History Of Maharashtra Assembly Election: किसी समय बंबई प्रांत का हिस्सा रहे महाराष्ट्र राज्य का गठन 1 मई 1960 को हुआ था। सन 1962 में यहां पहली बार चुनाव हुए थे। यह चुनाव दूसरी विधानसभा के लिए था। चूंकि यशवंत राव चव्हाण बंबई प्रांत के मुख्यमंत्री थे, इसलिए राज्य बनने के बाद वे ही महाराष्ट्र के पहले मुख्यमंत्री बने। कांग्रेस नेता वसंत राव नाईक सबसे ज्यादा समय 11 वर्ष 78 दिन तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। वहीं, कांग्रेस के ही आरके सावंत 1963 में महज 10 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे। राज्य सबसे लंबे समय तक शासन भी कांग्रेस पार्टी का ही रहा। हालांकि शुरुआती दशकों में राज्य में वामपंथी विचारधारा वाले दलों का अच्छा प्रभाव रहा था।
पहला चुनाव : राज्य में 1962 में पहली बार चुनाव हुआ था। पहली बार 264 विधानसभा सीटों के लिए हुए चुनाव में कांग्रेस ने सर्वाधिक 215 सीटों पर विजय हासिल की थी। राज्य में पहले चुनाव के बाद मारुतराव कन्नमवार राज्य के मुख्यमंत्री बने। कार्यकाल के दौरान ही उनका निधन हो गया। राव के निधन के बाद पीके सावंत 10 दिन के लिए मुख्यमंत्री रहे। उनके बाद वसंत राव नाईक को मुख्यमंत्री चुना गया। इस चुनाव में पीसेंट्स एंड वर्कर्स पार्टी ऑफ इंडिया (PWPI) दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। पीडब्ल्यूपीआई के अलावा वामपंथी विचारधारा वाले 12 अन्य उम्मीदवार भी विजयी रहे थे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के भी 9 उम्मीदवार चुनाव जीते थे। 15 निर्दलीय उम्मीदवार भी 1962 में चुनाव जीते थे।
नाईक फिर बने मुख्यमंत्री : 1967 में राज्य के दूसरे विधानसभा चुनाव में सीटों की संख्या बढ़कर 270 हो गई, लेकिन कांग्रेस की सीटें घटकर 203 रह गईं। हालांकि उसे बहुमत हासिल हो गया। वसंत राव नाईक एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। नाईक महाराष्ट्र के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे। इस चुनाव में पीडब्ल्यूपीआई ने अपना प्रदर्शन सुधारते हुए 19 सीटें हासिल कीं। सीपीआई, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और आरपीआई क्रमश: 10, 8 और 5 विधानसभा सीटें जीतने में सफल रहीं।
पांच साल में तीन मुख्यमंत्री : 1972 में तीसरी बार विधानसभा चुनाव हुए कांग्रेस एक बार फिर सत्ता में आई। इस बार कांग्रेस के प्रदर्शन में सुधार हुआ और उसे 222 सीटें मिलीं। चुनाव के बाद वसंत राव नाईक फिर मुख्यमंत्री बने। नाईक 5 दिसंबर 1963 से 21 फरवरी 1975 तक राज्य के मुख्यमंत्री रहे। नाईक के बाद शंकर राव चव्हाण और उनके बाद 17 मई 1977 को वसंत दादा पाटिल मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में शिवसेना ने भी खाता खोला, उसे 1 सीट पर जीत मिली। 1966 में बालासाहब ठाकरे ने शिवसेना की स्थापना की थी। इस बार 23 निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव जीतकर आए, जो कि अब तक की सबसे बड़ी संख्या थी। पीडब्ल्यूपीआई 7 सीटों के साथ दूसरे नंबर पर तो रही, लेकिन उसकी सीटें पिछली बार की तुलना में कम हो गईं। भारतीय जनसंघ भी इस बार 5 सीटें जीतकर महाराष्ट्र के राजनीतिक पटल पर उभरा।
