपनी पार्टी और सहयोगियों पर कटाक्ष करना शुरू कर दिया था। उस समय उनका यह नुस्खा काम आया और उन्हें मंत्री पद मिल गया, लेकिन मोदी सरकार में उनकी सुनी नहीं गई और उन्होंने बगावती रुख अपना लिया।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा गर्म है कि सिन्हा भाजपा छोड़कर राष्ट्रीय जनता दल का दामन थाम सकते हैं। दबाव की इस राजनीति में यदि भाजपा ने नाराज होकर पटना साहिब सीट से सिन्हा को टिकट नहीं दिया और यदि वे महागठबंधन के टिकट पर चुनावी अखाड़े में उतरे तो इस संसदीय क्षेत्र में मुकाबला काफी दिलचस्प होगा क्योंकि यहां पर भाजपा को हमेशा राजद और कांग्रेस उम्मीदवार से कड़ी टक्कर मिलती रही है।
आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, बिहार की पटना लोकसभा सीट पर वर्ष 1989 के बाद वर्ष 1998 (12वीं लोकसभा) के चुनाव में भाजपा की वापसी हुई। चुनावी अखाड़े में भाजपा के डॉ. सीपी ठाकुर ने 52606 मतों के भारी अंतर से राजद के रामकृपाल यादव को पटखनी दी। डॉ. ठाकुर को जहां 331860 वोट मिले वहीं यादव को 279254 मतों से संतोष करना पड़ा। तेरहवें लोकसभा चुनाव (1999) में डॉ. ठाकुर ने फिर बाजी मारी और उन्हें 379370 मत मिले। उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी यादव 352478 मत प्राप्त कर 46892 वोट के अंतर से हार गए।
डॉ. ठाकुर 14वें लोकसभा चुनाव में पटना सीट पर हैट्रिक बनाने से चूक गए। पिछले दो चुनाव में उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी रहे राजद के रामकृपाल यादव ने 433853 मत हासिल कर उनके विजय रथ को रोक दिया। डॉ. ठाकुर को 395291 मतदाताओं ने पसंद किया और वे 38562 मतों के अंतर से पराजित हुए।
परिसीमन के बाद वर्ष 2004 में हुए 15वें लोकसभा चुनाव में पटना सीट पटना साहिब हो गई और इस बार भाजपा ने यहां से बिहारी बाबू को अपना उम्मीदवार बनाया। उन्होंने फिर से इस सीट पर भाजपा का परचम लहराया और अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी राजद के विजय कुमार को 166770 मतों से हराया। कांग्रेस के टिकट से एक और फ़िल्म अभिनेता शेखर सुमन ने भी दांव लगाया लेकिन महज 61308 वोट लाकर वे तीसरे स्थान पर रहे।
इसके बाद 15वें लोकसभा चुनाव (2014) में भाजपा ने एक बार फिर सिन्हा को अपना उम्मीदवार बनाया और उन्हें रिकॉर्ड 485905 वोट मिले। उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी भोजपुरी सिनेमा के सुपर स्टार और कांग्रेस प्रत्याशी कुणाल सिंह को हराया जिन्हें 220100 और तीसरे स्थान पर रहे जदयू उम्मीदवार गोपाल प्रसाद सिन्हा को 91024 वोट मिले।