सिरफिरों के खिलाफ ब्रह्मास्त्र मताधिकार

संजय तेलं
बयान देकर मुकरना राजनेताओं का पुराना शगल है। पहले भी नेता बयान देकर मुकरते थे और आज भी मुकर रहे हैं। फर्क केवल यह आया है कि पूर्व में गलतबयानी के बावजूद नेता इसलिए बच निकलते थे क्योंकि उनके बयान का पुख्ता प्रमाण नहीं होता था।

आज परिस्थितियाँ बदल चुकी हैं। इधर नेता की जुबान फिसली उधर मूवी कैमरे में दृश्य और बयान कैद। अब लाख सफाई देते फिरो। एक फर्क और भी है पहले गिनती के नेता यह फार्मूला अपनाते थे और उन्हें सिरफिरे कहा जाता था अब ऐसे सिरफिरों की कतार लग गई है।

वैसे बयान देकर मुकरने की बात भी अब पुरानी होती जा रही है। नई बात यह है कि नेता बयान देकर कितनी देर में मुकरते हैं। कोई नेता मुकरने में बारह घंटे ले रहा है तो कोई छः घंटे में ही अपने कहे से मुकर रहा है।

लगता है अब होड़ इस बात की लगी है कि बयान देकर कितनी जल्दी मुकरा जाए। बयान के बुरे परिणामों के बावजूद नेता गलतबयानी से बाज नहीं आ रहे हैं। हकीकत तो यह है कि चर्चा में आने के लिए नेताओं ने बयानबाजी का यह नया फंडा अपनाया है।

बयान देते ही वे टीवी के सामने जम जाते हैं और अपने बयान की प्रतिक्रिया जानने की कोशिश करते हैं। जब देखते हैं कि बयान से आग तो लगी है किन्तु लपटें स्वयं पर भी आने वाली हैं तो मुकरने में जरा भी देर नहीं लगाते।

विडम्बना यह है कि राजनेताओं की चर्चा में आने की यह कुटिल चाल मतदाता समझ ही नहीं पा रहा है। वह हमेशा की तरह भोलेनाथ ही बना हुआ है।

इलेक्ट्रॉनिक चैनलों को दिन भर दर्शकों को बाँधने के लिए मसाला चाहिए जो उन्हें ये सिरफिरे नेता मुहैया करवा रहे हैं। बुद्धू बन रहा है दर्शक ...स्थिति विकट तो है किन्तु इस पर नियंत्रण मुश्किल नहीं है।

करना सिर्फ यह है कि सरफिरों की बातों पर कान देना बंद करें। जब प्रतिक्रिया ही नहीं होगी तो नेताओं को सस्ती बयानबाजी से सुर्खियाँ बटोरने की जगह कोई अन्य रास्ता ढूँढना होगा। फिर ऐसे नेताओं के खिलाफ ऊपर वाले ने एक ब्रह्मास्त्र भी मतदाता को दिया है, वह है मताधिकार। मतदान के दिन ऐसे नेताओं के खिलाफ मत देकर इन्हें सबक सिखाया जा सकता है।

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