पवार बने पहली बार मुख्यमंत्री : आपातकाल के बाद 1978 में हुए विधानसभा चुनाव में जनसंघ को बड़ी सफलता (99 सीट) तो मिली, लेकिन सरकार नहीं बन सकी। कांग्रेस के दो धड़ों कांग्रेस (यू) और कांग्रेस (आई) ने राज्य में मिलकर सरकार बनाई। दोनों ने मिलकर 131 सीटें जीतीं। राज्य में जननायक के रूप में उभरे वसंत दादा पाटिल एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस बार उनका कार्यकाल बहुत ही संक्षिप्त रहा। वे 4 महीने तक ही मुख्यमंत्री रह पाए। 18 जुलाई 1978 को शरद पवार राज्य के मुख्यमंत्री बने। उस समय वे राज्य में सबसे कम उम्र के मुख्यमंत्री थे। मुख्यमंत्री बनने से पहले पवार पाटिल सरकार में गृहमंत्री के रूप में काम कर रहे थे। इस चुनाव में पहली बार 288 सीटों पर चुनाव हुए थे। 17 फरवरी 1980 से 8 जून 1980 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
भाजपा की एंट्री : कांग्रेस ने 1980 के विधानसभा चुनाव में तगड़ी वापसी की। कांग्रेस ने 186 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस के दूसरे धड़े कांग्रेस-यू ने 47 सीटें जीतीं। जनता पार्टी सेक्यूलर दूसरे स्थान पर रही, जबकि पहली बार चुनाव लड़ने वाली भाजपा 14 सीटें जीतकर तीसरे स्थान पर रही। 9 जून 1980 एआर अंतुले राज्य के पहले मुस्लिम मुख्यमंत्री बने। अंतुले एक साल से थोड़ा ज्यादा वक्त तक ही मुख्यमंत्री रह पाए। उनके बाद 21 जनवरी 1982 को बाबासाहेब भोसले मुख्यमंत्री बने। भोसले का कार्यकाल भी लंबा नहीं रहा। 2 फरवरी 1983 को वसंत दादा पाटिल एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने।
निलंगेकर बने मुख्यमंत्री : 7वीं विधानसभा के लिए 1985 में विधानसभा चुनाव हुए। राज्य में फिर एक बार कांग्रेस की सरकार बनी और कांग्रेस नेता शिवाजीराव पाटिल निलंगेकर राज्य के मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में कांग्रेस ने 161 सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस सेक्यूलर ने 54 सीटें जीतीं। भाजपा ने 16 सीटें जीतकर अपने प्रदर्शन में सुधार किया। जनता पार्टी ने 20 सीटों पर जीत हासिल की। इन 5 सालों में राज्य को 3 मुख्यमंत्री मिले। निलंगेकर के बाद शंकरराव चव्हाण (12 मार्च 1986) और फिर शरद पवार (26 जून 1988) राज्य के मुख्यमंत्री बने।
शिवसेना का उभार : 1990 के विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस ने सरकार तो बनाई, लेकिन वह 141 सीटों पर सिमट गई, जो कि अब तक की सबसे कम सीटें थीं। इस चुनाव की सबसे खास बात यह रही कि हिन्दुत्व की लहर पर सवार होकर बालासाहेब की शिवसेना 52 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी। भाजपा ने भी 42 सीटें जीतीं। यह चुनाव दोनों ही पार्टियों ने गठबंधन के रूप में लड़ा। जनता दल ने भी इस चुनाव में 24 सीटों पर जीत हासिल की। शरद पवार के नेतृत्व में सरकार बनी फिर 25 जून 1991 को सुधाकरराव नाईक मुख्यमंत्री बने। 6 मार्च 1993 को शरद पवार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने।
पहली बार शिवसेना-भाजपा सरकार : 1995 के विधानसभा चुनाव के बाद राज्य में पहली बार शिवसेना और भाजपा की गठबंधन सरकार बनी। 14 मार्च 1995 को मनोहर जोशी शिवसेना के पहले मुख्यमंत्री बने। बाद में 1 फरवरी 1999 को शिवसेना नेता नारायण राणे मुख्यमंत्री बने। इस चुनाव में शिवसेना ने 73 और भाजपा ने 65 सीटों पर जीत हासिल की। कांग्रेस इस चुनाव में 80 सीटों पर सिमट गई। जनता दल ने इस चुनाव में 11 सीटें जीतीं।
विलासराव देशमुख बने मुख्यमंत्री : 1999 के विधानसभा चुनाव के बाद में एक बार फिर महाराष्ट्र में कांग्रेस के नेतृत्व सरकार बनी। कांग्रेस ने सबसे ज्यादा 75 सीटें जीतीं, जबकि उसकी सहयोगी एनसीपी 58 सीटें जीतने में सफल रही। शिवसेना 69 सीटें जीतकर दूसरी सबसे बड़ी पार्टी रही। भाजपा ने इस चुनाव में 56 सीटें जीतीं। लातूर शहर से चुनाव जीते मराठा नेता विलासराव देशमुख 18 अक्टूबर 1999 को पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसी कार्यकाल में 18 जनवरी 2003 को सुशील कुमार शिंदे भी मुख्यमंत्री बने।
अशोक चव्हाण पहली बार सीएम बने : 2004 में 11वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी। विलासराव देशमुख दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। शरद पवार की एनसीपी इस चुनाव में 71 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी, जबकि कांग्रेस 69 सीटें जीतकर दूसरे स्थान पर रही। शिवसेना और भाजपा ने क्रमश: 62 और 54 सीटें जीतीं। 8 दिसंबर 2008 को कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण मुख्यमंत्री बने। विलासराव देशमुख वसंतराव नाईक के बाद दूसरे ऐसे नेता रहे जो सबसे ज्यादा समय तक मुख्यमंत्री रहे। देशमुख 7 साल 129 दिन राज्य के मुख्यमंत्री रहे।
पृथ्वीराज चव्हाण बने सीएम : 2009 में 12वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव के बाद कांग्रेस ने 82 सीटें जीतकर एक बार फिर सरकार बनाई। कांग्रेस की सहयोगी एनसीपी ने 62 सीटें जीतीं। कांग्रेस नेता अशोक चव्हाण एक बार फिर राज्य के मुख्यमंत्री बने। इसी कार्यकाल में 11 नवंबर 2010 को कांग्रेस नेता पृथ्वीराज चव्हाण को भी मुख्यमंत्री बनने का मौका मिला। इस चुनाव में भाजपा ने अपनी सहयोगी शिवसेना के मुकाबले ज्यादा सीटें जीतीं। भाजपा को 46 और शिवसेना को 44 सीटें मिलीं। इसके बाद 28 सितंबर से 30 अक्टूबर 2014 तक राज्य में राष्ट्रपति शासन रहा।
पहली बार, भाजपा सरकार : 2014 के चुनाव के बाद राज्य में पहली बार भाजपा के नेतृत्व में सरकार बनी। भाजपा नेता देवेन्द्र फडणवीस पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 5 साल का कार्यकाल भी पूरा किया। शिवसेना ने इस चुनाव में 63 सीटें जीतीं। कांग्रेस और एनसीपी क्रमश: 42 और 41 सीटों पर सिमट गईं।
उद्धव ठाकरे मुख्यमंत्री बने : 2019 के बाद भाजपा 105 सीटें जीतकर सबसे बड़े दल के रूप में उभरी, लेकिन बावजूद इसके वह सरकार नहीं बना पाई। सहयोगी दल शिवसेना के नेता उद्धव ठाकरे भाजपा से तकरार के चलते अलग हो गए। उनका दावा था कि भाजपा ने ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री रहने का वादा किया था, जिससे वह मुकर रही है। तकरार इतनी बढ़ी कि दशकों पुराना गठबंधन टूट गया और उद्धव ने कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार का गठन किया। हालांकि उद्धव 2 साल 214 दिन तक ही मुख्यमंत्री रह पाए। इसके बाद उनकी पार्टी शिवसेना टूट गई और बागी धड़े ने भाजपा के सहयोग से सरकार राज्य में बनाई और एकनाथ शिंदे मुख्यमंत्री बने। इसी कार्यकाल में चुनाव के तत्काल बाद भाजपा फडणवीस नेता 5 दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे। 12 से 23 नवंबर तक राष्ट्रपति शासन भी रहा।
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बुनियादी मुद्दों के अलावा मराठी अस्मिता, भाषा, क्षेत्रीय पहचान मुख्य चुनावी मुद्दे रहे हैं। जातिवाद और धार्मिक समीकरण भी विधानसभा चुनाव में अहम भूमिका निभाते हैं। 2024 के विधानसभा चुनाव में जाति अहम मुद्दा बनकर उभरी है। महाविकास अघाडी का सहयोगी पार्टी कांग्रेस के नेता राहुल गांधी बार-बार जाति आधारित जनगणना की मांग उठा रहे हैं। वहीं, सत्तारूढ़ महायुति को मोदी के चेहरे से उम्मीद है।
Edited by: Vrijendra Singh Jhala