द्रौपदी के ये 5 रहस्य आप नहीं देख पाएंगे महाभारत में

अनिरुद्ध जोशी

मंगलवार, 21 अप्रैल 2020 (14:39 IST)
महाभारत में द्रौपदी की भूमिका बहुत ही अहम थी। द्रौपदी पांचाल देश के राजा द्रुपद की कन्या थी इसलिए उन्हें 'पांचाली' भी कहा जाता था। राजा द्रुपद ने द्रौपदी को कुरु वंश के नाश के लिए यज्ञ से उत्पन्न करवाया था इसलिए उसे याज्ञनिक भी कहा जाता है। आओ जानते हैं द्रौपदी के जीवन से जुड़े ऐसे 5 रहस्य जिन्हें आपकी महाभारत में नहीं देखा होगा।
 
 
1. द्रौपदी के पुण्य कार्य : लोककथाओं के अनुसार मान्यता है कि द्रौपदी का चीरण हरण हो रहा था तब 2 पुण्य कर्म उसके काम आए। पहला यह कि एक बार द्रौपदी गंगा में स्नान कर रही थी उसी समय एक साधु वहां स्नान करने आया। स्नान करते समय साधु की लंगोट पानी में बह गई और वह इस अवस्था में बाहर कैसे निकले? इस कारण वह एक झाड़ी के पीछे छिप गया। द्रोपदी ने साधु को इस अवस्था में देख अपनी साड़ी से लंगोट के बराबर कोना फाड़कर उसे दे दिया। साधु ने प्रसन्न होकर द्रौपदी को आशीर्वाद दिया।

 
दूसरा यह कि एक अन्य कथा के अनुसार जब श्रीकृष्ण द्वारा सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया गया, उस समय श्रीकृष्ण की अंगुली भी कट गई थी। अंगुली कटने पर श्रीकृष्ण का रक्त बहने लगा। तब द्रौपदी ने अपनी साड़ी फाड़कर श्रीकृष्ण की अंगुली पर बांधी थी। इस कर्म के बदले श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को आशीर्वाद देकर कहा था कि एक दिन अवश्य तुम्हारी साड़ी की कीमत अदा करुंगा। इन कर्मों की वजह से श्रीकृष्ण ने द्रौपदी की साड़ी को इस पुण्य के बदले ब्याज सहित इतना बढ़ाकर लौटा दिया और द्रौपदी की लाज बच गई।

 
2. द्रौपदी के पति : महाभारत से इतर एक अन्य कथा के अनुसार द्रौपदी के 5 पति थे, लेकिन वो अधिकतम 14 पतियों की पत्नी भी बन सकती थी। इसका कारण द्रौपदी के पूर्व जन्म में छिपा था। पूर्व जन्म में द्रौपदी राजा नल और उनकी पत्नी दमयंती की पुत्री थीं। उस जन्म में द्रौपदी का नाम नलयनी था। नलयनी ने भगवान शिव से आशीर्वाद पाने के लिए कड़ी तपस्या की। भगवान शिव जब प्रसन्न होकर प्रकट हुए तो नलयनी ने उनसे आशीर्वाद मांगा कि अगले जन्म में उसे 14 इच्छित गुणों वाला पति मिले।

 
यद्यपि भगवान शिव नलयनी की तपस्या से प्रसन्न थे, परंतु उन्होंने उसे समझाया कि इन 14 गुणों का एक व्यक्ति में होना असंभव है। किंतु जब नलयनी अपनी जिद पर अड़ी रही तो भगवान शिव ने उसकी इच्छा पूर्ण होने का वरदान दे दिया। इस वरदान में अधिकतम 14 पति होना और प्रतिदिन सुबह स्नान के बाद पुन: कुंआरी होना भी शामिल था। इस प्रकार द्रौपदी भी पंचकन्या में एक बन गईं।

 
नलयनी का पुनर्जन्म द्रौपदी के रूप में हुआ। द्रौपदी के इच्छित 14 गुण पांचों पांडवों में थे। युधिष्ठिर धर्म के ज्ञानी थे। भीम 1,000 हाथियों की शक्ति से पूर्ण थे। अर्जुन अद्भुत योद्धा और वीर पुरुष थे। सहदेव उत्कृष्ट ज्ञानी थे व नकुल कामदेव के समान सुन्दर थे।

 
3. कर्ण, कृष्ण और द्रौपदी में समानता : द्रौपदी का मूल नाम कृष्णा था। द्रौपदी का नाम कृष्णा इसलिए था क्योंकि वह भी सांवली थीं। भगवान श्रीकृष्ण और द्रौपदी अच्छे मित्र थे। कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की मांसपेशियां मृदु परंतु युद्ध के समय विस्तॄत हो जाती थीं इसलिए सामान्यत: लड़कियों के समान दिखने वाला उनका लावण्यमय शरीर युद्ध के समय अत्यंत कठोर दिखाई देने लगता था। कहते हैं कि यही खासियत कर्ण और द्रौपदी के शरीर में भी थी।

 
4. द्रोपदी चाहती थी श्रीकृष्ण को : ऐसी भी किंवदंती है कि पांडव और कर्ण से पूर्व द्रौपदी कृष्ण चाहती थी। पर इसमें सचाई नहीं है। वह उससे शादी करना चाहती थी क्योंकि कृष्ण सभी सर्वश्रेष्ठ थे। द्रौपदी की एक दासी थी जिसका नाम नितंबिनी था। वह कृष्ण की सारी खबरें उनके पास ले आती थीं और कृष्ण खुद जानते थे कि द्रौपदी उनको चाहती है, लेकिन एक दिन एक भेंट में श्रीकृष्ण ने द्रौपदी के समझाया और उन्हें अर्जुन के बारे में बताया। कहा कि अर्जुन इंद्र का पुत्र है अर्थात वह देवपुत्र है। वह आर्योपुत्रों में सर्वश्रेष्ठ है। इस तरह द्रौपदी का मन श्रीकृष्ण ने अर्जुन की ओर मोड़ दिया और दोनों मित्र बन गए।

