उल्लास की पतंग और रिश्तों का तिल-गुड़

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रंग-बिरंगी पतंगों से सजा दुधिया आकाश, उत्तरायण में खिलते शोख सूर्य देवता, तिल-गुड़ की भीनी महक और दान-पुण्य करने की उदार धर्मपरायणता। यह पहचान है भारत के अनूठे पर्व मकर संक्रांति की। मकर संक्रांति यानी सूर्य का दिशा परिवर्तन, मौसम परिवर्तन, हवा परिवर्तन और मन का परिवर्तन। मन का मौसम से बड़ा गहरा रिश्ता होता है। यही कारण है कि जब मौसम करवट लेता है तो मन में तरंगे उठना बड़ा स्वाभाविक है। इन तरंगों की उड़ान को ही आसमान में ऊँची उठती पतंगों के माध्यम से व्यक्त किया जाता है।

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ये पतंगे जीवन के दाँव-पेंच सिखाती है। ये पतंगे उन्नति, उमंग और उल्लास का लहराता प्रतीक है। ये पतंगे बच्चों की किलकती-चहकती खुशियों का सबब है। ये पतंगे आसमान को छू लेने का रंगों भरा हौसला देती है। ये पतंगे ही तो होती है जो सिर पर तनी मायावी छत को जी भर कर देख लेने का मौका देती है वरना रोजमर्रा के कामों में भला कहाँ फुरसत कि ऊँचे गगन को बैठकर निहारा जाए?

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पतंगों की सरसराहट से पतंगबाजों के दिल में जो हिलोल उठती है उसे अभिव्यक्त नहीं किया जा सकता उसे तो उनकी हाथों की कलाबाजियाँ और चेहरे की पुलक से ही पढ़ा जा सकता है। मकर संक्राति का दूसरा आकर्षण तिल-गुड़ की मिठास में होता है। यह प्रतीक है इस बात का कि आज से दिन तिल भर बड़ा हो रहा है। तिल की पौष्टिकता से सभी अवगत है। यही तिल बदलते मौसम से लड़ने की ताकत देता है। गुड़ की तरह रिश्ते मधुर बने हम सब चाहते हैं लेकिन अकेला गुड़ ज्यादा नहीं खाया जा सकता, यही कारण है कि तिल के साथ उसका कुशल संयोजन बैठाया जाता है। रिश्तों में भी इसी समायोजन की जरूरत है।

तीसरा आकर्षण दान और पुण्य का होता है। जो कुछ हम समाज से लेते हैं उसे किसी ना किसी माध्यम से समाज को लौटाना ही दान है। दान विनम्र बनाता है। दान यह अहसास जगाता है कि भगवान ने हमें इतना योग्य बनाया है, हम किसी के मददगार हो सकते हैं। धर्म-शास्त्र-पुराण और ग्रंथों में वर्णित नियमों को कुछ देर ना भी माने तो दान की प्रक्रिया असीम संतोष देती है बशर्ते उसमें 'मैं' का अहम भाव या अभिमान ना छुपा हो। मकर संक्रांति का पतंगों से सजा और तिल-गुड़ से महकता पर्व हम सभी के लिए, देश के लिए उन्नति और निरंतर विकास का प्रतीक बने यही रंगबिरंगी कामना है।

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