महाभारत में छुपा है ये सबसे अद्भुत रहस्य, आप भी जानकर हैरान रह जाएंगे

महाभारत में कई घटनाएं, संबंध और ज्ञान-विज्ञान के रहस्य छिपे हुए हैं। महाभारत का हर पात्र जीवंत है, चाहे वह कौरव, पांडव, कर्ण और कृष्ण हो या धृष्टद्युम्न, शल्य, शिखंडी और कृपाचार्य हो। कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध ने भारत का इतिहास और भविष्य बदलकर रख दिया। महाभारत सिर्फ योद्धाओं की गाथाओं तक सीमित नहीं है। महाभारत से जुड़े शाप, वचन और आशीर्वाद में भी रहस्य छिपे हैं। आओ जानते हैं कि महाभारत में ऐसा कौन सा रहस्य छुपा है जिसे आप नहीं जानते हैं। इससे पहले यह जान लें कि महाभारत में क्या-क्या और भी रहस्य छुपे हैं?
 
 
महाभारत के सभी प्रमुख योद्धा किसी न किसी के अवतार थे। हर योद्धा विचित्र शक्तियों से संपन्न था। महाभारत की महिलाएं भी कम विचित्र नहीं थीं। महाभारत के कुछ ऐसे भी योद्धा हैं, जो आज भी जीवित हैं। कौरवों का जन्म एक रहस्य था। कौरव और पांडव न तो धृतराष्ट्र की संतानें थीं और न पांडु की। महाभारत काल में विमान और परमाणु अस्त्र का प्रयोग हुआ था। महान योद्धा बर्बरीक और घटोत्कच के रहस्य को सभी जानते हैं। महाभारत में रिश्ते एक-दूसरे से उलझे हुए थे। जैसे द्रौपदी के पति, पुत्र, पिता और कृष्ण के भाई-बंधु और पत्नियों का रिलेशन कौरवों से भी था।


महाभारत के युद्ध कुरुक्षेत्र में ही लड़े जाने का बहुत बड़ा कारण था। महाभारत में बहुत सी घटनाएं किसी न किसी के श्राप के चलते ही घटी थीं। महाभारत के युद्ध के विचित्र नियम थे लेकिन जब कौरव पक्ष की ओर से अभिमन्यु को मारकर नियम तोड़े गए तो युद्ध की दशा और दिशा बदल गई। कुरुक्षेत्र के युद्ध के बाद मौसुल का युद्ध हुआ जिसमें कृष्ण कुल के लोगों का नाश हो गया। अंत में एक रात के लिए जी उठे थे सभी योद्धा।
 
 
अब जानते हैं सबसे बड़ा और अद्भुत रहस्य :
सबसे बड़ा रहस्य : सबसे बड़ा रहस्य लाखों लोगों के शव को लेकर आज भी बरकरार है। कहते हैं कि महाभारत के युद्ध में कुरुक्षेत्र में इतना खून बहा था कि वहां की मिट्टी का रंग आज भी लाल है। लेकिन अब सोचने वाली बात है कि उन लाखों योद्धाओं के शव का क्या हुआ? कहा जाता है कि जिस दिन जितने भी योद्धा मर जाते थे उनमें से अधिकतर के शव उनके परिजनों को सौंप दिए जाते थे और बाकी शव वहीं पड़े रहते थे। युद्ध के अंत के बाद कहते हैं कि युधिष्ठिर की आज्ञा से कुरुक्षेत्र की भूमि को जला दिया गया था ताकि किसी भी योद्धा का शव न बचे।
 
 
दूसरा रहस्य यह कि प्रतिदिन लाखों लोगों के लिए युद्ध भूमि के पास ही लगे एक शिविर में भोजन बनता था। युद्ध की शुरुआत के पूर्व के दिन लगभग 45 लाख से अधिक लोगों का भोजन बना। इसके बाद प्रतिदिन जितने योद्धा मर जाते थे उतना भोजन कम कर दिया जाता था, लेकिन यह पता कैसे चलता था कि आज कितने योद्धाओं का भोजन बनाना है? इसके लिए भोजन व्यवस्था देखने वाले उडुपी के राजा हर दिन शाम को जब श्रीकृष्ण को भोजन कराते थे तब श्रीकृष्ण के भोजन करते वक्त उन्हें पता चल जाता था कि कल कितने लोग मरने वाले हैं और कितने बचेंगे।


