भुवनेश कोमकली ने कहा, गुरु के प्रति समर्पण से निखरेगी कला

Bhuvanesh Komkali in Khajuraho Dance Festival: प्रसिद्ध कालजयी गायक पंडित कुमार गंधर्व के पौत्र और खयाल गायक भुवनेश कोमकली का मानना है कि संगीत हो या दूसरी कलाएं, इनमें सीखने सिखाने का बड़ा महत्व है। इन विधाओं में गुरु-शिष्य परंपरा के महत्व को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि आज के दौर में ये सीखना भी जरूरी है कि सीखना कैसे है। उन्होंने कहा कि गुरु के सच्चे समर्पण से ही कला में निखार आता है। 
 
भुवनेश खजुराहो नृत्य महोत्सव के तहत आयोजित संवाद कार्यक्रम कलावार्ता में कला विद्यार्थियों से मुखातिब थे। उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत कला अकादमी जो खजुराहो नृत्य समारोह का आयोजन करती है वही कलाओं पर इस तरह के विमर्श का आयोजन भी करती है। इस विमर्श में वरिष्ठ कला समीक्षक और कला पत्रिका 'रंग संवाद' के संपादक विनय उपाध्याय और भुवनेश कोमकली के बीच काफी रोचक और ज्ञानवर्धक सवाल जवाब हुए। खास बात ये रही कि इस संवाद में रसिक श्रोता और विद्यार्थी भी जुड़े और उन्होंने भी महत्वपूर्ण सवाल किए। 
 
सम्पूर्ण जगत नादमय : चर्चा की शुरुआत करते हुए उपाध्याय ने कहा दुनिया में श्रेष्ठ रचा जा चुका है, श्रेष्ठ कहा जा चुका है, लेकिन उसका हम अनुकीर्तन इसलिए करते हैं कि हमे ऊर्जा मिलती है। उन्होंने कहा कि सम्पूर्ण जगत नादमय है। नाद की उपासना का नाम ही संगीत है। संगीत केवल सात स्वरों का ताना-बाना भर नहीं है, बल्कि ये सात स्वर भाव रस की जिस तरह अभिव्यक्ति करते हैं वह महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि पूरा संगीत ही मनुष्यता को संबोधित है। 
 
गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण जरूरी : इसी क्रम में उन्होंने भुवनेश से उनके बचपन, तालीम और पंडित कुमार गंधर्व जी के बारे में सवाल जवाब किए। भुवनेश ने बताया कि वे इसे अपना सौभाग्य मानते हैं कि वे कुमार जी के घर में पैदा हुए। संगीत की शिक्षा उन्हें बचपन से ही मिली। घर में और लोगों की तालीम हुई सो वे गुरु- शिष्य के नाते को बचपन से देख रहे हैं। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि जब तक गुरु के प्रति आपका पूर्ण और सच्चा समर्पण नहीं होगा, आपकी कला यात्रा निखर नहीं पाएगी। उन्होंने बताया की गुरु ये अच्छे से जानता है कि कौन दिखावा कर रहा है। अच्छा शिष्य बनने के लिए पात्र होना जरूरी है। 
 
कुमार जी के प्रयोग सराहे गए : उपाध्याय के सवालों के जवाब में भुवनेश ने बताया कि कुमार जी ही ऐसे पहले कलाकार थे, जिन्होंने घराने की परंपरा में बंधने के बजाय नवोन्मेषी संगीत का विचार रखा। उन्हें अपने समय में इस बात के लिए विरोध का सामना करना पड़ा, लेकिन उनके प्रयोग बाद में सराहे गए। दरअसल कुमार जी एक जागरूक कलाकार थे। वे कलाओं के अनत्र संबंधों के भी जानकार थे और प्रयोगधर्मिता के हिमायती थे। 
 
भुवनेश ने बताया कि कबीर को गाने के लिए कुमार जी ने कबीर के व्यक्तित्व का बहुत अध्ययन किया होगा, ऐसा मैं मानता हूं। कबीर को कई लोगों ने गाया है लेकिन कुमार जी ने उनके निर्गुण भाव और फक्कड़पन को जिंदा रखा, यही बात उन्हें दूसरों से जुदा करती है।
 
शुरू में उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के निदेशक जयंत माधव भीसे ने भुवनेश का पुष्प गुच्छ से स्वागत किया। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने भी अपनी जिज्ञासाओं को लेकर सवाल जवाब किए।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala
 

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