कलियुग में कौनसे पांडव ने कहां जन्म लिया, जानिए रहस्य...

महाभारत में हर व्यक्ति अपने आप में महान था। हर कोई किस न किसी का अवतार था और सभी के पास अद्भुत शक्तियां थीं। कोई उन शक्तियों का इस्तेमाल कर पाया तो कोई नहीं। कोई हार गया तो कोई जीत गया। कहते हैं कि सभी योद्ध एक रात के लिए जीवित हो गए थे और यह भी कहते हैं कि सभी योद्धा कलिकाल में किसी न किसी नाम से फिर से जन्मे थे। आओ जानते हैं उनके अवतारी, जीवित और कलिकाल में पुनर्जन्म की रोचक कहानी।
 
 
अवतारी : भगावान श्रीकृष्‍ण विष्णु के अवतार थे तो बलराम शेषनाग के अंश थे। आठ वसुओं में से एक 'द्यु' नामक वसु ने ही भीष्म के रूप में जन्म लिया था। देवगुरु बृहस्पति ने ही द्रोणाचार्य के रूप में जन्म लिया था। अश्‍वत्थामा रुद्र के अंशावतार थे। दुर्योधन कलियुग का तथा उसके 100 भाई पुलस्त्य वंश के राक्षस के अंश थे। सूर्यदेव के पुत्र कर्ण, इंद्र के पुत्र अर्जुन, पवन के पुत्र भीम, धर्मराज के पु‍त्र युधिष्ठिर और 2 अश्विनीकुमारों नासत्य और दस्त्र के पुत्र नकुल और सहदेव थे।
 
 
रुद्र के एक गण ने कृपाचार्य के रूप में जन्म लिया। द्वापर युग के अंश से शकुनि, अरिष्टा के पुत्र हंस नामक गंधर्व ने धृतराष्ट्र तथा पाण्डु के रूप में जन्म लिया। सूर्य के अंश धर्म ही विदुर के नाम से प्रसिद्ध हुए। कुंती और माद्री के रूप में सिद्धि और धृतिका का जन्म हुआ था। मति का जन्म राजा सुबल की पुत्री गांधारी के रूप में हुआ था। राजा भीष्मक की पुत्री रुक्मणी के रूप में लक्ष्मीजी व द्रौपदी के रूप में इंद्राणी उत्पन्न हुई थीं। अभिमन्यु चंद्रमा के पुत्र वर्चा का अंश था।
 
 
मरुतगण के अंश से सात्यकि, द्रुपद, कृतवर्मा व विराट का जन्म हुआ था। अग्नि के अंश से धृष्टधुम्न व राक्षस के अंश से शिखंडी का जन्म हुआ था। विश्वदेवगण द्रौपदी के पांचों पुत्र प्रतिविन्ध्य, सुतसोम, श्रुतकीर्ति, शतानीक और श्रुतसेव के रूप में पैदा हुए थे। दानवराज विप्रचित्ति जरासंध व हिरण्यकशिपु शिशुपाल का अंश था। कालनेमि दैत्य ने ही कंस का रूप धारण किया था। इंद्र की आज्ञानुसार अप्सराओं के अंश से 16 हजार स्त्रियां उत्पन्न हुई थीं।
 
 
एक रात के लिए जीवित हो गए थे मृत योद्धा : यह उस समय की बात है जब धृतराष्ट्र, कुंती, विदुर, गांधारी और संजय वन में रहते थे। एक दिन वन में उनसे मिलने युधिष्ठिर के बाद धृतराष्ट्र के आश्रम में महर्षि वेदव्यास आए। महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र, गांधारी और कुंती से कहा कि आज मैं तुम्हें अपनी तपस्या का प्रभाव दिखाऊंगा। तुम्हारी जो इच्छा हो वह मांग लो।
 