कहते हैं कि इसके लिए श्रीकृष्ण प्रतिदिन उबली हुई मूंगफली या चावल खाते थे। उसी से राजा को पता चलता था कि कल कितने लोग मरेंगे तो मुझे शाम को कितने लोगों का भोजन बनाना है। इस तरह श्रीकृष्ण के कारण हर द‌िन सैन‌िकों को पूरा भोजन म‌िल जाता था और अन्न का एक दाना भी व्यर्थ नहीं जाता था।
 
 
1. बगैर रुके लिखा गया महाभारत : महाभारत ग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी लेकिन इसका लेखन भगवान श्री गणेश ने किया था। भगवान श्री गणेश ने इस शर्त पर महाभारत का लेखन किया था कि महर्षि वेदव्यास बिना रुके ही लगातार इस ग्रंथ के श्लोक बोलते रहेंगे। तब महर्षि वेदव्यास ने भी एक शर्त रखी कि मैं भले ही बिना सोचे-समझे बोलूं लेकिन आप किसी भी श्लोक को बिना समझे लिखे नहीं। बीच-बीच में महर्षि वेदव्यास ने कुछ ऐसे श्लोक बोले जिन्हें समझने में श्री गणेश को थोड़ा समय लगा और इस दौरान महर्षि वेदव्यास अन्य श्लोकों की रचना कर लेते थे।
 
 
इसके बाद महाभारत ग्रंथ का वाचन सबसे पहले महर्षि वेदव्यास के शिष्य वैशम्पायन ने राजा जन्मेजय की सभा में किया था। राजा जन्मेजय अभिमन्यु के पौत्र तथा परीक्षित के पुत्र थे। इन्होंने ही अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए सर्पयज्ञ करवाया था।
 
 
2. बाद में 3 चरणों में संग्रहीत किए गए श्लोक : कहते हैं कि कालांतर में इस महाभारत को 3 चरणों में संग्रहीत किया गया। पहले चरण में 8,800 श्लोक, दूसरे चरण में 24,000 और तीसरे चरण में 1 लाख श्लोक। वेदव्यास की महाभारत के अलावा भंडारकर ओरिएंटल रिसर्च इंस्टीट्यूट, पुणे की संस्कृत महाभारत सबसे प्रामाणिक मानी जाती है। अंग्रेजी में संपूर्ण महाभारत 2 बार अनूदित की गई थी। पहला अनुवाद 1883-1896 के बीच किसारी मोहन गांगुली ने किया था और दूसरा मनमंथनाथ दत्त ने 1895 से 1905 के बीच। 100 साल बाद डॉ. देबरॉय तीसरी बार संपूर्ण महाभारत का अंग्रेजी में अनुवाद कर रहे हैं।
 
 
3. 28वें वेदव्यास ने लिखी महाभारत : ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि महाभारत को वेदव्यास ने लिखा है लेकिन यह अधूरा सच है। वेदव्यास कोई नाम नहीं, बल्कि एक उपाधि थी, जो वेदों का ज्ञान रखने वाले लोगों को दी जाती थी। कृष्णद्वैपायन से पहले 27 वेदव्यास हो चुके थे, जबकि वे खुद 28वें वेदव्यास थे। उनका नाम कृष्णद्वैपायन इसलिए रखा गया, क्योंकि उनका रंग सांवला (कृष्ण) था और वे एक द्वीप पर जन्मे थे।
 
 
4. 18 के अंक का रहस्य : महाभारत युद्ध में 18 की संख्या का बहुत महत्व है। महाभारत की पुस्तक में 18 अध्याय हैं। कृष्ण ने कुल 18 दिनों तक अर्जुन को ज्ञान दिया। कृष्ण के कुल के 18 समुदायों ने ही मथुरा से पलायन किया था। 18 दिन तक ही युद्ध चला। गीता में भी 18 अध्याय हैं। कौरवों और पांडवों की सेना में भी कुल 18 अक्षोहिनी सेना थी जिनमें कौरवों की 11 और पांडवों की 7 अक्षोहिनी सेना थी। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार भी 18 थे। इस युद्ध में कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। इस युद्ध के प्रमुख सूत्रधार 18 ही थे।

