खजुराहो महोत्सव में तीसरा दिन परंपरा के साथ प्रयोग का रहा। नृत्य मन की उमंगों की भाषा है। ले की कोई ललित कविता। देह मन और हृदय की समग्रता में विराट के प्रति सच्ची प्रार्थना है नृत्य। खजुराहो ने हमारी नृत्य परंपरा को एक नया फलक दिया है।
कमोबेश नृत्य की सभी शास्त्रीय शैलियों को खजुराहो नृत्य समारोह में जगह मिलती है और दुनिया भर से आए कला रसिक इन नृत्यों की रचनाशीलता उनके प्रयोग और नवाचारों से दीदार करते हैं।
50वें खजुराहो समारोह के तीसरे दिन भी आज पारंपरिक चीजों के साथ प्रयोगधर्मिता देखने को मिली। साक्षी शर्मा से लेकर कस्तूरी पटवर्धन, विद्या प्रदीप और पद्मश्री पुरु दाधीचि तक सभी ने अपने तईं नए रंग भरने की कोशिश की। ये रंग थे बसंत के, होली के और जीवन की तमाम अनुभूतियों के।
तीसरे दिन बुधवार को समारोह की शुरुआत दिल्ली से तशरीफ लाई साक्षी शर्मा के एकल कथक नृत्य से हुई। जयपुर घराने से ताल्लुक रखने वाली साक्षी ने शिव स्तुति से अपने नृत्य का शुभारंभ किया।
दादरा में निबद्ध राग पीलू के सुरों में पगी राजस्थानी लोक रचना 'रंगीला शंभू गौरा ले पधारो प्यारो पावना' पर नृत्य भावों से साक्षी ने भक्ति रस का प्रवाह किया।
अगली प्रस्तुति में उन्होंने तीनताल पर शुद्ध नृत्य की प्रस्तुति दी। इसमें उन्होंने उपज से शुरू करके कुछ ठाठ, उठान, परनें, तिहाइयां आदि की प्रस्तुति दी। ठुमरी "लचक लचक चलत चाल" पर उन्होंने बड़े ही सहज ढंग से भाव पेश किए।
अंत में तींताल में कुछ बंदीशोकी प्रस्तुति के साथ एवं गत निकास के साथ पैरों का काम भी दिखाया। उनके साथ गायन में शमीउल्लाह खान, तबले पर प्रदीप पाठक, पखावज पर आशीष गंगानी, सारंगी पर गुलाम बारे एवं पढत पर विश्वदीप ने साथ दिया।
दूसरी प्रस्तुति में कस्तूरी पटनायक और संकल्प फाउंडेशन फॉर आर्ट एंड कल्चर के कलाकारों ने महारी और ओडिसी नृत्य की प्रस्तुति दी। उन्होंने अपने नृत्य में तीन प्रस्तुतियां दी।मंगलाचरण में उन्होंने रामाष्टकम स्त्रोत कृत्रत देव वंदनम पर नृत्य कर भक्ति रस घोल दिया। इस प्रस्तुति में कस्तूरी जी ने राम की महिमा पर अच्छे नृत भाव किए। इसके बाद समूह में शामिल कलाकारों ने पल्लवी यानी शुद्ध नृत्य पेश किया।
चरुकेशी पल्लवी में उन्होंने नृत्य की तकनीकी बारीकियों और ले गतियों के साथ आंगिक संचालन का प्रदर्शन किया। त्रिपुट ताल में निबद्ध इस रचना में संगीत स्वप्नेश्वर चक्रवर्ती का था।
अगली पेशकश में कस्तूरी जी ने अपनी छह साथियों के साथ शिव पंचाक्षर स्त्रोत - " नागेंद्र हराय त्रिलोचनाय" पर नृत्य कर शिव को साकार करने की कोशिश की।
इस प्रस्तुति में संगीत भुवनेश्वर मिश्रा एवं नृत्य संयोजन कस्तूरी जी का ही था। इसके पश्चात कस्तूरी जी ने बंशी तेजी हेला शंख चक्र हस्त गीत पर उड़ीसा का पारंपरिक महरी नृत्य पेश किया। नृत्य का समापन उन्होंने मणि विमाने गोविंदा रचना पर नृत्याभिनय से किया।
इन प्रस्तुतियों में अनिता राउत, सुनीता विस्वाल,शुभश्री प्रधान,सुनीमा प्रधान, स्वस्तिका प्रधान,और देवकी मलिक ने नृत्य में सहयोग किया। जबकि सत्यव्रत कथा ने गायन, अग्निमित्र बेहरा ने वायलिन, रामचन्द्र बेहरा ने मरदल और प्रकाश चंद्र मोहपात्रा ने सितार पर साथ दिया।
तीसरी प्रस्तुति में केरल की विद्या प्रदीप का लास्य से भरा मोहिनीअट्टम नृत्य भी खूब पसंद किया गया। उन्होंने चोलकेट्टू से अपने नृत्य का शुभारंभ किया । इसमे उन्होंने लास्यपूर्ण ढंग से मंगलाचरण किया। त्रिपुट ताल की यह रचना रसिकों को मुग्ध कर गई । इसके बाद उन्होंने पदवर्णम की प्रस्तुति दी।
आधिताल और राग मुखारी की यह रचना महाराजा स्वतिर्णाल द्वारा संयोजित की गई थी। नृत्य का समापन उन्होंने जयदेवकृत गीत गोविंद के पद से किया। इसमें उन्होंने राधा कृष्ण के पहले मिलन का बड़े ही भाव प्रवण ढंग से वर्णन किया। राग चरुकेशी और आदिताल की यह रचना अदभुत थी।
इस प्रस्तुति में नटवांगम पर गुरु नीना प्रसाद, गायन में विष्णु, वायलिन पर अन्नादुरै वी के एस, मृदंगम पर श्रीरंग कलामंडलम, और इडक्या पर अरूणराम कला मंडलम ने साथ दिया।
आज की सभा का समापन पद्मश्री पंडित पुरु दाधीच और उनके समूह के कथक नृत्य से हुआ। उन्होंने ऋतु गीतम की मनोहारी प्रस्तुति दी। इस प्रस्तुति में उन्होंने छह ऋतुओं का नृत्याभिनय से वर्णन किया। इस प्रस्तुति में गीत और नृत्य रचना पुरु दाधीच की थी जबकि संगीत कार्तिक रामन का था।
इस प्रस्तुति मे स्मिता विरारी ने गायन, अश्विनी ने वायलिन बांसुरी पर अनुपम वानखेड़े, और तबले पर कौशिक बसु ने साथ दिया। जबकि नृत्य में हर्षिता दाधीच, दमयंती भाटिया, आयुषी मिश्र, सरवैया जैसलिन, पूर्वा पांडे, मुस्कान, अक्षता पौराणिक, डॉ सुनील सुनकारा, अक्षोभ्य भारद्वाज, और कैलाश ने साथ दिया। वेशभूषा क्षमा मालवीय की थी और सूत्रधार स्वयं डॉ. पुरु दाधिच थे।