जिस दिन पुरोचन ने आग प्रज्वलित करने की योजना बनाई थी, उसी दिन पांडवों ने गांव के ब्राह्मणों और गरीबों को भोजन के लिए आमंत्रित किया। रात में पुरोचन के सोने पर भीम ने उसके कमरे में आग लगाई। धीरे-धीरे आग चारों ओर लग गई। लाक्षागृह में पुरोचन तथा अपने बेटों के साथ भीलनी जलकर मर गई। लाक्षागृह के भस्म होने का समाचार जब हस्तिनापुर पहुंचा तो पांडवों को मरा समझकर वहां की प्रजा अत्यंत दुःखी हुई। दुर्योधन और धृतराष्ट्र सहित सभी कौरवों ने भी शोक मनाने का दिखावा किया और अंत में उन्होंने पुरोचन, भीलनी और उसके बेटों को पांडवों का शव समझकर अंत्येष्टि करवा दी।
श्रीकृष्ण ने कर्ण को बताया उसका रहस्य : कर्ण दुर्योधन का पक्का मित्र था। दुर्योधन ने उसे अंगदेश का राजा बना दिया था। कर्ण यह नहीं जानता था कि उसकी असली मां कौन है, परंतु उसे यह पता चल गया था कि उसके पिता सूर्यदेव हैं। बहुत समय तक कर्ण और दुर्योधन साथ रहे, परंतु भीष्म पितामह ने यह कभी नहीं बताया कि तुम कुंती पुत्र हो और पांडवों के भाई हो। भीष्म जानते थे कि कर्ण पांडवों का ही भाई है लेकिन उन्होंने ये बात कौरव पक्ष से छिपाकर रखी। कर्ण का सत्य छिपाना भी महाभारत युद्ध का एक बड़ा कारण बना। यह बात भीष्म ने ही नहीं, श्रीकृष्ण ने भी छिपा कर रखी। खुद कर्ण भी जब युद्ध तय हो गया तब जान पाया।
कुंती कर्ण के पास गई और उससे पांडवों की ओर से लड़ने का आग्रह करने लगी। कर्ण को मालूम था कि कुंती मेरी मां है। कुंती के लाख समझाने पर भी कर्ण नहीं माने और कहा कि जिनके साथ मैंने अब तक का अपना सारा जीवन बिताया उसके साथ मैं विश्वासघात नहीं कर सकता। तब कुंती ने कहा कि क्या तुम अपने भाइयों को मारोगे? इस पर कर्ण ने बड़ी ही दुविधा की स्थिति में वचन दिया, 'माते, तुम जानती हो कि कर्ण के यहां याचक बनकर आया कोई भी खाली हाथ नहीं जाता अत: मैं तुम्हें वचन देता हूं कि अर्जुन को छोड़कर मैं अपने अन्य भाइयों पर शस्त्र नहीं उठाऊंगा।'
जब कर्ण का वध हो गया उसके बाद उसके दाह संस्कार के समय ही दुर्योधन को यह बात पता चली की कर्ण कुंती पुत्र था। यह जानकर सभी हैरान रह गए थे। . यदि युद्ध में कर्ण को असहाय स्थिति में देखकर नहीं मारा जाता, तो अर्जुन की क्षमता नहीं थी कि वे कर्ण को मार देते। इस तरह हम देखते हैं कि श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्ण से बचाने के लिए इस तरह एक योजनाबद्ध तरीके से कार्य किया।