इंदौर। इंदौर की समर्पित पर्यावरणविद् पद्मश्री डॉ. श्रीमती जनक पलटा मगिलिगन के समूह ने मिलकर जिला कलेक्टर को एक ज्ञापन सौंपा। मगिलिगन, डॉ. ओ.पी. जोशी, डॉ. जयश्री सिक्का, श्रीश्याम सुंदर यादव, डॉ. दिलीप वागेला, अम्बरीश केला, श्रीराजेंद्र सिंह ने जिला कलेक्टर इंदौर श्री आशीष सिंह और संभागीय आयुक्त श्री दीपक सिंह से मुलाकात की और इंदौर के पेड़ों और पानी के संरक्षण के लिए एक ज्ञापन दिया। जिला कलेक्टर ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी, इन प्राकृतिक वनों को बचाने और इंदौर के मास्टर प्लान में सिटी फॉरेस्ट को शामिल करके और चिह्नित करके इंदौर के भविष्य के लिए इन्हें और विकसित करने का आश्वासन दिया। संभागीय आयुक्त ने यह भी आश्वासन दिया कि सभी अमूल्य प्राकृतिक वनों और जल निकायों को बचाना उनकी प्राथमिकता होगी और पर्यावरणविदों को उनके समर्थन और योगदान के लिए धन्यवाद दिया।
विषय: इंदौर शहर में बंद कपड़ा मिलों के परिसर में स्थित पेड़ों और जल स्रोतों का संरक्षण।
पिछले कुछ वर्षों में इंदौर शहर के पर्यावरण की स्थिति बेहद चिंताजनक होती जा रही है जो मुख्यतः वायु गुणवत्ता, हरित आवरण और जल संसाधनों की बिगड़ती स्थिति के कारण है। वर्तमान में शहरी क्षेत्रों का हरित आवरण घटकर लगभग 9 प्रतिशत तक रह गया है। 2023 में जारी ग्रीन सिटी इंडेक्स भी 9 ही रहा था। एक अन्य अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि शहर का 91% क्षेत्र ग्रे है और मात्र 9% हरा है। पेड़ अपने लंबे जीवन काल में पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
कुछ महीने पहले स्मार्ट सिटी ऑफिस ने 26 वार्डों में करीब 5 लाख पेड़ों की गिनती की थी और माना गया कि 85 वार्डों में कुल 10 लाख पेड़ हो सकते हैं। आईआईटी, इंदौर के एक अध्ययन में यह पाया है कि शहर में 9 से 10 लाख पेड़ हैं, जिनमें से 3 लाख स्वदेशी हैं। अध्ययन में यह भी संकेत दिया गया है कि पिछले 5 वर्षों में विभिन्न निर्माण कार्यों के लिए 1.5 लाख पेड़ काटे गए। शहर में बगीचों और हरित पट्टियों की हालत अच्छी नहीं है और उनमें से अधिकांश अतिक्रमण की चपेट में हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, इंदौर की नगर निगम सीमा में 1700 किलोमीटर लंबी सड़कों के दोनों ओर कम से कम 7 लाख पेड़ होने चाहिए, जबकि यहां सड़क के किनारे सिर्फ 34,000 पेड़ हैं। शहर की 34 लाख आबादी पर 31 लाख पंजीकृत वाहनों के बीच मात्र 10 लाख पेड़ों की मौजूदगी गंभीर चिंता का विषय है।
इंदौर शहर की नगर निगम सीमा 278 वर्ग किलोमीटर है। इसमें से कुल भूमि के 55% क्षेत्र यानी 153 वर्ग किलोमीटर में भूखंड, 25% क्षेत्र यानी 69.5 वर्ग किलोमीटर में सड़कें, 11% क्षेत्र यानी 30.5 वर्ग किलोमीटर में उद्यान और 9% यानी मात्र 25 वर्ग किलोमीटर में हरित आवरण है। आवासीय क्षेत्र में 2300 उद्यान होने चाहिए, लेकिन शहर में केवल 1149 उद्यान हैं, जिनमें से 620 पूरी तरह से विकसित नहीं हुए हैं और 200 से अधिक की सीमा में किसी न किसी तरह का अतिक्रमण है। 1149 उद्यानों में मात्र 17,000 पेड़ हैं। शहर की सीमा के भीतर कोई अच्छा, निर्दिष्ट सिटी फ़ॉरेस्ट भी नहीं है। केवल देवगुराड़िया स्थित पुराने ट्रेंचिंग ग्राउंड के विकसित भाग को सिटी फॉरेस्ट कहा जाता है।
