महात्मा गांधी की 150वीं जयंती : 'गांधी 150' एक असरकारी अभियान
-प्रसून लतांत
आज महात्मा गांधी की 150वीं जयंती है। इस बार इसे अपने-अपने तरीके से मनाने की तैयारियां दिखाई दे रही हैं। ऐसा पहली बार हो रहा है कि महात्मा गांधी की 150वीं जयंती को सरकार और गांधीवादी संगठन अलग-अलग मनाएंगे, नहीं तो इसके पहले जब गांधीजी की जन्म शताब्दी 1969 में मनाई गई थी तो उसमें गांधीवादियों द्वारा बनाई गईं योजनाओं को ही सरकार ने मंजूर कर लिया था और इसके लिए उन्हें मदद मुहैया की थी। पर इस बार गांधीवादियों ने बगैर सरकारी सहयोग से लोक आधारित अभियान के रूप में गांधीजी की 150वीं जयंती मनाने का फैसला किया।
गांधीजी की जन्म शताब्दी को तो उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने की भावना से मनाया गया था लेकिन इस बार उनके विचारों को औजार और हथियार के रूप में प्रयोग लागू करने के मिजाज से मनाने की योजना है, क्योंकि इस बार गांधीजनों को लगता है कि उनके सामने एकमात्र उनके लिए, देश के लिए और पूरी मानवता के लिए गांधीजी के विचारों को जन-जन तक नहीं पहुंचाएंगे तो वे मौजूदा हालात में लील लिए जाएंगे। इसी के साथ उन्हें यह भी लगता है कि 2019 का वर्ष गांधीजी की 150वीं जयंती वर्ष ही नहीं है बल्कि आम चुनाव का भी वर्ष था। 2 अक्टूबर 2018 से 2 अक्टूबर 2019 तक यह अभियान भारत की भविष्य की राजनीति की दशा-दिशा तय होने की प्रक्रिया को भी प्रभावित करने में सहायक हो सके असका प्रयास किया गया।
'हो जन-जन के हृदय समान' की भावना से गांधीवादी संस्थाओं से जुड़ें प्रतिनिधियों, नेताओं, और कार्यकर्ताओं ने 'गांधी 150' के नाम से गांधीजी की 150वीं जयंती मनाने के लिए अपनी कोशिशें तेज कर दी गई थीं। गांधी शांति प्रतिष्ठान, गांधी स्मारक निधि, राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय और कस्तूरबा गांधी स्मृति ट्रस्ट की पहल पर लोकशक्ति को जगाने के मकसद से संस्थाओं और लोगों को जोड़कर गांधीजी के विचारों को उनकी ही रणनीति से जन-जन तक पहुंचाने की कोशिश की गई।
गांधीजी के कई टुकड़े कर दिए गए हैं अलग-अलग संस्थाओं ने, पर जयंती अभियानों के दौरान गांधीजी को पूरी समग्रता से पेश किया गया। हालांकि गांधीजी स्कूल-कॉलेजों में पाठ्यक्रम का हिस्सा हैं लेकिन उनमें गांधीजी के बारे में सतही छवि प्रचारित है। गांधीजी के बारे में फैली भ्रांतियां दूर करने के प्रयास किए गए। अभियानों में खासतौर से दलितों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को पूरे मान-सम्मान के साथ न केवल भागीदारी दी गई बल्कि उन्हें नेतृत्व भी सौंपा गया।
गांधीजी की 150वीं जयंती की शुरुआत 2 अक्टूबर 2019 से हौ रही है। सरकार अभी तक गांधीजी की स्वच्छता को अपनाकर अपने स्तर से जिस तरह से जन आंदोलन बनाने का प्रयास कर रही है, उसमें गांधीजी का चश्मा मात्र स्वच्छता तक सीमित हो गया है जबकि गांधीजी की देन में एकमात्र सफाई ही नहीं है और भी बहुत से मुद्दे हैं जिन्हें कोई महत्व देने के बजाए उन्हें गौण कर देने या उसके उलट मुद्दों को हवा देने की लगातार कोशिश की जा रही है। गांधीजनों ने महसूस किया कि गांधीजी की 150वीं जयंती वक्त के उस मोड़ पर आ रही है, जब उनके विचारों की जरूरत तीव्रता से महसूस की जा रही है।