तब धृतराष्ट्र व गांधारी ने युद्ध में मृत अपने पुत्रों तथा कुंती ने कर्ण को देखने की इच्छा प्रकट की। द्रौपदी आदि ने कहा कि वे भी अपने परिजनों को देखना चाहते हैं। महर्षि वेदव्यास ने कहा कि ऐसा ही होगा। ऐसा कहकर महर्षि वेदव्यास सभी को गंगा तट पर ले गए। रात होने पर महर्षि वेदव्यास ने गंगा नदी में प्रवेश किया और पांडव व कौरव पक्ष के सभी मृत योद्धाओं का आवाहन किया। थोड़ी ही देर में भीष्म, द्रोणाचार्य, कर्ण, दुर्योधन, दु:शासन, अभिमन्यु, धृतराष्ट्र के सभी पुत्र, घटोत्कच, द्रौपदी के पांचों पुत्र, राजा द्रुपद, धृष्टद्युम्न, शकुनि, शिखंडी आदि वीर जल से बाहर निकल आए। उन सभी के मन में किसी भी प्रकार का अहंकार व क्रोध नहीं था।
 
 
महर्षि वेदव्यास ने धृतराष्ट्र व गांधारी को दिव्य नेत्र प्रदान किए। अपने मृत परिजनों को देख सभी के मन में हर्ष छा गया। सारी रात अपने मृत परिजनों के साथ बिताकर सभी के मन में संतोष हुआ। अपने मृत पुत्र, भाई, पतियों और अन्य संबंधियों से मिलकर सभी का संताप दूर हो गया। इस प्रकार वह अद्भुत रात समाप्त हो गई।
 
पुनर्जन्म : भविष्य पुराण के अनुसार शिवजी से युद्ध करने के कारण पांडवों को कलियुग में पुनः जन्म लेना पड़ा था। कहते हैं कि जब आधी रात के समय अश्वत्थामा, कृतवर्मा और कृपाचार्य ये तीनों पांडवों के शिविर के पास गए और उन्होंने मन ही मन भगवान शिव की आराधना कर उन्हें प्रसन्न कर लिया। इस पर भगवान शिव ने उन्हें पांडवों के शिविर में प्रवेश करने की आज्ञा दे दी। जिसके बाद अश्‍वत्थामा में पांडवों के शिविर में घुसकर शिवजी से प्राप्त तलवार से पांडवों के सभी पुत्रों का वध कर दिया और वहां से चले गए।
 
 
जब पांडवों को इसके बारे में पता चला तो वे भगवान शिव से युद्ध करने के लिए पहुंच गए। जैसे ही पांडव शिवजी से युद्ध करने के लिए उनके सामने पहुंचे उनके सभी अस्त्र-शस्त्र शिवजी में समा गए और शिवजी बोले तुम सभी श्रीकृष्ण के उपासक को इसलिए इस जन्म में तुम्हें इस अपराध का फल नहीं मिलेगा, लेकिन इसका फल तुम्हें कलियुग में फिर से जन्म लेकर भोगना पड़ेगा।
 
भगवान शिव की यह बात सुनकर सभी पांडव दुखी हो गए और इसके विषय में बात करने के लिए श्रीकृष्ण के पास पहुंच गए, तब श्रीकृष्ण ने उन्हें बताया कि कौन-सा पांडव कलियुग में कहां और किसके घर जन्म लेगा। 

 
कलियुग में किसका जन्म कहां हुआ, जानिए
1.युधिष्ठिर जन्म वत्सराज नाम के राजा के पुत्र के रूप में हुआ। उनका नाम मलखान था।
2.भीम का जन्म वीरण नाम से हुआ जो वनरस नाम के राज्य के राजा बने।
3.अर्जुन का जन्म परिलोक नाम के राजा के यहां हुआ। उनका नाम ब्रह्मानन्द था।
4.नकुल का जन्म कान्यकुब्ज के राजा रत्नभानु के यहां हुआ, उनका नाम लक्ष्मण था।
5.सहदेव ने भीमसिंह नामक राजा के घर में देवीसिंह के नाम से जन्म लिया।
6.दानवीर कर्ण ने तारक नाम के राजा के रूप में जन्म लिया।
7.कहते हैं कि धृतराष्ट्र का जन्म अजमेर में पृथ्वीराज के रूप में हुआ और द्रोपदी ने उनकी पुत्री के रूप में जन्म लिए था जिसका नाम वेला था।
 
 
संदर्भ : पुराण
 
 

वेबदुनिया पर पढ़ें

सम्बंधित जानकारी