...अब इन पर रहेगी निगाह

शुक्रवार, 15 मई 2009 (12:16 IST)
पंद्रहवीं लोकसभा की पाँच चरणों में हुई परीक्षा का नतीजा शनिवार को इलेक्ट्रानिक वोटिंग मशीनों से जब बाहर निकलना शुरू होगा तब देशभर के जीतने-हारने वाले उम्मीदवारों के साथ उन ऐसे प्रत्याशियों पर भी निगाह होगी जो सबसे ज्यादा अंतर या सबसे कम अंतर से जीत दर्ज करेगा।

पिछली लोकसभा में सबसे ज्यादा अंतर से सज्जन कुमार ने बाहरी दिल्ली से जीत दर्ज की थी तो सबसे कम अंतर से जदयू के पीपी कोया लक्षद्वीप से विजयी हुए थे। सज्जन कुमार इस बार चुनाव मैदान में नहीं हैं क्योंकि सिख विरोधी दंगों के विवाद को लेकर उनकी पार्टी कांग्रेस ने उन्हें मैदान में नहीं उतारा जबकि कोया से सिर्फ 71 मतों से परास्त होने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पीएम सईद का निधन हो चुका है।

भारतीय संसदीय इतिहास में सबसे कम मतों से जीतने या हारने का रिकॉर्ड हालाँकि 1971 में तमिलनाडु में बना था। राज्य की त्रिरूचेंदुर लोकसभा सीट पर द्रमुक के एमएस शिवस्वामी ने स्वतंत्र पार्टी के एम. मथियास को सिर्फ 26 वोटों से पराजित किया था। देखने वाली बात यह होगी कि इस बार यह कीर्तिमान टूटता है या फिर अपनी जगह पर बना रहता है।

सबसे ज्यादा मतों से जीतने का कीर्तिमान लोजपा नेता रामविलास पासवान ने भी 1977 में बिहार की हाजीपुर लोकसभा सीट से बनाया था जिसे बाद में पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिंहराव ने नंदयाल उपचुनाव में तोड़ दिया था। पासवान को तब उस सीट पर पड़े कुल मतों का 89.3 प्रतिशत वोट मिला था।

जानकारों के अनुसार देश में हुए दूसरे आम चुनाव में आंध्रप्रदेश की गोलकुंडा सीट का निर्णय मात्र 42 मतों के अंतर से हुआ था और कांग्रेस के एमएस मूर्ति ने जीत दर्ज की थी। यही इतिहास 1962 में दोहराया गया जब बाहरी मणिपुर सीट पर सोशलिस्ट पार्टी के रिशांग ने कांग्रेस के सिपो लारहा को 42 मतों से ही पराजित किया।

दूसरे ही आम चुनाव के दौरान तमिलनाडु की कड्डलोर सीट का निर्णय भी महज 59 वोटों के अंतर से हुआ और निर्दलीय टीडीएम नायडू ने कांग्रेस के के वीरन्न पडाल को पराजित किया।
पहले आम चुनाव के दौरान सबसे कम वोट के अंतर से कांग्रेस के उम्मीदवार ने पश्चिम बंगाल की कंटाई सीट जीती थी। बसंत एके दास ने 127 वोटों से किसान कामगार प्रजा पार्टी के पीएन बनर्जी को हराया था। इस चुनाव के दौरान दूसरे सबसे कम अंतर से मध्यप्रदेश की होशंगाबाद सीट पर निर्णय हुआ जहाँ 174 वोटों से कांग्रेस के सैयद अहमद ने निर्दलीय एचवी कामथ को परास्त किया।

कई दिग्गज नेताओं को भी अपने संसदीय जीवन में कई बार बहुत मामूली अंतर से जीत नसीब हो सकी थी। इनमें समाजवादी नेता राममनोहर लोहिया शामिल हैं जिन्हें 1967 में उत्तरप्रदेश की कन्नौज सीट पर सिर्फ 472 वोटों से जीत मिल पाई। उन्होंने संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर कांग्रेस के एसएन मिश्रा को पराजित किया था।

लंबे समय तक कांग्रेस के कोषाध्यक्ष रहे पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी भी कम अंतर से जीत दर्ज करने वाले नेताओं की कतार में शुमार हैं। उन्होंने 1967 के चुनाव में बिहार की कटिहार सीट पर प्रजा सोशलिस्ट पार्टी उम्मीदवार प्रिय गुप्ता को मात्र 973 मतों से हराया था।
कांग्रेस के नेता दिनेशसिंह ने गोंडा सीट 1957 में निर्दलीय श्यामबिहारी लाल को सिर्फ 898 वोटों से हराकर जीती थी।

पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि रे 1984 में उड़ीसा की जगतसिंहपुर सीट से कांग्रेस के लक्ष्मण मलिक के हाथों 958 मतों से पराजित हुए थे। पिछले आम चुनाव के दौरान सईद जहाँ सिर्फ 71 मतों से पराजित हुए थे वहीं कई अन्य ऐसे नेता भी थे जिनकी जीत का अंतर बहुत ज्यादा नहीं था, अतः ऐसी सीटों पर निगाह होना स्वाभाविक रहेगा।

वर्ष 2004 के चुनाव में कर्नाटक की रायचूर सीट पर कांग्रेस के ए. वेंकटेश नाइक ने सिर्फ 508 मतों से जीत हासिल की थी जबकि केरल की मुवत्तुपुझा सीट पर आईएफडीपी के पीसी थामस को 529 मतों से विजय मिल सकी थी।

उत्तरप्रदेश की चायल सुरक्षित सीट से सपा के शैलेंद्र कुमार बसपा उम्मीदवार से महज 630 मतों से आगे रहे थे जबकि दमन दीव में कांग्रेस के दयाभाई वल्लभभाई पटेल ने भाजपा प्रत्याशी को 607 वोटों से हराया था।

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