नहीं है सच उगलवाने वाला

गुरुवार, 16 अप्रैल 2009 (11:45 IST)
प्रदेश की पुलिस के पास एक अदद अधिकारी नहीं है जो शातिर अपराधियों से सच उगलवा सके। इस काम के लिए पुलिस दूसरे राज्यों पर निर्भर है। असल में पुलिस के पास लाई डिटेक्टर मशीन (सच उगलवाने की मशीन) तो है लेकिन इसे संचालित करने वाला विशेषज्ञ नहीं है। लिहाजा मशीन चार साल से धूल खा रही है।

देना बैंक के एजीएम एस. सुंदराजन के दिनदहाड़े सनसनीखेज कत्ल का मामला हो या मेडिकल की छात्रा सोनल को सरेराह गोली मारने का। या फिर बीच रास्ते में मिर्ची झोंककर छः लाख की नकदी लूटने की दुस्साहसिक वारदात।

इस तरह के मामलों में पुलिस घटना के बाद तेजी से सक्रिय होती है। तमाम सबूत भी जुटाने की कोशिश होती है, लेकिन संदेह की सुई जब फरियादी या उसके नजदीकी गवाह पर आकर अटक जाती है, तो पूरे मामले में ढील पड़ जाती है। इसकी वजह पुलिस के पास खुद का 'सच' उगलवाने का पर्याप्त इंतजाम न होना है। इसके लिए उसे दिल्ली, बेंगलुरू या अहमदाबाद की एजेंसियों पर निर्भर रहना पड़ता है।

चौंकाने वाली बात तो यह है कि प्रदेश पुलिस 'सच उगलवाने' की मशीन चार साल पहले ही खरीद चुकी है। लेकिन प्रशिक्षण के अभाव में यह मशीन सीआईडी ब्रांच में ज्यों की त्यों रखी है। पुलिस को हर साल सच उगलवाने के नाम पर हजारों रुपए खर्च करना पड़ते हैं।

प्रशिक्षण पूरा : एआईजी सीआईडी अरविंद सक्सेना बताते हैं कि लाई डिटेक्टर के लिए वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. हर्ष शर्मा ने 6 माह का प्रशिक्षण हासिल कर लिया है। लाई डिटेक्टर मशीन सीआईडी ब्रांच में सुरक्षित रखी है। बाकी स्टॉफ का इंतजाम कर यह सुविधा शीघ्र मिलने लगेगी।

इस संबंध में वैज्ञानिक डॉ. हर्ष शर्मा का दावा है कि रीजनल एफएसएल में लाई डिटेक्टर एक माह में काम करने लगेगा। इसके लिए अब प्रदेश पुलिस को अन्य एजेंसियों की मदद नहीं लेना पड़ेगी।-आनंद दुबे

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