ये आँसू नहीं दिल की जुबान हैं

- मानस

हेलो दोस्तो! कोई फूट-फूटकर रो रहा हो और दूसरा उसे देखकर खुश हो जाए और सलाह देने लगे कि वह जी भरकर रो ले तो निश्चय है, रोने वाले को गुस्सा आएगा। ऐसा कहते सुनकर दूसरों को भी वह व्यक्ति बेहद कठोर और निर्मम लगेगा। ऐसा लगने की हजार वजहें भी हैं। आज तक तो यही होता आया है कि जो हमारे अपने हैं वे यही आशीर्वाद देते आए हैं कि खुश और सुखी रहें। अब रोने की सलाह देने वाला जितना भी चीख-चीखकर कहे कि वह भी उतना ही शुभचिंतक है तो भला उसकी बातों पर कौन यकीन करेगा। पर आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रोना इतना भी बुरा नहीं है जितना हम सोचते हैं। तो प्रेमियों जब रोने का जी चाहे जी भरकर रो लें।

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यह सच है कि हजार कोशिशों के बावजूद जीवन में कितने ही ऐसे मौके आते हैं जब हमारी आँखें नम हुए बिना नहीं रहतीं। लाख कोशिशों के बावजूद हम फूट-फूटकर रो देते हैं। ऐसा देख सभी को अफसोस होता है। लोग उसे चुप कराने में जुट जाते हैं। दरअसल, प्रेम में बहने वाले आँसुओं को रोकने के बजाय बहने दिया जाना चाहिए। उन आँसुओं के हजार मायने होते हैं। फिल्म का गाना भी इन्हीं आँसुओं की अहमियत को बताते हुए है "ये आँसू मेरे दिल की जुबान हैं।" सच कई बार जो आप महसूस करते हैं और बयान करना चाहते हैं उनके लिए आज तक उपयुक्त शब्द नहीं बने हैं। ऐसे मौके पर आप के आँसू ही आपकी जुबान बन जाते हैं। भाषा की लाचारी को आँसू की लड़ियाँ बिना कुछ बोले कह देती हैं।

पर, हर प्यार करने वाला अपने साथी के आँसू को देखकर बेचैन हो जाता है। इसी भावना को व्यक्त करने के लिए एक प्यारा सा गीत है, "टुकड़े हैं मेरे दिल के ऐ यार तेरे आँसू बहने नहीं दूँगा मैं बेकार तेरे आँसू।" एक प्रेमी की इस भावना की कदर तो की जा सकती है पर बिल्कुल किसी को रोने ही नहीं दिया जाए, यह सही नहीं है क्योंकि रोना सेहत के लिए अच्छा है। जब रोना आए उसे जबरन रोका जाए तो इससे शरीर को हजार प्रकार के नुकसान पहुँच सकते हैं।

यह तो हर किसी को पता है कि रो लेने से दिल हल्का हो जाता है। दिल का गुबार धुल जाता है। कहते हैं मन के मैल को साफ करने का इससे बेहतर तरीका कोई नहीं है। सामने वाले को अपने किए पर पछतावा होता है और कठोर मन भी यह देखकर पसीज जाता है। ये तो थीं मनोवैज्ञानिक बातें, लेकिन वैज्ञानिकों ने भी रोने के फायदे गिनवाते हुए रोने को हरी झंडी दे दी है।

वैज्ञानिकों का कहना है कि आँसू में ९७ प्रतिशत तो पानी ही होता है बस जरा सा यानी ३ प्रतिशत ही अन्य मिश्रण होते हैं। जज्बात में ये आँसू दुख, तकलीफ, गुस्सा और उदासी को खत्म कर देते हैं। इतना ही नहीं, जितनी जल्दी इसका असर मनुष्य को राहत पहुँचाने में कारगर है, उतना न तो कोई दवाई कर सकती है और न ही काउंसिलिंग (बातचीत)। दुख, गुस्सा, उदासी में जो हानिकारक रसायन हमारे भीतर बनते हैं वे आँसू द्वारा निकल जाते हैं इसीलिए शरीर को सुकून मिलता है।

जब कभी भी रोना आए उसे रोकने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ऐसा करने पर हमारे जिस्म में नुकसानदेह रसायन जमा होते हैं तथा दिल पर बोझ पड़ता है। औरतें इस मामले में समझदार हैं वे रोकर अपनी उम्र बढ़ा लेती हैं और मर्द इसे अपना अहम से जोड़कर रोना दबा जाते हैं और दिल व ब्लडप्रेशर के मरीज बनते हैं। यदि लड़के भी अपना ईगो छोड़कर दुख और गम, गुस्सा में जी खोलकर रो लें तो कई सारी स्ट्रेस वाली बीमारियों से बच सकते हैं।
एक सर्वे में आया था कि ८५ प्रतिशत मर्द अपने जीवन में कभी नहीं रोए। अब इन ८५ प्रतिशत को जीवन में कभी दुख, गुस्सा, असहायपन का अहसास न हुआ हो, यह तो यकीन करना मुश्किल लगता है।

खुशी और गम में आँसू आना प्रकृति का नियम है। खुशी में केवल दो मिनट ही हम रो पाते हैं जबकि गम व दुख में सात मिनट तक लगातार रोना आ सकता है। और तो और. इस आंसू में इतने हानिकारक रसायन होते हैं कि वे कीटाणुओं को भी मार सकते हैं। अब ऐसे केमिकल को जबरन शरीर में कैद करके रखने से नुकसान तो हो ही सकता है।

लेकिन जब रोना आए तो रोते हुए यह जरूर सोचना चाहिए कि हमें रोना क्यों आ रहा है। इस परेशानी से निजात पाने का क्या तरीका निकल सकता है। रोते-रोते ही कोई हल भी निकल जाएगा और मन भी हलका हो जाएगा।

तो बहादुर मुंडे रोने में भी कोई कम बहादुरी नहीं है। समाज की इस सीख को ताक पर रख दें कि रोना कमजोरी की निशानी है बल्कि यह तो उल्टा आपको मजबूत शरीर, मन और दिल व दिमाग देगा।

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