युद्ध के अंत के बाद भीम ने दुर्योधन की जंघा उतार दी थी। वह खून में लथपथ होकर रणभूमि पर गिरा हुआ था। बस, कुछ ही समय में दम तोड़ने वाला था लेकिन भूमि पर गिरे हुए ही उसने श्रीकृष्ण की ओर देखते हुए अपने हाथ की 3 अंगुलियों को बार-बार उठाकर कुछ बताने का प्रयास किया। पीड़ा के कारण उसके मुंह से आवाज धीमी धीमी ही निकल रही थी।
ऐसे में श्रीकृष्ण उसके पास गए और कहने लगे कि क्या तुम कुछ कहना चाहते हो?
तब उसने कहा कि उसने महाभारत के युद्ध के दौरान तीन गलतियां की हैं, इन्हीं गलतियों के कारण वह युद्ध नहीं जीत सका और उसका यह हाल हुआ है। यदि वह पहले ही इन गलतियों को पहचान लेता, तो आज जीत का ताज उसके सिर होता।
श्रीकृष्ण ने विनम्रता से दुर्योधन की यह सारी बात सुनी, फिर उन्होंने उससे कहा, 'तुम्हारी हार का मुख्य कारण तुम्हारा अधर्मी व्यवहार और अपनी ही कुलवधू का वस्त्राहरण करवाना था। तुमने स्वयं अपने कर्मों से अपना भाग्य लिखा।'.... श्रीकृष्ण के कहने का तात्पर्य यह था कि तुम अपनी इन 3 गललियों के कारण नहीं हारे बल्कि तुम अधर्मी हो इसलिए हारे। यह सुनकर दुर्योधन को अपनी असली गलती का अहसास हो गया।