मध्यप्रदेश और राजस्थान में होने वाले विधानसभा चुनावों के ठीक पहले आईपीएस अफसर और मंदसौर के एसपी मनोज कुमार सिंह के एक प्रज़ेंटेशन से भूचाल आ गया है। लगता है आने वाले चुनाव में दोनों ही राज्यों में यह मुद्दा जोर पकड़ेगा। यदि इस प्रजेंटेशन के आधार पर एनडीपीएस कानून में संशोधन किया जाता है कि तो हजारों लोगों को राहत मिल सकती है।
मंदसौर के एसपी सिंह ने एक बड़ी पहल करते हुए राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा है कि डोडा चूरा को एनडीपीएस के कड़े प्रावधानों से बाहर किया जा सकता है। उन्होंने एक पॉवर पॉइंट प्रज़ेंटेशन भेजकर लिखा कि डोडा चूरा के लिए एनडीपीएस एक्ट में संशोधन किया जाए क्योंकि इसमें मॉर्फिन की मात्रा 0.2 प्रतिशत से कम है, जो कि एनडीपीएस एक्ट के तय प्रावधानों से कम है।
उन्होंने अपने इस प्रज़ेंटेशन में अफीम की उत्पत्ति से लेकर अब तक बने तमाम कानूनों का ज़िक्र किया है वहीं इसमें उन्होंने कोर्ट की कार्रवाइयों का भी दमदार हवाला देते हुए साबित किया है कि डोडा चूरा को एनडीपीएस के कड़े प्रावधानों से मुक्त किया जा सकता है। दुनिया में मालवा अफीम की सबसे वैध खेती वाला इलाका है।
मालवा और राजस्थान के मेवाड़ के साथ उत्तरप्रदेश के कुछ हिस्सों में अफीम की वैध खेती होती है। अफीम जिसमें से निकलती है उसे डोडा कहते हैं। यह वो खाली खोखा होता है जिस पर चीरा लगाकर अफीम निकाल ली जाती है। उसके बाद यह डोडा जब टुकड़े-टुकड़े हो जाता है तो यह डोडा चूरा कहलाता है। इसे लोग पानी में भिगोकर नशे के लिए सेवन करते हैं, जिसका अधिकांश उपयोग राजस्थान, पंजाब और हरियाणा राज्यों में होता है।
हजारों लोग बंद हैं जेलों में : इसकी दो साल पहले सरकारी खरीद होती थी और दुकानों पर बेचा जाता था लेकिन दो साल पहले केंद्र सरकार ने इसकी बिक्री बंद करते हुए इसको नष्ट करने के आदेश दे दिए, लेकिन डोडा चूरा का अवैध परिवहन भी होता था जिसमें जो लोग पकड़े जाते हैं। उन्हें एनडीपीएस एक्ट की धारा 8/18 के तहत गिरफ्तार किया जाता है। इस मामले में हजारों लोग एमपी, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब और दीगर राज्यों की जेलों में बंद हैं।
एनडीपीएस एक्ट के प्रावधान इतने कड़े हैं कि डोडा चूरा की तस्करी के मामले में 10 या 20 साल की सजा होती है, जिसमें सजा होने पर आरोपी का घर-परिवार पूरा तबाह हो जाता है। इस डोडा चूरा को एनडीपीएस एक्ट के कड़े प्रावधानों से बाहर करने के लिए आईपीएस अफसर मनोज कुमार सिंह ने 29 पेज का एक पॉवर पॉइंट प्रज़ेंटेशन राज्य सरकार को भेजा है।
मात्र 0.2 प्रतिशत मॉर्फिन : आईपीएस सिंह ने वेबदुनिया से ख़ास बातचीत में बताया कि एनडीपीएस एक्ट जब अस्तित्व में आया तब विदेशों में मॉर्फिन सीधे अफीम के डोडे से निकाली जाती थी यानी अफीम के पौधे को पूरा उखाड़कर मशीन में डाल दिया जाता है और उसमें से सीधे अफीम निकाल ली जाती है। वहां जो डोडा होता है उसमें भरपूर अफीम होती है। हमारे देश में आज भी अफीम की खेती चीरा पद्धति से होती है जिसमें अफीम के डोडे में 6 से 8 चीरे लगाकर उसमें से अफीम ली जाती है।
अफीम निकाले जाने के बाद यह डोडा खाली हो जाता है और इसमें मॉर्फिन की मात्रा एनडीपीएस एक्ट के तय प्रावधानों यानी 0.2 परसेंट से कम होती है। इसलिए इसको इस एक्ट के कड़े प्रावधानों से बाहर किया जा सकता है। सिंह ने कहा कि मैंने एक पॉवर पॉइंट प्रज़ेंटेशन सरकार को भेजा है जिसमें अफीम की उत्पत्ति से लेकर खेती के तरीकों और कानून का हवाला दिया है।