गांधीजी के सत्य और अहिंसा के विचार न सिर्फ भारत बल्कि पूरी दुनिया के लिए व्यापक महत्व रखते हैं। जब कर्म, जाति, भाषा और राष्ट्रीयता इत्यादि के नाम पर घृणा का माहौल बन गया हो, ऐसे में इससे उबरने के लिए मानवता के सामने गांधी ही एकमात्र विकल्प हैं इसलिए हमारा प्रयास ऐसा होना चाहिए कि सामाजिक, राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शांति और सौहार्द की स्थापना की जा सके।
आज हम पर्यावरण के विघटन का भी सामना कर रहे हैं और असंतुलित विकास के कारण धन के समान वितरण की भी समस्या से जूझ रहे हैं। सभा में एक मन से इस पर चिंता जताई गई कि मानवता के नैतिक और मानवीय मूल्यों में गिरावट आती जा रही है और इसी के साथ मौजूदा समय में भारत और पूरे विश्व में व्याप्त राजनीतिक और नैतिक गिरावट के संदर्भ में यह तय किया कि हम गांधी के शांति व सौहार्द के तरीकों और सिद्धांतों पर फिर से नजर डालें।
हमें चाहिए कि अपने दशकों के अनुभव के आधार पर गांधी को हम फिर खोजें और प्रेम व अहिंसा की गतिशीलता को समझकर युवा पीढ़ी के सामने गांधी को ले जाएं। गांधी आज एक ऐतिहासिक आवश्यकता बन गए हैं और ऐसे में इस 150वीं जयंती के अवसर पर उन्हें उनके समग्र रूप में लाने की ऐतिहासिक भूमिका हम पर आई है। गांधीजी की 150वीं जयंती के कार्यक्रमों को जनसाधारण तक पहुंचाने के लिए उनके मुद्दों और समस्याओं का समाधान गांधीवादी समझ के आलोक में खोजा जाना चाहिए।
'गांधी 150वीं' का कार्यक्रम पूरी तरह जन आधारित है इसलिए सभी प्रांतों, जिलों और प्रखंड स्तरों पर इन्हीं कार्यक्रमों को किया गया जिससे लोकशाही जागें और प्रभावी हो। इस दृष्टि से लोगों तक पहुंचने के लिए सालभर में कई यात्राएं संपन्न की गई। उनमें एक तो राजघाट से नोआखाली तक की यात्रा तय हो चुकी है। इसके अलावा 4 यात्राएं अलग-अलग थीम पर शुरू की गई। इनमें पहली पोरबंदर से दिल्ली, जो गांधी को समग्रता में समझने और उनके बारे में फैली भ्रांतियों को दूर करने पर केंद्रित रही। दूसरी, यात्रा वर्धा से शुरू करने पर विचार किया जा रहा है, जो दलितों के मुद्दे पर होगी। तीसरी, चंपारण से दिल्ली की ओर यात्रा होगी, जो किसानों के सवाल पर किसानों की यात्रा होगी, जहां लाखों किसान 2 दशकों से निरंतर मालगुजारी भर रहे हैं, पर उन्हें अपनी जमीन पर खड़े नहीं होने दे रहे हैं और चौथी यात्रा सांप्रदायिकता के सवाल पर नोआखाली से दिल्ली तक करने पर सोचा जा रहा है।
