शहीद दिवस : आज भी गांधी के संदेश याद करने की जरूरत

तबाही से बचाएगा गांधी का रास्ता
 
- भारत डोगरा
 

 
आज दुनिया जिस तरह-तरह के संकट के दौर से गुजर रही है, उसमें महात्मा गांधी के मूल संदेश को बार-बार याद करने की जरूरत बहुत ज्यादा महसूस हो रही है। यही वजह है कि शांति आंदोलन हो या पर्यावरण आंदोलन, महिलाओं का आंदोलन हो या लोकतंत्र को मजबूत करने का आंदोलन, उनमें बार-बार हमें महात्मा गांधी के संदेश व उद्धरण सुनाई देते हैं।
 
विश्व स्तर पर गांधीजी के कुछ मूल संदेशों की इस बढ़ती मान्यता और प्रासंगिकता के बावजूद गांधीजी के अपने देश में इन्हें मूल आधार बनाकर वैकल्पिक समाज व अर्थव्यवस्था का कोई बड़ा व असरदार प्रयास आज भी नजर नहीं आता है।
 
यह सच है कि एकता परिषद ने भूमि-सुधारों के मुद्दे को जीवित रखने के लिए काफी काम किया है व आज भी इस मुद्दे पर दूर-दूर के क्षेत्रों में पदयात्रा हो रही है।
 
हिमालय क्षेत्र में चिपको आंदोलन के बाद के दौर में वन व जल-सरंक्षण का सराहनीय कार्य कुछ स्थानों पर हुआ। गांधीजी के विचारों को कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दूर-दूर के गांवों में जीवित रखा है। ख्याति व धन की चाह से दूर वे निष्ठा से अपना कार्य कर रहे हैं। हाल ही में खुदाई खिदमतगार की भारत में पुनर्स्थापना भी एक बहुत सार्थक उपलब्धि है व इससे बहुत उम्मीद है।
 
ऐसे विभिन्न प्रयासों के बावजूद कुल मिलाकर ऐसा कोई व्यापक प्रयास नजर नहीं आता है जो देश को गांधीजी की सोच से दूर ले जा रही नीतियों को चुनौती दे सके।
 
इस समय भी बहुत देर नहीं हुई है कि इस तरह की वैकल्पिक राह निकालने का व्यापक प्रयास किया जाए बल्कि इस समय तो जिस तरह का आर्थिक संकट विश्व के सबसे बड़े पूंजीवादी देशों में आया हुआ है उससे तो यह संभावना और बढ़ गई है कि विकल्पों की राह को और मजबूती से सामने रखा जा सके। अमेरिका-यूरोप के मॉडल पर आधारित विकास को चुनौती देने का इससे अनुकूल समय और नहीं हो सकता है।
 
इसके बावजूद ऐसे किसी व्यापक व असरदार प्रयास के लिए गांधीजी के विचारों से जुड़े विभिन्न संस्थानों में कोई विशेष सक्रियता नजर नहीं आ रही है। क्या इसकी वजह यह है कि ये संस्थान सरकारी अनुदानों पर बहुत निर्भर हो गए हैं? जब गांधीजी के विचारों को बहुत तोड़ा-मरोड़ा जाता है तब भी ये संस्थान चुप रहते हैं।
 
वजह जो भी हो, पर यह कष्टदायक अवश्य है कि जिस समय भूमंडलीकरण की सोच को चुनौती देने के लिए खादी व कुटीर उद्योगों को नए सिरे से सशक्त करना जरूरी है, उस समय खादी आंदोलन पहले से और कमजोर होता जा रहा है। 
 
आज दुनिया से जिस तरह जलवायु बदलाव व महाविनाशक हथियारों जैसे अभूतपूर्व संकट सामने आ रहे हैं उनके समाधान में गांधीजी के विचारों का बहुत महत्व है, अतः यह अनुकूल समय है कि गांधीजी के विचारों को व्यापक व सार्थक बदलाव के प्रयासों में समुचित महत्व का स्थान दिया जाए व इस प्रयास को आज की बड़ी चुनौतियों से जोड़ा जाए।

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