युद्ध में इन्द्र के समान पराक्रमी भूरिश्रवा महाभारत कुरुक्षेत्र के युद्ध में कौरवों की ओर से लड़े थे। उनके दादा का नाम बहलिका और पिता का नाम सोमदत्त था। भूरिश्रवा, बहलिका राज्य में स्थित एक छोटे से क्षेत्र का राजकुमार था। भूरिश्रवा के दादा बहलिका राजा शांतनु के बड़े भाई थे इस कारण भूरिश्रवा कुरुवंशी थे।
ऐसा भी कहा जाता है कि देवकी के स्वयंवर के समय सोमदत्त की राजकुमार सिनी से लड़ाई हुई थी। अपने मित्र वसुदेव की ओर से लड़ते हुए, सिनी ने देवकी का स्वयंवर में से अपहरण कर लिया था। इस घटना ने दो राजवंशों के बीच शत्रुता को जन्म दे दिया था।
भूरिश्रवा ने अपने भाई शल के साथ मिलकर कई योद्धाओं के साथ युद्ध किया था। शल का वध सहदेव के पुत्र श्रुतकर्मण ने किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध में उन्होंने अपने दादा और पिता के साथ भाग लिया था। वे कौरव सेना के ग्यारह सेनापतियों में से एक थे। भूरिश्रवा के रथ में यूप का चिह्न बना था। उसका ध्वज सूर्य के समान प्रकाशित होता था और उसमें चन्द्रमा का चिह्न भी दृष्टिगोचर होता था।
महाभारत युद्ध के संभवत: 13वें या 14वें दिन सात्यकि ने कौरवों के अनेक उच्च कोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, म्लेच्छों की सेना, कर्णपुत्र प्रसन आदि थे। यह देखकर भूरिश्रवा ने सात्यकि को घेर लिया। भूरिश्रवा ने इससे पहले सात्यकि के 10 पुत्रों का वध कर दिया था। इसके बाद सात्यकि भूरिश्रवा के साथ द्वन्द्व युद्ध में उलझ गया। पहले उनमें धनुर्युद्ध हुआ, फिर गदा युद्ध हुआ और अन्त में तलवार युद्ध हुआ। लड़ते-लड़ते अचानक सात्यकि के हाथ की तलवार छूट गई।
भूरिश्रवा ने उनको तलवार उठाने तक का मौका भी नहीं दिया और उनके बालों को पकड़कर उनका सिर काटने के लिए तलवार चलाई। सात्यकि अर्जुन की ओर देखने लगे। अर्जुन भी कुछ दूर से इस द्वन्द्व युद्ध को देख रहे थे। जब उन्हें सात्यकि के प्राण खतरे में लगे, तो उन्होंने शीघ्रता से एक बाण इस प्रकार छोड़ा कि भूरिश्रवा का तलवार वाला हाथ कोहनी के पास से कटकर गिर गया।
इस तरह सात्यकि की जान बच गई। हालांकि यह घटना युद्ध के नियम के विरूद्ध थी। भूरिश्रवा अर्जुन के इस हस्तक्षेप से बहुत नाराज हुआ। युद्ध के नियमों के अनुसार जब दो बराबर के योद्धा आपस में लड़ रहे हों, तो किसी तीसरे को उनके बीच में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। भूरिश्रवा इस घटना से दुखी होकर युद्ध क्षेत्र में ही आमरण अनशन पर बैठ गए। लेकिन सात्यकि ने अचानक तलवार उठाकर धरने पर निहत्थे बैठे भूरिश्रवा का सिर काट डाला।
सात्यकि को श्रेष्ठ योद्धा माना जाता था लेकिन उन्होंने क्रोध में आकर यह अत्यन्त अनुचित कार्य किया था। भूरिश्रवा का सात्यकि ने जिस तरह वध किया, उनके उस कर्म से सैनिकों ने उनका अभिनन्दन नहीं किया। लेकिन सात्यकि ने इसका जवाब दिया कि जब अभिमन्यु को मारा जा रहा था तब तुम्हारा धर्म और नियम कहां था?
महाभारत युद्ध के बाद यदुवंशियों की एक सभा में किसी बात को लेकर कृतवर्मा को बड़ा क्रोध आया और उन्होंने एक हाथ उठाकर सात्यकि का तिरस्कार करते हुए कहा, 'भूरिश्रवा की बांह कट गई थी और वे मरणांत उपवास का निर्णय कर युद्ध भूमि में बैठ गए थे, उस अवस्था में भी तुमने वीर कहलाकर भी उनकी नृशंसतापूर्वक हत्या क्यों कर दी थी? यह तो नपुंसकों जैसा कृत्य था। इस बात पर सात्यकि को क्रोध आ गया। उन्होंने तलवार से कृतवर्मा का सिर धड़ से अलग कर दिया। बात बढ़ती चली गई और इसी तरह मौसुल का युद्ध प्रारंभ हुआ जिसमें यादवों का नाश हो गया।