नक्सलवाद पीड़ित अंचल में स्थित तोकापाल ब्लॉक का बुरुंगपाल 2,000 की आबादी वाला गांव है, जहां 25 साल पहले आदिवासियों ने स्टील प्लांट के खिलाफ एक आंदोलन किया था और इसके बाद यहां भारत के संविधान वाले मंदिर की स्थापना हुई।
हालांकि इस मंदिर का कोई कमरा नहीं है और न ही इस पर छत है, लेकिन ग्रामीण इस स्थान का बेहद सम्मान करते हैं। 24 दिसंबर 1996 को तैयार हुआ यह मंदिर 6 फीट लंबे और 8 फीट चौड़े चबूतरे पर बना है। इस पर पीछे की ओर 6 फीट ऊंची और 10 फीट चौड़ी दीवार बनी हुई है।
इस दीवार पर भारतीय संविधान में अनुसूचित क्षेत्रों के लिए ग्रामसभा की शक्तियां और इससे संबंधित इबारतें लिखी हैं। स्थानीय लोगों में इस स्थान को लेकर गजब की आस्था है। गांव में त्योहार हो या कोई नया काम शुरू करना हो, पूरा गांव यहां एकत्र होता है। संविधान की कसमें खाई जाती हैं, इसके बाद एक राय होकर काम शुरू करते हैं। यह परंपरा करीब 25 साल से लगातार कायम है।
पंचायती राज अधिनियम लागू होने के बाद वर्ष 1998 में अविभाजित मध्यप्रदेश की पहली ग्रामसभा बुरुंगपाल में ही हुई थी। इसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी शामिल हुए थे। इस ग्रामसभा ने उस समय स्थानीय नौकरी में बाहरी लोगों का विरोध करते हुए शिक्षाकर्मियों की भर्ती निरस्त कर दी थी। इसके साथ ही ग्रामसभा में मुकुंद आयरन और एसएम डायकेम के स्टील प्लांट को भी निरस्त कर दिया गया था। इसके बाद से दोनों उद्योग यहां नहीं आ सके। (भाषा)