जब कण्व ऋषि की तपस्या पूर्ण हुई तो ब्रह्माजी की सलाह पर उस बांस से तीन धनुष बनाए गए- पिनाक, शार्ङग और गाण्डीव। गाण्डीव धनुष वरुणदेव के पास था जिसे उन्होंने अग्निदेव को दे दिया था। अग्निदेव ने अर्जुन को दे दिया था जबकि एक दूसरी कथा के अनुसार खांडव वन में इन्द्रप्रस्थ बनाने के दौरान यह धनुष मयासुर ने अर्जुन को देते हुए इसका इतिहास बताया था। जो भी हो, यह धनुष और इसका तरकश चमत्कारिक या कहें कि दिव्य था।