 
5. प्रमुख सूत्रधार और बच गए योद्धा 18 थे : धृतराष्ट्र, दुर्योधन, दुशासन, कर्ण, शकुनि, भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य, अश्वत्थामा, कृतवर्मा, श्रीकृष्ण, युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल, सहदेव, द्रौपदी एवं विदुर। महाभारत के युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे जिनके नाम हैं- कौरव के : कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि। लाखों लोगों के मारे जाने के बाद लगभग 24,165 कौरव सैनिक लापता हो गए थे। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था।
 
 
6. महाभारत के प्रमुख श्राप : जैसे पूर्व जन्म में राजा शांतनु महाभिष थे। ब्रह्मा की सेवा में वे उपस्थित थे तब वे गंगा पर मोहित होकर उसे एकटक देखने लगे। तब ब्रह्मा ने उन्हें मनुष्य योनि में दु:ख झेलने का श्राप दे दिया। इसके बाद वशिष्ठ ऋषि ने आठों वसुओं को मनुष्य योनि में जाने का शाप दिया था जिसमें से एक गंगा पुत्र देवव्रत अर्थात भीष्म पितामह भी थे। अम्बा के शाप ने भीष्म को उनके अंत का शाप दिया था।
 
 
पांडु को ऋषि किंदम ने सहवास के दौरान मर जाने का श्राप दिया था इसलिए पांडु के कोई पुत्र नहीं हुआ। सभी पांडव देवताओं के पुत्र हैं। कर्ण को परशुराम ने श्राप दिया था। अर्जुन को उर्वशी ने श्राप दिया था। कृष्ण को गांधारी ने श्राप दिया था। अश्वत्थामा को श्रीकृष्ण ने श्राप दिया था। महर्षि मैत्रेय ने दुर्योधन को श्राप दिया था। द्रौपदी ने घटोत्कच को श्राप दिया था। दुर्वासा ऋषि ने कृष्ण के पुत्र साम्ब को श्राप दिया था। युधिष्ठिर ने दिया था सभी स्त्रियों को यह श्राप की उनके पेट में कोई बात नहीं टिकेगी, व्यासजी ने काशी नगरी को दिया श्राप। माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप। द्रौपदी ने कुत्तों को दिया श्राप। अंत में राजा परीक्षित को शमीक ऋषि ने श्राप दिया था।
 
 
अंत में श्रीकृष्ण की बातें :
श्रीकृष्ण और 8 का अंक : भविष्यवाणी के अनुसार विष्णु को देवकी के गर्भ से कृष्ण के रूप में जन्म लेना था, तो उन्होंने अपने 8वें अवतार के रूप में 8वें मनु वैवस्वत के मन्वंतर के 28वें द्वापर में भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की रात्रि के 7 मुहूर्त निकल गए और 8वां उपस्थित हुआ तभी आधी रात के समय सबसे शुभ लग्न उपस्थित हुआ। उस लग्न पर केवल शुभ ग्रहों की दृष्टि थी। रोहिणी नक्षत्र तथा अष्टमी तिथि के संयोग से जयंती नामक योग में लगभग 3112 ईसा पूर्व (अर्थात आज से 5126 वर्ष पूर्व) को हुआ हुआ। ज्योतिषियों के अनुसार रात 12 बजे उस वक्त शून्य काल था। श्रीकृष्ण के 8 पन्नियां थीं। उनके जीवन में 8 नगरों का महत्व ज्यादा रहा। मथुरा, गोकुल, गोवर्धन, वृंदावन, अवंतिका, हस्तिनापुर, द्वारिका और प्रभाष क्षेत्र।
 
 
युद्ध को सिर्फ कृष्ण ने ही संचालित किया था : महाभारत की प्रत्येक घटना को श्रीकृष्ण ही संचालित करते हुए नजर आते हैं। दुर्योधन को माता के समक्ष नग्न जाने से रोकना, कर्ण के कवच कुंडलों को इन्द्र द्वारा दान में मांग लेना, बर्बरीक से दान में उसका शीश मांग लेना और युक्तिपूर्वक कर्ण, द्रोण और भीष्म को युद्ध में मरवा देना- ये सभी श्रीकृष्ण की नीति से ही संभव होता है। श्रीकृष्ण के कारण ही यह युद्ध हुआ और उन्हीं ने इस युद्ध को पांडवों के पक्ष में विजित किया।
 
 

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