 
यह भी कहते हैं कि द्रुपद चाहते थे कि उनकी पुत्री द्रोपदी का विवाह आर्यावर्त के सर्वश्रेष्ठ योद्धा से हो, जो द्रोण को पराजित कर सके। उन्होंने सबसे पहले अर्जुन के बारे में सोचा। परन्तु उनको पता चला कि अर्जुन की मृत्यु वारणावत में अग्निकांड में हो गयी है, इसलिए उन्होंने दूसरे योद्धाओं के बारे में विचार किया। तब उनका ध्यान यादवों के एकछत्र नेता कृष्ण की ओर गया। उन्होंने कृष्ण को पांचाल आमंत्रित किया और उनके आने पर उनसे अपनी पुत्री द्रोपदी का पाणिग्रहण करने की प्रार्थना की। लेकिन जब कृष्ण को पता चला कि द्रुपद का असली उद्देश्य द्रोण से अपने अपमान का बदला लेना है और इसके लिए अपने जामाता का उपयोग करना चाहते हैं, तो कृष्ण ने उनकी पुत्री के साथ विवाह करने से विनम्रतापूर्वक मना कर दिया, क्योंकि वे स्वयं को किसी के व्यक्तिगत प्रतिशोध का मोहरा नहीं बनने देना चाहते थे।

 
कृष्ण के अस्वीकार से द्रुपद बहुत निराश हुए। उनकी निराशा को देखते हुए कृष्ण ने उनसे कहा कि मैं द्रोपदी के योग्य सर्वश्रेष्ठ वर का चुनाव करने में आपकी सहायता कर सकता हूं। द्रपुद ने उनका प्रस्वाव स्वीकार कर लिया या यह भी कहा कि मुझे ऐसा योद्धा चाहिए जो द्रोण को पराजित करके उनके अपमान का बदला चुका सके। तब उन्होंने सलाह दी की द्रोपदी के स्वयंवर में धनुर्वेद की एक बहुत कठिन प्रतियोगिता रखिए। जो उस प्रतियोगिता में विजयी होगा, वह सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर होगा। उसके साथ द्रोपदी का विवाह करके आप अपनी इच्छा पूर्ण कर सकते हैं। इसके बाद की कहानी तो आपको पता ही है।

 
डॉ. राममनोहर लोहिया अपने एक लेख में कहते हैं कि ''महाभारत का नायक कृष्ण और नायिका कृष्‍णा (द्रौपदी)। द्रौपदी तो कृष्ण के लायक ही थी। अर्जुन समेत पांचों पांडव उसके सामने फीके थे। कृष्ण और कृष्णा का यह संबंध राधा और कृष्ण के संबंध से कम नहीं।'' राधा तो कृष्ण के साथ बचपन में ही रही थी इसके बाद तो उसका कृष्ण से कोई संबंध नहीं रहा। कहते हैं कि वर्षों बाद राधा बस एक बार वह द्वारिका आई थी, फिर उसके बाद उनकी कभी मुलाकात नहीं हुई। द्रौपदी का श्रीकृष्‍ण से संबंध बहुत ही आत्मीय था। लेकिन भक्ति काल के कवियों ने इसकी उपेक्षा की और राधा को ज्यादा महत्व दिया।

 
5. द्रौपदी का जीवन : द्रौपदी ने पांच पुरुषों से विवाह किया था। भरी सभा में उसका चिरहरण हुआ। मत्स्य वंश के राजा कीचक ने द्रौपदी के साथ जबरदस्ती करना चाही थी। बाद में सभी पांडवों ने अन्य महिलाओं से विवाह करके अपन अलग परिवार बसा लिया था। द्रौपदी ऐसे समय अकेली रह गई थी। पांडवों से द्रौपदी के पांच पुत्र हुए। अज्ञातवास के दौरान जब द्रौपदी को रानी सुदेशना की दासी बनना पड़ा था।

 
कहते हैं कि द्रौपदी का जन्म यज्ञ से हुआ था इसीलिए उसे 'याज्ञनी' कहा जाता था। द्रौपदी को पंचकन्याओं में शामिल किया गया है। पुराणानुसार 5 स्त्रियां विवाहिता होने पर भी कन्याओं के समान ही पवित्र मानी गई हैं। अहिल्या, द्रौपदी, कुंती, तारा और मंदोदरी। द्रौपदी ने 5 लोगों को अपना पति बनाया था, जो कि एक बहुत ही बड़ा कदम था। पांचों पुरुषों से विवाह करने के बाद भी द्रौपदी ने अपनी पवित्रता और चरित्र को समाज के समक्ष सही सिद्ध किया। कहते हैं कि द्रौपदी के कारण ही महाभारत का युद्ध हुआ था। द्रौपदी का संपूर्ण जीवन उथल-पुथलभरा रहा है। 5 पुरुषों से विवाह करने के बाद भी द्रौपदी खुद को अकेली ही महसूस करती थीं, क्योंकि सभी पांडवों ने अपनी अलग-अलग पत्नियां कर ली थीं, जो उन्हीं में रमे रहते थे। सबसे बड़ी त्रासदी द्रौपदी के साथ तब हुई, जब युद्ध के अंत में उसके सभी पुत्रों को सोते समय अश्वत्थामा ने मार दिया था।

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