पिछले तीन दिनों से पन्ना टाइगर रिजर्व में की जा रही गिद्घों की गिनती में गत वर्ष के मुकाबले इस वर्ष 39 प्रतिशत अधिक गिद्घ पाए गए हैं। इस बार भी पीपीपी मॉडल से कराई जाने वाली गिद्घों की गणना में 7 राज्यों और एक केन्द्र शासित प्रदेश से 61 प्रतिभागियों ने भाग लिया था।
प्रतिभागियों के अनुसार रिजर्व का 'धुंधुआ सेहा' नामक स्थान गिद्धों के लिए स्वर्ग जैसा है। यहां आसमान में हर समय सौ से अधिक गिद्ध मंडराते रहते हैं। पिछले दो वर्षों से पन्ना टाइगर रिजर्व में फ्रेंड्स ऑफ पन्ना के बैनर तले गिद्धों की गिनती की अभियान चलाया जा रहा है।
110 ने कराया था पंजीयन : इस वर्ष 21, 22, 23 जनवरी को की गई गिद्घों की गिनती के लिए कुल 110 प्रतिभागियों ने पंजीयन कराया था। इनमें से 2 विदेशी प्रतिभागी भी थे। गिद्घों की गिनती के लिए चयनित किए गए 39 स्थानों में से 38 में गिद्धों की उपस्थिति पाई गई। देश के 7 प्रदेशों एवं एक केन्द्र शासित इलाके से आए 61 प्रतिभागियों ने रिजर्व में औसत रूप से 1510 गिद्ध पाए हैं जबकि गत वर्ष उनकी औसत संख्या 1079 ही पाई गई थी।
प्रवासी गिद्ध बढ़े : इस वर्ष प्रवासी इरेशियन ग्रिफिन वल्चर की उपस्थिति में आश्चर्यजनक वृद्घि नजर आई है। गत वर्ष के 37 के मुकाबले वे यहां 309 पाए गए हैं। इसी तरह जहां पिछली गिनती में हिमालयन ग्रिफिन (वल्चर 36) नजर आए थे वे इस बार 138 देखे गए हैं। रिजर्व में 502 लॉग वाइल्ड वल्चर देखे गए हैं। गत वर्ष वे 875 नजर आए थे।
रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर आर. श्रीनिवास मूर्ति का कहना है कि संभवतः ऐसा पहचानने की व्यवहारिक कठिनाई के कारण हो सकता है। क्योंकि लांग विल्ड वल्चर और हिमालयन ग्रिफ्रिंग वल्चर को आपस में पहचानने में कठिनाई होती है। संभवतः इसी वजह से इस बार 97 वल्चर पहचाने नहीं जा सके हैं और उन्हें अज्ञात गिद्घों की श्रेणी में रखा गया है।
रिजर्व में इजिप्सियन वल्चर और रेड हैडेड वल्चर की संख्या में भी उत्साहजनक वृद्घि देखी गई है। इजिप्सियन वल्चर गत वर्ष के 75 के मुकाबले 143 पाए गए हैं जबकि रेड हेडेड वल्चर इस वर्ष 107 नजर आए हैं जबकि पिछली गणना में वे केवल 51 पाए गए थे। रिजर्व प्रबंधन इस बात को लेकर उत्साहित है कि जहां गत वर्ष की गणना में औसतन 1079 गिद्घ ही पाए गए थे वहीं उनकी संख्या में 39 प्रतिशत की वृद्घि हुई है और इस बार कुल मिलाकर 1510 गिद्घ पाए गए हैं।
डाइक्लोफिनॉक है घातक : देश भर में गिद्धों की संख्या में चिंताजनक गिरावट नजर आ रही है। वैज्ञानिकों का मानना है कि पालतू पशुओं की चिकित्सा में उपयोग की जाने वाली दवा डाइक्लोफिनॉक गिद्धों के लिए खतरनाक साबित हो रही है। इस दवा के अंश मृत पशु के शरीर में रह जाते हैं और गिद्घों द्वारा ऐसे शवों को खाने पर यह दवा उनके लिए खतरनाक साबित होती है।
रिजर्व सूत्रों के अनुसार समीपस्थ ग्राम पटौरी में इस प्रतिबंधित दवा डाइक्लोफिनाक का मवेशियों की चिकित्सा के लिए अब भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जो चिंता की बात है।