कूनो नेशनल पार्क में एक और चीता की मौत
दक्षिण अफ्रीका से लाए गए नर चीता उदय की मौत
मौत की वजहों का खुलासा नहीं
सवालों के घेरे में कूनो चीता प्रोजेक्ट? कूनो से चीतों को शिफ्ट करने की गुहार
भोपाल। भारत में चीतों को फिर से बसाने के लिए मध्यप्रदेश के पालपुर कूनो अभ्यारण्य में शुरु किए गए चीता प्रोजेक्ट को एक बड़ा झटका लगा है। एक महीने के अंदर कूनो में दूसरे चीते की मौत से पूरा कूनो नेशनल पार्क प्रबंधन सवालों के घेरे में आ गया है। वहीं 70 साल बाद देश में चीतों को फिर से बसाने के लिए शुरु किया गया चीता प्रोजेक्ट सवालों के घेरे में है।
एक महीने में 2 चीतों की मौत- इसी साल 18 फरवरी दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 12 चीतों में से एक चीता उदय की रविवार को संदिग्ध परिस्थितियों में मौत हो गई। उदय की मौत किन कारणों से हुई यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है। बताया जा रहा है कि मौत से 24 घंटे पहले चीता उदय पूरी तरह स्वस्थ था लेकिन रविवार सुबह रूटीन निगराननी के दौरान उदय सुप्त अवस्था में पाया गया। इसके बाद उदय को ट्रैंकुलाइज कर बेहोश कर उसका इलाज शुरु किया गया लेकिन शाम 4 बजे इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। गौरतलब है कि उदय को बीते फरवरी महीने में दक्षिण अफ्रीका के वाटरबर्ग बायोस्पीयर रिजर्व से भारत लाया गया था।
पहले नामीबीया से लाई गई मादा चीता साशा और अब दक्षिण अफ्रीका से लाए गए नर चीता उदय की मौत के बाद पूरा चीता प्रोजेक्ट सवालों के घेरे में आ गया है। वर्तमान में पालपुर कूनो नेशनल पार्क में 18 चीते बचे है। जिनमें नमीबिया के लाए गए 7 चीता और दक्षिण अफ्रीका से लाए गए 11 चीता शामिल है।
क्या कूनो चीतों के लिए सुरक्षित?-दक्षिण अफ्रीका से लाए गए चीता उदय की मौत के बाद अब यह सवाल भी उठने लगा है कि क्या कूनो नेशनल पार्क चीतों के लिए सुरक्षित है। सवाल इसलिए भी उठा रहा है क्योंकि चीतों पर अधिकारी चौबीस घंटे निगरानी रखते है और लगातार उसके स्वास्थ्य को मॉनिटरिंग की जाती है। ऐसे में उदय की अचानक मौत भी कई सवालों के घेरे में है।
पिछले दिनों नमीबिया से लाया गया नर चीता ओबान कई बाहर कूनो नेशनल पार्क से बाहर निकल चुका है। पिछले दिनों ओबान कूनो से निकलकर ग्वालियर के माधव नेशनल पार्क के टाइगर एरिया में पहुंच गया था, जिसके बाद ओबान को टैंकुलाइज कर वापस कूनो नेशनल पार्क लया गया था। ओबान के बार-बार कूनो नेशनल पार्क से बाहर निकलने को वाइल्ड लाइफ एक्सपर्ट उसके स्वभाग से जोड़ते हुए अपनी टेरिटरी बनाने की कवायद के साथ भोजन की तलाश से जोड़ते है।
ऐसे में सवाल उठाता है कि क्या कूनो नेशनल पार्क की क्षमता से अधिक चीतों को तो नहीं रखा दिया गया है। पालपुर कूनो में चीता प्रोजेक्ट की पूरी कार्ययोजना तैयार करने वाले मध्यप्रदेश कैडर के 1961 बैच के आईएएस अफसर एमके रंजीत सिंह 'वेबदुनिया' से बातचीत में पहले ही पालपुर कूनो अभ्यारण्य में 20 चीतों को एक साथ रखने पर सवालिया निशान खड़ा कर चुके है। वह एक साथ 20 चीतों को रखने पर उनकी सुरक्षा पर भी सवाल उठाए थे।
वहीं भारत में चीता प्रोजेक्ट में अहम भूमिका निभाने वाले वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के पूर्व डीन डॉ. वायवी झाला ने वेबदुनिया से बातचीत में कहा था कि भारत में चीतों की बसाहट में कभी एक जगह ही सिर्फ चीतों को छोड़ने का कभी प्लान नहीं था और एक जगह चीता छोड़ने से चीता बस नहीं जाएंगे।
वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया देहरादून के पूर्व डीन डॉ. वायवी झाला ने 'वेबदुनिया' से बातचीत में साफ कहा था कि सब के सब चीते कूनों में छोड़ने की जगह 4-5 चीते अन्य स्थानों पर छोड़ने होंगे। चीतों को अन्य स्थानों पर छोड़ने से अच्छा रहेगा कि अगर चीतों में कोई बीमारी फैलती है तो सभी चीतों में समस्या नहीं होगी और सभी चीतों पर संकट नहीं आएगा। वायवी झाला ने कहा था कि कूनों में चीतों को लेकर सभी सावधानी बरती जा रही है लेकिन बीमारी नहीं होगी इसकी कोई गांरटी नहीं ले सकता। इसलिए चीतों को दो जगह बांटने जरूरी है।
कूनो से चीतों को शिफ्ट करने की गुहार-कूनो में एक महीने में दो चीतों के मौत के बाद उठ रहे सवालों पर पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान कहते हैं कि चीता उदय की मौत किन कारणों से हुई इसको पता किया जा रहा है। जेएस चौहान कहते हैं कि पहले साशा की मौत किडनी की बीमारी के कारण हुई थी जो उसे भारत में लाने से पहले से थी।
कूनो में चीतों की अधिक संख्या होने पर पीसीसीएफ वाइल्ड लाइफ जेएस चौहान कहते हैं कि उन्होंने केंद्र सरकार को पत्र लिख कर चीतों की शिफ्टिंग की बात कही है। वह कहते हैं कि यह बहुत बड़ा रिस्क होगा कि हम एक ही स्थान पर भी चीतों को छोड़े। चीता एक्शन प्लान में कई अन्य स्थानों को चीतों के लिए उपयुक्त माना गया है और चीतों का वहां पर शिफ्ट करने का निर्णय लेना चाहिए।