पुण्यश्लोक संस्था के प्रमुख जतिन थोरात ने कहा, हम छत्रपति शिवाजी महाराज का पूरा सम्मान करते हैं, लेकिन इस साल देशभर में देवी अहिल्याबाई की 300वीं जयंती मनाई जा रही है। लिहाजा नगर निगम से हमारी मांग है कि रेसीडेंसी कोठी का नाम देवी अहिल्याबाई होलकर विश्राम गृह रखा जाए।
उन्होंने कहा कि उनकी संस्था अपनी मांग के संबंध में नगर निगम प्रशासन को औपचारिक ज्ञापन सौंपेगी और इस पर प्रतिक्रिया के आधार पर आगे की रणनीति तय की जाएगी। महापौर पुष्यमित्र भार्गव ने बताया कि रेसीडेंसी कोठी का नाम बदलकर शिवाजी कोठी करने का फैसला शहर के लोगों के सुझावों के आधार पर महापौर परिषद (एमआईसी) की सर्वसम्मति से किया गया है।
रेसीडेंसी कोठी, इंदौर की प्रमुख ऐतिहासिक इमारतों में से एक है। शहर आने वाली विशिष्ट और अति विशिष्ट हस्तियों को रेसीडेंसी कोठी में ठहराया जाता है। इस इमारत में अहम सरकारी बैठकें भी आयोजित की जाती हैं। इतिहासकार जफर अंसारी ने बताया कि रेसीडेंसी कोठी का निर्माण ईस्ट इंडिया कंपनी ने 1820 में शुरू किया था और इसमें रहने वाले अंग्रेज अफसर समूचे मध्य भारत की रियासतों को नियंत्रित करते थे।
उन्होंने बताया, क्रांतिकारी सआदत खान और उनके सशस्त्र साथियों ने एक जुलाई 1857 को रेसीडेंसी कोठी पर भीषण हमला करके इसके प्रवेश द्वार को ध्वस्त कर दिया था और इस इमारत पर नियंत्रण हासिल कर लिया था। क्रांतिकारियों ने रेसीडेंसी कोठी पर लगे ईस्ट इंडिया कंपनी के झंडे को उतारकर इस पर तत्कालीन होलकर रियासत का ध्वज फहरा दिया था।