Gorakhpur Parliamentary Seat: गोरखपुर खुद में एक ऐतिहासिक शहर है। नेपाल और चीन से पास होने के कारण इसका सामरिक महत्व भी है। नेपाल की तराई और उत्तरी बिहार से लगा सबसे बड़ा शहर होने के कारण यह करीब छह से सात करोड़ की आबादी का आर्थिक, व्यावसायिक और शैक्षणिक गतिविधियों का केंद्र भी है। जंगे आजादी में यहां हुआ चौरीचौरा कांड ने महात्मा गांधी को असहयोग आंदोलन वापस लेने को मजबूर किया।
पर इस शहर के लोग हैं बहुत मूडी। इस शहर ने 2001 में तमाम नामचीनों को हराकर मेयर के पद पर एक किन्नर (आशा देवी) को बिठा दिया था। जनता ही उसके लिए नारा लिखती थी। वही प्रचार भी करती थी। मेयर बनने के बाद कुछ दिनों तक वह रिक्शे पर ही लाल बत्ती लगाकर चलती थीं। पूर्वांचल के इस शहर ने दो मुख्यमंत्री भी दिए हैं। उत्तर प्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का ताल्लुक इसी शहर से है। वह गोरखपुर स्थित गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर भी हैं।
यह शहर ही नहीं पूर्वांचल की धार्मिक ही नहीं अध्यक्षीय पीठ भी है। उसका हर निर्णय यहां सर्वमान्य होता है। होली, दिवाली, दशहरा आदि के प्रमुख पर्वों के बारे में पीठ का निर्णय ही अंतिम होता है। 24 सितंबर 1985 से 24 जून 1988 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे स्वर्गीय बीर बहादुर सिंह का ताल्लुक भी शहर गोरखपुर से ही था।
टीएन सिंह मुख्यमंत्री रहते हुए मानीराम से चुनाव हार गए थे : दो मुख्यमंत्री देने वाला यह शहर कभी एक मुख्यमंत्री को हरा भी चुका है। ये मुख्यमंत्री थे टीएन सिंह (त्रिभुवन नारायण सिंह)। इनको शिकस्त मिली थी शहर के संसदीय सीट से लगे मानीराम विधानसभा क्षेत्र से। हालांकि परिसीमन के बाद अब यह सीट नहीं रही।
पृष्ठभूमि : बात अक्टूबर 1970 की है। प्रदेश में चौधरी चरण सिंह की सरकार थी। कांग्रेस, जनसंघ, स्वतंत्र पार्टी और भारतीय क्रांति दल ने मिलकर संयुक्त विकास दल बनाया। इनका बहुमत होने से सरकार अल्पमत में आ गई। लिहाजा चरण सिंह को त्यागपत्र देना पड़ा। कुछ दिनों के लिए प्रदेश में राष्ट्रपति शासन भी लगा। संयुक्त विकास दल ने उस समय टीएन सिंह को अपना नेता चुना।
18 अक्टूबर 1970 से चार अप्रैल 1971 तक मुख्यमंत्री रहे : टीएन सिंह 18 अक्टूबर 1970 से 4 अप्रैल 1971 तक मुख्यमंत्री रहे। जिस समय वे मुख्यमंत्री बने उस समय वे किसी भी सदन के सदस्य नहीं थे। ऐसा पहली बार हुआ था। लिहाजा इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। वहां से फैसला उनके पक्ष में हुआ।
सुप्रीमकोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि कोई भी मुख्यमंत्री हो सकता है। शर्त यह है कि पद ग्रहण करने के छह माह बाद उसे बहुमत साबित करना होगा। इसके बाद 1971 में मानीराम में उपचुनाव हुआ। इसमें तबके मुख्यमंत्री त्रिभुवन नारायण सिंह (टीएन सिंह) प्रत्याशी थे। पर वे कांग्रेस के उम्मीदवार रामकृष्ण द्विवेदी से चुनाव हार गए।
सीएम बनने के पहले दो बार चुने गए थे चंदौली से सांसद : हालांकि इसके पहले टीएन सिंह चंदौली संसदीय क्षेत्र से लोकसभा के पहले और दूसरे चुनाव में सांसद निर्वाचित हो चुके थे। इस दौरान उन्होंने समाजवाद के प्रवर्तक डा.राममनोहर लोहिया को भी शिकस्त दी थी।
राज्यसभा के मेंबर, केंद्र में मंत्री और राज्यपाल भी रहे थे टीएन सिंह : वे 1965 से 1970 तक वे राज्यसभा के सदस्य चुने गए। वह लाल बहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में केंद्रीय उद्योग एवं इस्पात मंत्री और पब्लिक एकाउंट कमेटी के सदस्य भी रहे थे। 1970 से लेकर 1981 तक वे बंगाल के महामहिम भी रहे थे।