संभवतया यह आप लोगों के लिए मेरा अंतिम भाषण है। यदि सरकार मुझे कल पदयात्रा की अनुमति भी दे देती है तब भी साबरमति नदी के पावन तट पर यह मेरा अंतिम भाषण ही होगा। हो सकता है कि इस स्थान पर यह मेरे जीवन के अंतिम शब्द हों।
मुझे जो कहना था, वह मैं आप लोगों से कल ही कह चुका हूँ। आज मैं अपनी बात केवल वहीं तक सीमित रखूंगा, कि मेरे और अन्य साथियों के गिरफ्तार होने के बाद आप लोगों को क्या करना होगा। पदयात्रा के जलालपुर जाने का कार्यक्रम यथावत् रहेगा। इस काम के लिए कार्यकर्ताओं की भर्ती सिर्फ गुजरात तक सीमित रहेगी। पिछले पखवाड़े से जो कुछ मुझे सुनने में आ रहा है, उससे मुझे यह विश्वास करने का मन हो रहा है कि नागरिक प्रतिरोध का यह प्रवाह अब अनवरत चलता रहेगा।
लेकिन हम सभी के गिरफ्तार होने के बाद किसी भी तरह से शांति भंग नहीं होनी चाहिए। हम इस बात को लेकर दृढ़ हैं कि हम अपने सभी स्रोतों का उपयोग अहिंसात्मक तरीके से करते हुए संघर्ष करेंगे। कोई भी गुस्से में गलत कदम नहीं उठाएगा। मेरी आप लोगों से यही आशा और प्रार्थना है। मुझे उम्मीद है कि मेरे ये शब्द इस भूमि के हर कोने तक पहुंच रहे होंगे।
पिछले पखवाड़े से जो कुछ मुझे सुनने में आ रहा है, उससे मुझे यह विश्वास करने का मन हो रहा है कि नागरिक प्रतिरोध का यह प्रवाह अब अनवरत चलता रहेगा। यदि मैं मिट भी गया तब भी मेरा काम पूरा हो जाएगा। इसके बाद यह कांग्रेस की कार्यसमिति के हाथ में होगा कि वह आपको राह दिखाए और यह आप पर निर्भर करेगा कि आप उसके मार्गदर्शन में काम करें। जब तक मैं जलालपुर तक नहीं पहुंच जाता तब तक किसी भी बात का उल्लंघन नहीं होना चाहिए। लेकिन मेरे गिरफ्तार होने के बाद पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस के हाथ में होगी।
कोई भी जो अहिंसा को धर्म मानता है, यहां पर बैठ सकता है। कांग्रेस के साथ मेरा समझौता मेरे गिरफ्तार होने के साथ ही समाप्त हो जाएगा। ऐसी परिस्थिति में कार्यकर्ताओं को जब जहां संभव हो नमक कानून की सविनय अवज्ञा प्रारंभ करनी होगी। इस कानून को तीन तरह से तोड़ा जा सकता है।
नमक बनाना एक अपराध है जबकि नमक बनाने की सुविधाएं उपलब्ध हैं। नमक का भंडारण और व्यापार भी अपराध है, जिसमें प्राकृतिक नमक भी शामिल है। इसके खरीददारों को भी बराबरी से अपराधी ही करार दिया जाएगा। फेरी लगाकर इस नमक को बेचना भी अपराध ही है। संक्षेप में, आप जिस तरह से चाहें, उस तरह से नमक एकाधिकार के इस कानून को तोड़ सकते हैं।
हमारे पास केवल इतना ही नहीं है। इस पर कांग्रेस की ओर से भी कोई आपत्ति नहीं है और यदि स्थानीय कार्यकर्ताओं में आत्मविश्वास है तो अन्य उपयुक्त विधियाँ भी अपनाई जा सकती हैं। मेरा पूरा जोर सिर्फ एक ही बात पर है कि स्वराज प्राप्ति की हमारी प्रतिज्ञा में सत्य और अहिंसा का पूर्ण समावेश इसी तरह बनाए रखें। बाकियों के लिए उनके हाथ स्वतंत्र हैं। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि सभी को अपने मनमाफिक जिम्मेदारी निभाने की छूट दे दी गई है।
जहां पर स्थानीय नेता हों, वहां पर उनकी आज्ञा का पालन किया जाए। जहां पर कोई नेता नहीं है, वहां पर सशक्त हाथ और कार्यक्रम पर भरोसा करने वाले कार्यकर्ता ही पर्याप्त हैं, यदि उन्हें अपने आप पर भरोसा है तो वे जो कर सकते हैं, करें। उन्हें इसका अधिकार है बल्कि यह उनका कर्तव्य है, कि वे ऐसा करें।
इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जहाँ पर व्यक्ति ने अपने आत्मविश्वास, साहस के दम पर बेहतर नेतृत्व किया है। यदि हम भी गंभीरता के साथ स्वराज हासिल करना चाहते हैं और इसे पाने के लिए अधीर हैं तो वैसा ही आत्मविश्वास हमें भी स्वयं में लाना होगा। जैसे-जैसे सरकार द्वारा की जाने वाली गिरफ्तारियों की संख्या में बढ़ोतरी होगी, वैसे ही हमारी क्रम व्यवस्था में भी विस्तार होना चाहिए और हमारे दिल मजबूत होने चाहिए।
इसके अलावा भी बहुत कुछ किया जा सकता है। शराब और विदेशी कपड़े की दुकानें बंद की जा सकती हैं। हम कर अदा करने से इंकार कर सकते हैं। वकील, वकालत करना छोड़ सकते हैं। सरकारी कर्मचारी अपनी नौकरियों से त्यागपत्र दे सकते हैं। नौकरियों से त्याग पत्र देने के बीच में नौकरी खोने का भय आ जाता है। ऐसे लोग स्वराज के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं। लेकिन यह भय कैसा? पूरे देश में सरकारी कर्मचारियों की संख्या कुछ सौ हजार से ज्यादा नहीं है। बाकियों का क्या होगा? वे कहां जाएंगे?
यहां तक कि स्वतंत्र भारत में भी हम बहुत अधिक लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकेंगे। एक कलेक्टर के पास तब उतनी संख्या में नौकर नहीं होंगे, जितने अभी होते हैं। उसे अपना नौकर खुद बनना होगा। हमारे यहाँ के लाखों गरीब लोग जिनके पास दो वक्त का खाना नहीं है, वे इस खर्च को वहन नहीं कर सकते हैं। यदि हम में संवेदनाएं हैं तो हमें सरकारी नौकरियों की तिलांजलि देनी होगी।
फिर भले ही वह न्यायाधीश का पद हो या कलेक्टर का, या एक चपरासी का। वे सभी जो सरकार को सहयोग दे रहें कर अदा कर के या बच्चों को स्कूल भेजकर या सरकारी उपाधियों को रखकर, उन्हें अपना सहयोग बंद करना होगा। औरतों को भी मर्दों के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर आगे आना होगा।
आप इसे मेरी इच्छा समझ सकते हैं। यही वह संदेश जो मैं आपको अपनी पदयात्रा या जेलयात्रा प्रारंभ करने से पूर्व देना चाहता हूँ। मेरी इच्छा है कि कल सुबह या उससे पूर्व जिस युद्ध का आरंभ हो चुका है, उसके बीच में व्यवधान न आए। यदि मैं समय से पूर्व ही गिरफ्तार कर लिया जाता हूँ तो मैं इस समाचार को सुनने के लिए उत्सुक रहूँगा कि मेरे और मेरे साथियों की टोली के गिरफ्तार होने के बाद ऐसी दस टोलियां, अपनी गिरफ्तारी देने के लिए तैयार हो गईं। यहां तक कि स्वतंत्र भारत में भी हम बहुत अधिक लोगों को सरकारी नौकरी नहीं दे सकेंगे। एक कलेक्टर के पास तब उतनी संख्या में नौकर नहीं होंगे, जितने अभी होते हैं।
मुझे विश्वास है कि भारत में ऐसे लोग हैं, जो मेरे द्वारा प्रारंभ किए गए कार्य को पूरा कर सकें। मुझे अपने कार्य के उद्देश्य में निहित भलाई और हमारे हथियारों की शुद्धता पर पूर्ण विश्वास है। और जहां साध्य शुद्ध हो, वहां ईश्वर स्वयं अपने आशीर्वाद के साथ उपस्थित रहते हैं। और जब यह तीनों एक साथ हो, तो हार असंभव है। एक सत्याग्रही चाहे वह स्वतंत्र हो या कैद में हमेशा विजयी रहता है।
वह केवल तभी पराजित हो सकता है जब वह सत्य और अहिंसा को त्याग दें और उसके कान अपने भीतर की आवाज को ना सुन सकें। ऐसी चीजें सत्याग्रही को परास्त कर सकती है, जिसका कारण सिर्फ वह स्वयं ही होता है। भगवान आप सभी की रक्षा करे और कल से प्रारंभ होने वाले संघर्ष के रास्ते की सारी बाधाओं को दूर करें।