यात्राओं के अलावा सालभर विभिन्न प्रांतों में गांधी पर केंद्रित प्रदर्शनी और चलचित्र प्रदर्शित किए जाएंगे। शांति, अहिंसा, सामाजिक, न्याय और सांप्रदायिक सौहार्द से जुड़े विषयों पर गोष्ठियों पर कार्यशालाओं पर सम्मेलनों का आयोजन होगा। छात्रों, युवाओं और कार्यकर्ताओं पर प्रशिक्षण शिविर होंगे। इसी के साथ महिलाओं, किसानों और मजदूरों के लिए विशेष कार्यक्रम होंगे जिसमें एक यात्रा केवल महिलाओं द्वारा महिलाओं के ही नेतृत्व में निकाली जाएगी। इनका संयोजन महिलाएं ही करेंगी ताकि स्थानीय मुद्दों के हल के लिए स्थानीय स्तर पर आंदोलन शुरू हो सके। गांधीवादी रचनात्मक कार्यक्रम पर आधारित रचना के कार्य भी किए जाएंगे। सामाजिक न्याय, शांति और सौहार्द के लिए कार्यरत संगठनों और संस्थाओं से वार्ताएं की जाएंगी।
गांधी के विचारों पर पूरी तरह केंद्रित 'गांधी 150' के आयोजनों के लिए यह तय किया गया है कि इसके लिए राष्ट्रीय समिति का एक संघीय ढांचा होगा जिसमें राष्ट्रीय स्तर की गांधीवादी संस्थाएं शामिल होंगी। इसके अलावा प्रांतीय समितियों से चुनकर आए लोग होंगे। अभी तक 3 राज्यों में प्रांतीय समितियों का गठन हो गया है और बाकी के राज्यों में फरवरी तक प्रांतीय समितियों का गठन पूरा कर लिया जाएगा। इसी के साथ अलग-अलग उपसमितियां भी होगी।
जयंती मनाने का मकसद न केवल स्मृति आयोजन या श्रद्धांजलि देना या उत्सव मनाना ही नहीं है बल्कि मानवता तक उनके शांति और अहिंसा के संदेश को ले जाने के लिए फिर से ली गई उनकी प्रतिबद्धता को भी दर्शाएगा। अभियान का लक्ष्य सत्य, अहिंसा और सामाजिक न्याय पर आधारित समाज की स्थापना होगा जिसके लिए समर्पित होकर काम करने की निष्ठा जाहिर की गई।
गांधीजी की 150वीं जयंती के मद्देनजर गांधी की शहादत के बीते 70 साल के काल का आकलन किया जा रहा है, क्योंकि इन सालों में जहां निजी दल ने गांधी का दुरुपयोग किया तो निजी दल ने उनके सांप्रदायिकता के खिलाफ दी गई कुर्बानी के महत्व कम करने की कोशिश की। उन बिंदुओं पर भी विमर्श हुआ, जहां से गांधी गायब हैं, खासकर सामाजिक न्याय के पैरोकारों के दायरे में गांधी नहीं हैं।
आज गांधी के विरुद्ध प्रतिक्रांति चल रही है। गांधीवादियों ने यह महसूस किया कि गांधी ने साम्राज्यवाद की गोलियों को निरुपाय किया। हिंसा के जरिए आजादी हासिल करने वाले की गोलियों को निरर्थक साबित किया और सांप्रदायिकता की गोली को सीने पर झेलकर कुर्बानी दी। इसीलिए गांधी को जन-जन तक पहुंचाने में अगर कुर्बानियां देने का वक्त आएगा तो इसके लिए भी वे पीछे नहीं रहेंगे।
संस्थाओं के दायरे से बाहर निकलकर गांधीजनों की आपसी एकता को मजबूत करते हुए गांधी को पूरी समग्रता के साथ पेश कर देश में लोकशक्ति को प्रभावशाली बनाने के जमीनी प्रयास किए जाएंगे। (सप्रेस)
(प्रसून लतांत वरिष्ठ पत्रकार हैं। वे पिछले 3 दशकों से देश के विभिन्न हिस्सों में रचनात्मक कार्यों के जरिए ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के लोगों के बीच सक्रिय हैं। गांधीवादी संस्थाओं से निकट होने के साथ ही वे विभिन्न संस्थाओं और आंदोलनों की गतिविधियों में लगातार जुड़े हैं।)