मकर संक्रांति- मस्ती का पर्व

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आसमान में उड़ती पतंगों को जब ढील दे..., ढील दे भैया... इस पतंग को ढील दे... कहते हुए जैसे ही मस्ती में आए तो फिर इस पतंग को खींच दे, लगा ले पेंच फिर से तू होने दे जंग... के कई कहकहे सुनाई पड़ने लगते हैं। यह पतंग हमें नजर को सदा ऊँची रखने की सीख देती है। यह त्योहार सिर्फ एक दिन का ही नहीं अपितु हमें जीवन भर अपनी नजरें ऊँची रखकर सम्मान के साथ जीने की सीख भी देती है।

सभी का प्यारा मकर संक्रांति यानी पतंग पर्व का नजदीक है और आसमान में उड़ने के लिए तैयार होने लगी हैं पतंगें। कहते हैं कि पतंग उड़ाने की परम्परा का इतिहास भारत और चीन में काफी पुराना है। कुछ लोग इस संबंध में कहते हैं कि चीन में इस परम्परा की शुरूआत हुई थी। लेकिन इधर भारत में रामायण काल से ही पतंग उड़ाए जाने की बात कही जाती है। इस संदर्भ में तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है :

राम इक दिन चंग उड़ाई
इंद्रलोक में पहुँची जाई'

अर्थात् भगवान राम ने अपने साथियों के साथ मिलकर पतंग उड़ाई, जो इंद्रलोक तक जा पहुँची थी। सो... पतंग का काल प्रभु श्रीराम के जमाने से चला आ रहा है।

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वर्तमान में समयानुसार पतंगबाजी में कई बदलाव आए हैं। अब परम्परानुसार कई जगहों पर मकर संक्रांति पर पतंग महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जिसमें महोत्सव समिति द्वारा खास पतंग गुरुओं को सम्मान प्रदान कर उन्हें उपहार और नकद नोटों का ‍इनाम भी दिया जाता है। इसमें भारत में बनी हुई 10 से 12 फीट की पतंगें व चीन में बनी करीब 3 फीट की चील, उल्लू, हवाई जहाज आदि आकृतियों की पतंगें भी आकर्षण का केंद्र रहती है।

रोजाना नित नए स्थान लेती ये पतंगे वर्तमान में कभी अमिताभ, तो कभी रहमान, तो कभी शाहरुख बनकर आसमाँ में उड़ती ये पतंगे सचमुच सभी का मन मोह लेती है। अब पतंग पर न केवल देवी-देवताओं, अभिनेताओं और खिलाडि़यों के चित्र बनने लगे हैं, बल्कि उन पर संदेश भी लिखे जाने लगे हैं। पतंगों पर लिखे जाने वाले संदेशों में 'पतंग उड़ाने से आँखों की रोशनी बढ़ती है', 'खुश रहो हजारों साल' आदि शामिल हैं।

जब तक मकर संक्रांति के पर्व पर पतंगबाजी का आनंद न लिया तो फिर वो मकर संक्रांति ही कैसी...।

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