उन्होंने बताया कि डोडाचूरा से अफीम निकालने की प्रक्रिया के संबंध में हेराल्ड एडवर्ड अन्नेट कृषि महाविद्यालय कानपुर उत्तरप्रदेश ने 21 जुलाई 1920 को एक लेख लिखा है, जिसमें उन्होंने यह बताया कि अफीम के डोडा में चीरा लगाने की प्रक्रिया में मार्फिन की मात्रा उत्तरोत्तर कम होती जाती है, जिसका उक्त लेख के पृष्ठ क्र. 620 पर दर्ज है। इसमें बताया गया है कि कास्तकार अफीम के डोडे में 6 बार चीरा लगाकर डोडे से पूरी अफीम निकाल ली जाती है तथा डोडे में अफीम की मात्रा नहीं बचती है। इसी प्रकार अफीम डोडा में चीरा लगाने एंव मार्फिन निकालने की प्रक्रिया का उल्लेख पृष्ठ 621 पर दर्ज है।
इस पॉवर पॉइंट प्रज़ेंटेशन में उन्होंने लिखा कि भारत सरकार द्वारा जब्त मादक पदार्थों अथवा राजसात किए जाने वाले मादक पदार्थ की मात्रा एवं उनमें मार्फिन की शुद्धता के प्रतिशत के आधार पर पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को पुरस्कार दिया जाता है, जबकि डोडाचूरा के जब्त प्रकरणों में पुरस्कार दिए जाने का प्रावधान नहीं है क्योंकि डोडाचूरा में मार्फिन का प्रतिशत नहीं होता है।
भारत सरकार द्वारा एनडीपीएस एक्ट में संशोधन कर अफीम की खेती तैयार होने पर डोडे में चीरा लगाने की प्रक्रिया समाप्त कर प्रच्छालन रासायनिक प्रक्रिया से मार्फिन निकालने की पद्धति अपनाई जाना चाहिए। एनडीपीएस एक्ट में संशोधन के पश्चात डोडा चूरा के प्रकरणों का ट्रायल सेशन न्यायालय से हटाकर अधीनस्थ न्यायालय में कराया जाना उचित होगा। एनडीपीएस एक्ट की धारा 2 (14) में स्वापक औषधि नारकोटिक्स ड्रग्स की परिभाषा में पापीस्ट्रा सम्मिलित किया गया है। इस परिभाषा से पापीस्ट्रा को हटाया जाना चाहिए।
क्या कहता है एक्ट : जिस प्रकार केनेबिस हैप की परिभाषा में भांग को सम्मिलित नहीं किया गया है, उसी प्रकार नारकोटिक्स की परिभाषा से पॉपीस्ट्रा को हटाया जा सकता है। एनडीपीएस एक्ट में ही मादक औषधि अथवा खतरनाक ड्रग्स के संबंध में विशिष्ट प्रावधान को प्रावधानित कर उसके अंतर्गत पॉपीस्ट्रा को रखा जा सकता है।
इस प्रस्ताव में बताया गया कि जो कोई इस अधिनियम के प्रावधान या अधिनियम के अधीन बनाए गए किसी नियम या निकाले गए किसी आदेश या अनुज्ञप्ति की शर्त के उल्लंघन में पॉपीस्ट्रा/खतरनाक औषधि/मादक औषधि का उत्पादन, कब्जा, परिवहन, अंतरराज्यीय आयात अथवा निर्यात विक्रय, क्रय, उपयोग करेगा या फिर उसका भंडारण करेगा तो वह उपधारा 2 के अधीन रहते हुए ऐसे अपराध के लिए कारावास से जिसकी अवधि 1 वर्ष तक हो सकेगी और जुर्माना जो कि पांच हजार रुपए से कम का नही होगा, किंतु जो 25 हजार तक हो सकेगा दंडनीय होगा। उपधारा 2, उपधारा 1 के अंतर्गत आने वाले किसी अपराध के लिए दोषी ठहराया जाए तथा अपराध का पता लगाते समय या उसके दौरान पाए गए पॉपीस्ट्रा/खतरनाक औषधि/मादक औषधि की मात्रा 50 किलोग्राम से अधिक हो तो वह कारावास जिसकी अवधि 1 वर्ष से कम नहीं होगी, किन्तु जो 3 वर्ष की हो सकेगी तथा जुर्माना 50 हजार रुपए से कम नहीं होगा किन्तु एक लाख रुपए तक हो सकेगा। पूर्व में 1871 में ओपियम एक्ट लागू था, जिसमें अधिकतम 2 वर्ष तक की सजा का प्रावधान था। उक्त अधिनियम के तहत डोडाचूरा को रखना उचित होगा।
इस पूरे मामले के सामने आने के बाद मालवा की राजनीति गरमा चुकी है। पूर्व जिला कांग्रेस पदाधिकारी और मनवाधिकारों के मामले उठाने वाले सुरेंद्र सेठी ने कहा की आईपीएस सिंह को अपना प्रज़ेंटेशन संसद की स्टेंडिंग कमेटी को देना चाहिए। वहीं प्रदेश कांग्रेस सचिव उमरावसिंह गुर्जर ने कहा कि प्रदेश में और देश में भाजपा की सरकार है। ऐसे में आईपीएस अफसर के इस प्रस्ताव के बाद डोडा चूरा में बंद किसानों को फौरन जेल से रिहाई मिलनी चाहिए और उन्हें सरकार हर्जाना भी दे।