हाल ही में देश के नीति आयोग की रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि 2030 तक भारत के 30 शहरों में गंभीर जल संकट होगा, जिसमें इंदौर भी शामिल है। आईआईटी, इंदौर द्वारा भारत के 99 शहरों में जल संकट पर किए गए अध्ययन में इंदौर 19वें स्थान पर है। 2023 में शहरी सीमा में केवल 550 कुएं और बावड़ियां रिपोर्ट की गई, लेकिन उनकी स्थिति संतोषजनक नहीं है। कपड़ा मिलों- मालवा, हुकुमचंद, कल्याण, स्वदेशी, राजकुमार और होप (भंडारी) मिलों के क्षेत्र में कम से कम छ: मानव निर्मित तालाब और पत्थरों से बने 20 बड़े टैंक हैं, जो लगभग 100 साल पुरानी वास्तुकला के सुंदर उदाहरण हैं।
छ: कपड़ा मिलों में सबसे पहली मिल होप टेक्सटाइल (1888) थी, जबकि राजकुमार मिल सबसे अंत में 100 साल पूर्व 1924 में स्थापित हुई थी। कपड़ा मिलें 1986 के बाद से बन्द होना शुरू हुई और करीब 25 साल पहले 2003 में पूरी तरह से बंद हो गई। यह मिल परिसर स्वतः सघन हरियाली विकसित होने से जंगल में तब्दील हो गए हैं। इन विशाल परिसरों में कई बड़े पेड़ हैं, जिनमें कुछ सौ साल से भी अधिक पुराने हैं। मिलों की चहार दिवारी के आसपास भी सैकड़ों पेड़ हैं। पेड़ पुराने होने से उनकी कैनोपी से मिल परिसरों के पूरे भाग पर हरियाली आच्छादित हो गई है, यह सेटेलाइट इमेज में आसानी से देखा जा सकता है (संलग्न: छः फोटोग्राफ)।
शहर में पेड़ों की घटती संख्या, गिरते भूजल स्तर और तालाबों, कुओं और बावड़ियों की उचित देखभाल न होने से शहर का औसत तापमान बढ़ रहा है, जैव-विविधता घट रही है और हवा की गुणवत्ता में भी आशा के अनुरूप सुधार नहीं हो रहा है। यह सभी पर्यावरणीय समस्याएँ एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। इन परिस्थितियों के चलते अब जरूरी है कि योजनाएं इस तरह बनाई जाए कि पेड़ भी बचे रहें और पानी के स्रोतों को भी यथासंभव बचाया जा सके।
शहर की बंद पड़ी कपड़ा मिलों के परिसर में प्रस्तावित योजनाओं के कारण यह अत्यंत आवश्यक है कि यहाँ की हरियाली और जल स्रोतों को संरक्षित करने के लिए कृपया तत्काल कदम उठाए जाएं और उन्हें नगर वन/सिटी फॉरेस्ट घोषित किया जाए। इनसे भविष्य में चरम मौसम की घटनाओं से निपटने में भी मदद मिलेगी। मिल परिसर के पेड़ इंदौर के फेफड़े और जीवन रेखा हैं। मिल क्षेत्र में सघन बसाहट होने से यहां जनसंख्या का घनत्व भी अधिक है। अतः सघन हरियाली का रहना अत्यंत जरूरी है।
प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवासीय विभाग ने अमृत2.0 मिशन के तहत प्रदेश के 390 शहरों में पार्क एवं नगर वन विकसित करने की योजनाओं को मंजूरी दी है, जिन पर एक वर्ष में 118 करोड़ खर्च करने होंगे। कृपया इन योजनाओं के तहत बंद पड़ी कपड़ा मिलों के हरित क्षेत्र को नगर वन/ सिटी फॉरेस्ट घोषित किया जाए। इंदौर के पर्यावरण प्रेमी नागरिक कृपया आपसे इस पर तत्काल कार्रवाई करने और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 48ए और अनुच्छेद 51ए(जी) के तहत वादा किए गए नागरिकों के लिए स्वच्छ स्वस्थ वातावरण सुनिश्चित करने का विनम्र आग्रह करते हैं। इंदौर के पर्यावरण प्रेमी नागरिक जनक पलटा मगिलिगन, ओपी जोशी, श्याम सुंदर यादव, अम्बरीश केला, दिलीप वाघेला, जयश्री सिक्का राजेंद्र सिंह द्वारा हस्ताक्षरित।