प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार को मध्यप्रदेश में लोकसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रचार अभियान का शंखनाद करेंगे। आदिवासी बाहुल्य जिले झाबुआ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनजातीय सम्मेलन के जरिए आदिवासी वोटर्स के साधने की साधने की कोशिश करेंगे। ऐसे में सवाल यह है कि विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत हासिल करने के बाद भी आखिरी भाजपा को आदिवासी क्षेत्र झाबुआ से अपने चुनान प्रचार अभियान का शंखनाद करना पड़ रहा है।
आदिवासी वोटर्स भाजपा की सियासी मजबूर- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अगर मध्यप्रदेश में आदिवासी क्षेत्र झाबुआ से पार्टी के लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान का आगाज करने जा रहे है तो इसके कई सियासी मायने है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 29 सीटों में से 28 सीटों पर एकतरफा जीत हासिल की थी। वहीं अगर दिसंबर 2023 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो तो प्रदेश में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 विधानसभा सीटों पर भाजपा ने 24 सीटों पर जीत हासिल की है वहीं कांग्रेस ने 22 सीटों पर जीत हासिल की है। ऐसे में अगर विधानसभा चुनाव के कुल नतीजों को देखा जाए तो आदिवासी बाहुल्य सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मुकाबला लगभग बराबरी का नजर आता है।
झाबुआ से क्यों चुनावी अभियान का आगाज?- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आखिरी झाबुआ से क्यों भाजपा के चुनावी अभियान का आगाज कर रहे है, इस पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा कि आदिवासी भाई-बहन हमेशा से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन में रहे है। आदिवासी भाई बहनों के उत्थान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा सरकार ने काम किया है, चाहे पेसा एक्ट की बात हो या आदिवासी समाज को गौरव दिवस के माध्यम से सम्मान देने की बात हो, आदिवासी क्रांतिकारियों को देश के मान सम्मान और स्थान दिलाना हो। 2023 के विधानसभा चुनाव में भी आदिवासी भाई-बहनों का आशीर्वाद भाजपा को मिला है, इसलिए प्रधानमंत्री झाबुआ से चुनाव प्रचार अभियान का शंखनाद कर रहे है।
आदिवासी सीटों का सियासी समीकरण?-मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के बीते 20 साल के चुनावी इतिहास को देखे तो आदिवासी वोटर्स जिस दल के साथ गए उसकी सरकार बनी है। 2003 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 41 सीटों में से बीजेपी ने 37 सीटों पर कब्जा जमाया था। चुनाव में कांग्रेस केवल 2 सीटों पर सिमट गई थी। वहीं गोंडवाना गणतंत्र पार्टी ने 2 सीटें जीती थी।
इसके बाद 2008 के चुनाव में आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों की संख्या 41 से बढ़कर 47 हो गई। इस चुनाव में बीजेपी ने 29 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस ने 17 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं 2013 के इलेक्शन में आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी ने जीती 31 सीटें जीती थी। जबकि कांग्रेस के खाते में 15 सीटें आई थी।
वहीं 2018 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी सीटों के नतीजे काफी चौंकाने वाले रहे। आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से बीजेपी केवल 16 सीटें जीत सकी और कांग्रेस ने दोगुनी यानी 30 सीटें जीत ली। जबकि एक निर्दलीय के खाते में गई।
ऐसे में 2023 के विधानसभा चुनाव की तुलना 2018 के विधानसभा चुनाव से करे तो आदिवासी सीटों पर 2018 की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है। ऐसे में भाजपा अब लोकसभा चुनाव में आदिवासी वोटर्स पर अपनी पकड़ और मजबूत करना चाहती है।
आदिवासी वोटर्स को लुभाने की कोशिश-लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस दोनों की नजर आदिवासी वोटर्स पर है। कांग्रेस ने आदिवासी नेता उमंग सिंघार को नेता प्रतिपक्ष बनाकर आदिवासी वोटर्स को लुभाने की कोशिश की है। वहीं राहुल गांधी लगातार जातिगत जनगणना की मांग कर आदिवासी वोटर्स का रुख कांग्रेस की ओर मोड़ने की कोशिश में लगे है।
वहीं दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद भाजपा ने इस बार प्रदेश की सभी 29 लोकसभा सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में से छह लोकसभा क्षेत्र आदिवासी वर्ग (अनुसूचित जनजाति वर्ग- ST) के लिए रिजर्व हैं। अगर एसटी के लिए रिजर्व सीटों की बात करें तो शहडोल और बैतूल में भाजपा तो धार, खरगोन और मंडला लोकसभा क्षेत्र में आने वाली विधानसभा की सुरक्षित सीटों में कांग्रेस आगे रही है।
विधानसभा चुनाव के नतीजे को देखा जाए तो झाबुआ जिले की तीन विधानसभा सीटों में से 2 विधानसभा सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की है,वहीं एक सीट भाजपा के खाते में गई है। झाबुआ जिला रतलाम लोकसभा सीट के अंतर्गत आता है, जिस पर वर्तमान में भाजपा का कब्जा है। अगर रतलाम लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाली आठ विधानसभा सीटों के चुनावी नतीजों को देखे तो भाजपा ने 4 विधानसभा सीटों अलीराजपुर, पेटलावद, रतलाम ग्रामीण, रतलाम शहर पर जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस ने झाबुआ, थांदला और जोबट विधानसभा सीटों पर जीत हासिल की है वहीं सैलाना सीट पर भारतीय आदिवासी पार्टी पर जीत हासिल की है।
इसके साथ ही प्रदेश में एसटी वर्ग के आरक्षित 47 विधानसभा सीटों में से मालवा की 22 विधानसभा सीटें है जो आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित है। विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखे तो भाजपा ने इस बार 9 सीटों पर जीत हासिल की है, वहीं कांग्रेस ने 12 विधानसभा सीटों और एक सीट पर भारत आदिवासी पार्टी के उम्मीदवार ने जीत हासिल की है। ऐसे में अगर संघ का गढ़ कहे जाने वाले मालवा में अगर पार्टी को आदिवासियों के लिए आरक्षित 13 सीटों पर हार मिली है तो यह उसके लिए बड़ा झटका है। ऐसे में भाजपा ने अब लोकसभा चुनाव से पहले अपना पूरा फोकस आदिवासी वोटर्स पर कर दिया है।