कहते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला गीता का ज्ञान अर्जुन के अलावा संजय, हनुमानजी, बर्बरिक और भगवान शंकर ने सुना था। इसी के साथ इन चारों ने ही युद्ध को भी देखा था। हनुमानजी ने रथ के ऊपर बैठकर, शंकरजी ने कैलाश पर्वत पर बैठकर और संजय ने हस्तिनापुर के महल में बैठकर सुना और देखा था। इसी के साथ बर्बरिक का कटा सिर एक पहाड़ पर रख दिया था जहां से उन्होंने इस युद्ध को देखा।
1. संजय : संजय को दिव्यदृष्टि प्राप्त थी, अत: वे युद्धक्षेत्र का समस्त दृश्य महल में बैठे ही देख सकते थे। नेत्रहीन धृतराष्ट्र ने महाभारत-युद्ध का प्रत्येक अंश उनकी वाणी से सुना। धृतराष्ट्र को युद्ध का सजीव वर्णन सुनाने के लिए ही व्यास मुनि ने संजय को दिव्य दृष्टि प्रदान की थी। संजय के पिता बुनकर थे, इसलिए उन्हें सूत पुत्र माना जाता था। उनके पिता का नाम गावल्यगण था। उन्होंने महर्षि वेदव्यास से दीक्षा लेकर ब्राह्मणत्व ग्रहण किया था। अर्थात वे सूत से ब्राह्मण बन गए थे। वेदादि विद्याओं का अध्ययन करके वे धृतराष्ट्र की राजसभा के सम्मानित मंत्री भी बन गए थे।