Mahabharat : विदुर ने भीष्म और श्रीकृष्‍ण ने कर्ण को ऐसा रहस्य बताया कि बदल गई महाभारत

WD Feature Desk

मंगलवार, 18 जून 2024 (16:46 IST)
Mahabharata : महाभारत में कई ऐसी बातें गुप्त थीं जिन्हें सिर्फ श्रीकृष्ण सहित कुछ लोग ही जानते हैं। जब भीष्म और कर्ण को गुप्त बातें पता चली तो फिर संपूर्ण घटनाक्रम में बदलाव हो गया। आखिर वो गुप्त बातें कौनसी थीं। आओ जानते हैं महाभारत की रोचक बातें। ALSO READ: Mahabharat yuddh : मरने के बाद एकलव्य ने इस तरह लिया था महाभारत के युद्ध में भाग?
 
विदुर ने बताया भीष्म को राज : दुर्योधन ने वारणावत में पांडवों के निवास के लिए पुरोचन नामक शिल्पी से एक भवन का निर्माण करवाया था, जो कि लाख, चर्बी, सूखी घास, मूंज जैसे अत्यंत ज्वलनशील पदार्थों से बना था। दुर्योधन ने पांडवों को उस भवन में जला डालने का षड्यंत्र रचा था। धृतराष्ट्र के कहने पर युधिष्ठिर अपनी माता तथा भाइयों के साथ वारणावत जाने के लिए निकल पड़े। दुर्योधन के षड्यंत्र के बारे में जब विदुर को पता चला तो वे तुरंत ही वारणावत जाते हुए पांडवों से मार्ग में मिले और उन्होंने दुर्योधन के षड्यंत्र के बारे में बताया। फिर उन्होंने कहा कि 'तुम लोग भवन के अंदर से वन तक पहुंचने के लिए एक सुरंग अवश्य बनवा लेना जिससे कि आग लगने पर तुम लोग अपनी रक्षा कर सको। मैं सुरंग बनाने वाला कारीगर चुपके से तुम लोगों के पास भेज रहा हूं।'ALSO READ: Mahabharat : महाभारत में जिन योद्धाओं ने नहीं लड़ा था कुरुक्षेत्र का युद्ध, वे अब लड़ेंगे चौथा महायुद्ध
 
जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्वलित करने की योजना बनाई थी, उसी दिन पांडवों ने गांव के ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगाई। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गई। लाक्षागृह में पुरोचन तथा अपने बेटों के साथ भीलनी जलकर मर गई। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुंचा तो पांडवों को मरा समझकर वहां की प्रजा अत्यंत दुःखी हुई। दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवों ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और अंत में उन्होंने पुरोचन, भीलनी और उसके बेटों को पांडवों का शव समझकर अंत्येष्टि करवा दी।
 
हालांकि बाद में विदुर ने भीष्म पितामह को यह बता दिया की किस तरह दुर्योधन के षड्यंत्र से पांडव बचकर निकल गए। इस बात को सुनकर भीष्म बहुत प्रसन्न हुए थे और उन्होंने विदुर से कहा कि तुमने उन्हें बचाने में जो महान कार्य किया है वह सराहनीय है।
श्रीकृष्ण ने कर्ण को बताया उसका रहस्य : कर्ण दुर्योधन का पक्का मि‍त्र था। दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बना दिया था। कर्ण यह नहीं जानता था कि उसकी असली मां कौन है, परंतु उसे यह पता चल गया था कि उसके पिता सूर्यदेव हैं। बहुत समय तक कर्ण और दुर्योधन साथ रहे, परंतु भीष्म पितामह ने यह कभी नहीं बताया कि तुम कुंती पुत्र हो और पांडवों के भाई हो। भीष्म जानते थे कि कर्ण पांडवों का ही भाई है लेकिन उन्होंने ये बात कौरव पक्ष से छिपाकर रखी। कर्ण का सत्य छिपाना भी महाभारत युद्ध का एक बड़ा कारण बना। यह बात भीष्म ने ही नहीं, श्रीकृष्ण ने भी छिपा कर रखी। खुद कर्ण भी जब युद्ध तय हो गया तब जान पाया।
 
कुंती भी राजमहल में कौरवों के बीच ही बहुत समय तक रही और बाद में वह महात्मा विदुर के यहां रहने लगी थी। कुंती भी यह जानती थी कि कर्ण मेरा पुत्र है और उसका एवं कर्ण का कई बार सामना हुआ परंतु कुंती ने भी यह बात तब तक जाहिर नहीं की जब तक की युद्ध तय नहीं हो गया। यही बात श्रीकृष्ण को भी बहुत पहले से पता था और वे भी कर्ण से कई बार मिले परंतु उन्होंने भी कभी इस बात को जाहिर नहीं किया। हालांकि यह बात श्रीकृष्ण ने ही पहली बार कर्ण को बताई थी कि तुम कुंती के पुत्र है।ALSO READ: महाभारत की 30 प्रमुख घटनाएं, जानिए रोचक जानकारी
 
श्रीकृष्ण यह बात तब बताई थी जबकि वे कौरवों से पांडवों की ओर से अंतिम बार शांति प्रस्ताव लेकर गए थे और वहां उन्होंने 5 गांव की मांग की थी, परंतु जब दुर्योधन ने उनकी मांग ठुकरा दी तो फिर श्रीकृष्ण को समझ आ गया कि अब युद्ध तय हो चुका है। ऐसे में उन्होंने महात्मा विदुर के यहां रुकने के दौरान कर्ण को बुलाया और वे दोनों एकांत में गए वहां श्रीकृष्ण ने कर्ण को यह राज बता दिया कि तुम्हारी माता कुंती है और पांडव तुम्हारे भाई है। यह जानकर कर्ण को बहुत धक्का लगा था और उन्होंने श्रीकृष्‍ण से वचन लिया कि आप यह बात पांडवों को नहीं बताओगे। इसके बाद कर्ण से मिलने के लिए कुंती भी माता एकांत में गई थी और उन्होंने कर्ण से इसके लिए क्षमा मांगी थी।ALSO READ: पूरे महाभारत के युद्ध के दौरान द्रौपदी कहां रहती थीं और कुंती एवं गांधारी क्या करती थीं?
 
कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कर्ण को मालूम था कि कुंती मेरी मां है। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्‍वासघात नहीं कर सकता। तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, 'माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।'
 
जब कर्ण का वध हो गया उसके बाद उसके दाह संस्कार के समय ही दुर्योधन को यह बात पता चली की कर्ण कुंती पुत्र था। यह जानकर सभी हैरान रह गए थे। . यदि युद्ध में कर्ण को असहाय स्थिति में देखकर नहीं मारा जाता, तो अर्जुन की क्षमता नहीं थी कि वे कर्ण को मार देते। इस तरह हम देखते हैं कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्ण से बचाने के लिए इस तरह एक योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया।

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी