Manoj Jarange Maratha Reservation movement : महाराष्ट्र में मराठा आरक्षण आंदोलन एक बार फिर सुर्खियों में है, और इसके केंद्र में हैं आंदोलनकारी नेता मनोज जरांगे पाटिल। मुंबई के आजाद मैदान में उनका अनशन 1 सितंबर 2025 को चौथे दिन में प्रवेश कर चुका है। इस आंदोलन ने न केवल सामाजिक और राजनीतिक माहौल को गरमाया है, बल्कि महायुति सरकार के दो मंत्रियों (उच्च एवं तकनीकी शिक्षा मंत्री चंद्रकांत पाटिल और मत्स्यपालन विभाग के प्रभारी नितेश राणे) को भी निशाने पर ला दिया है। जरांगे पाटिल ने इन दोनों मंत्रियों पर तीखे हमले बोले हैं, और उनकी "आपत्तिजनक" टिप्पणियों ने आंदोलन को और भड़का दिया है।
आंदोलन का पृष्ठभूमि और जरांगे की मांगें : मनोज जरांगे पाटिल लंबे समय से मराठा समुदाय के लिए अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) कोटे में आरक्षण की मांग कर रहे हैं। उनकी प्रमुख मांग है कि मराठा समुदाय को कुनबी उप-जाति के रूप में मान्यता दी जाए, जिससे उन्हें ओबीसी श्रेणी के तहत शिक्षा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिल सके। इस मांग ने महाराष्ट्र में सामाजिक और राजनीतिक तनाव को बढ़ा दिया है, क्योंकि ओबीसी समुदाय इसका विरोध कर रहा है।
जरांगे का कहना है कि मराठा समुदाय की आर्थिक और सामाजिक स्थिति को देखते हुए यह आरक्षण जरूरी है, और वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं।मुंबई के आजाद मैदान में हजारों समर्थकों के साथ जरांगे का अनशन और प्रदर्शन महाराष्ट्र की सियासत में एक बड़ा मुद्दा बन गया है। इस आंदोलन ने न केवल यातायात और सामान्य जनजीवन को प्रभावित किया है, बल्कि सरकार पर दबाव भी बढ़ा दिया है।
चंद्रकांत पाटिल और नितेश राणे: क्यों हैं निशाने पर? मनोज जरांगे पाटिल ने चंद्रकांत पाटिल और नितेश राणे पर तीखे हमले बोले हैं। दोनों मंत्रियों के बयानों को आंदोलनकारियों ने "आपत्तिजनक" माना है, जिसके चलते उन्हें आजाद मैदान से दूर रहने की सलाह दी गई है। आइए, इन दोनों मंत्रियों पर जरांगे की नाराजगी के कारणों को समझें:
चंद्रकांत पाटिल: चंद्रकांत पाटिल, जो मराठा आरक्षण पर गठित उप-समिति के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं, पर जरांगे ने गंभीर आरोप लगाए हैं। जरांगे का कहना है कि पाटिल ने मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के निर्देश पर मराठा समुदाय के लिए कुनबी जाति मान्यता प्रमाणपत्र जारी करना बंद कर दिया था। इस कदम को जरांगे ने मराठा समुदाय के हितों के खिलाफ बताया और कहा कि पाटिल को अब समुदाय के आक्रोश का सामना करने से बचना चाहिए। चंद्रकांत पाटिल ने यह भी कहा था कि सरकार ने पहले ही मराठा समुदाय को ओबीसी और ईडब्ल्यूएस कोटे में आरक्षण देने की कोशिश की थी, लेकिन जरांगे इसे स्वीकार नहीं कर रहे। इस बयान ने आंदोलनकारियों को और भड़का दिया।
नितेश राणे: नितेश राणे, जो अपने विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं, ने जरांगे पाटिल पर व्यक्तिगत हमला बोला। राणे ने जरांगे द्वारा मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस की मां के खिलाफ कथित तौर पर अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल करने की आलोचना की। उन्होंने कहा कि "जो लोग खून से मराठा हैं, वे कभी किसी की मां के खिलाफ अपशब्द नहीं कहेंगे" और जरांगे को उनकी भाषा पर ध्यान देने की चेतावनी दी। जवाब में, जरांगे ने राणे को "चिंचोन्द्रा" (छछूंदर) कहकर उनकी आलोचना की और कहा कि आंदोलन खत्म होने के बाद वे उनसे "निपट लेंगे।" जरांगे ने यह भी बताया कि उन्होंने नितेश के पिता नारायण राणे और भाई निलेश राणे से उन्हें नियंत्रित करने की अपील की थी, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ।
राजनीतिक प्रभाव और सरकार की चुनौतियांमराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र की सियासत में कई स्तरों पर प्रभाव डाला है। यह मुद्दा न केवल सामाजिक तनाव को बढ़ा रहा है, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी चुनौती बन गया है।
महायुति सरकार पर दबाव: मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा है कि उनकी सरकार ने मराठा समुदाय को पहले ही 10% आरक्षण दिया है, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी है। हालांकि, जरांगे की मांग है कि मराठों को ओबीसी कोटे में शामिल किया जाए, जिसका ओबीसी समुदाय विरोध कर रहा है। इस विरोध के कारण सरकार के लिए दोनों समुदायों को संतुष्ट करना मुश्किल हो रहा है। फडणवीस ने संवैधानिक और कानूनी ढांचे के भीतर समाधान निकालने का भरोसा दिलाया है, लेकिन जरांगे की सख्ती ने सरकार को बैकफुट पर ला दिया है।
विपक्ष का हमला: विपक्षी दल, खासकर शिवसेना (यूबीटी) और कांग्रेस, ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की है। शिवसेना (यूबीटी) नेता संजय राउत ने जरांगे के प्रदर्शन के अधिकार का समर्थन करते हुए कहा कि फडणवीस ने विधानसभा चुनाव से पहले मराठा आरक्षण का वादा किया था, जिसे अब पूरा करना चाहिए। कांग्रेस ने भी सरकार पर लोकतंत्र को दबाने का आरोप लगाया है।
ओबीसी समुदाय का विरोध: मराठा आरक्षण की मांग के खिलाफ ओबीसी समुदाय के नेता, जैसे एनसीपी के छगन भुजबल, सक्रिय हो गए हैं। भुजबल ने कहा कि मराठों को ओबीसी कोटे में शामिल करने से मौजूदा 27% ओबीसी आरक्षण कमजोर होगा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि मराठा समुदाय को पिछड़ा नहीं माना गया है।
आंदोलन का सामाजिक और क्षेत्रीय प्रभाव : मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र, खासकर मराठवाड़ा क्षेत्र (बीड, लातूर, नांदेड़, परभणी, और उस्मानाबाद), में व्यापक समर्थन हासिल किया है। हजारों लोग जरांगे के समर्थन में आजाद मैदान पहुंचे हैं, जिससे दक्षिण मुंबई में यातायात और जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ है। मुंबई पुलिस ने आंदोलन को नियंत्रित करने के लिए कड़े इंतजाम किए हैं, लेकिन जरांगे और उनके समर्थकों ने पुलिस की शर्तों (जैसे 5,000 लोगों की सीमा) को ठुकरा दिया है। बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी आंदोलन के कारण आम लोगों को हो रही परेशानी पर नाराजगी जताई है और प्रदर्शनकारियों को आजाद मैदान खाली करने का निर्देश दिया है।
मनोज जरांगे पाटिल का आंदोलन महाराष्ट्र की राजनीति में एक निर्णायक मोड़ ला सकता है। उनकी सख्ती और समर्थकों की भारी भीड़ ने सरकार पर दबाव बढ़ा दिया है। दूसरी ओर, ओबीसी समुदाय के विरोध और कानूनी बाधाओं ने इस मुद्दे को जटिल बना दिया है। जरांगे ने साफ कर दिया है कि वे तब तक पीछे नहीं हटेंगे जब तक उनकी मांगें पूरी नहीं होतीं, भले ही इसके लिए उन्हें जेल जाना पड़े या "गोली खानी पड़े।"
इस बीच, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री फडणवीस और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ इस मुद्दे पर चर्चा की है, जिससे यह संकेत मिलता है कि केंद्र सरकार भी इस मसले पर नजर रखे हुए है। शरद पवार जैसे नेताओं ने संविधान संशोधन की वकालत की है, ताकि आरक्षण की सीमा बढ़ाई जा सके।
मराठा आरक्षण आंदोलन ने महाराष्ट्र की सियासत को एक बार फिर गरमा दिया है। मनोज जरांगे पाटिल की चंद्रकांत पाटिल और नितेश राणे के खिलाफ तीखी बयानबाजी ने इस आंदोलन को व्यक्तिगत और राजनीतिक दोनों स्तरों पर और जटिल बना दिया है। जहां एक ओर जरांगे का आंदोलन मराठा समुदाय की आकांक्षाओं को आवाज दे रहा है, वहीं ओबीसी समुदाय का विरोध और कानूनी बाधाएं सरकार के लिए चुनौती बन रही हैं। इस गतिरोध का समाधान निकालना महायुति सरकार के लिए आसान नहीं होगा, खासकर तब जब आगामी विधानसभा चुनावों का दबाव भी बढ़ रहा है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या जरांगे का यह आंदोलन मराठा समुदाय के लिए आरक्षण सुनिश्चित कर पाएगा, या यह महाराष्ट्र की सामाजिक और राजनीतिक एकता को और अधिक प्रभावित करेगा।