बागीचा ए अतलाफ है दुनिया मेरे आगे होता है शबोरोज तमाशा मेरे आगे।
जिंदगी जैसी तवक्को थी नहीं कुछ कम है हर घड़ी होता है अहसास कुछ कम है
घर की तामीर तसव्वुर में ही हो सक...
इक चीज थी जमीर जो वापस न ला सका
लौटा तो है जरूर वो दुनिया खरीद कर।
घरों पे नाम थे नामों के साथ ओहदे थे
बहुत तलाश किया कोई आदमी न मिला।
फुटपाथ का बिस्तर है तो है ईंट का तकिया
यह नींद के यूं कौन मजे लूट रहा है
कोई शहर ऐसा भी दुनिया में बनाया जाए, जिसमें सिर्फ़ अहले-मुहब्बत को बसाया जाए - कैफ़ मुरादाबादी
ऐ मुहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया, जाने क्यों आज तेरे नाम पे रोना आया - शकील बदायूँनी
रोज़ मय पी है, तुम्हें याद किया है लेकिन, आज तुम याद न आए, ये नई बात हुई - मख़मूर सईदी
ज़ुबाँ पर बेखुदी में नाम उसका आ ही जाता है, अगर पूछे कोई ये कौन है बतला नहीं सकता।
तुमको चाहा तो ख़ता क्या है बता दो मुझको, दूसरा कोई तो अपना-सा दिखा दो मुझको - दाग़
अपने ही घर में जब न मिला इसको आसरा, आँगन में मेरे आके खड़ी हो गई है धूप - अज़ीज़ अंसारी
हाल अपने घर का कुछ ऐसा है दोस्त, छत है नीची और सिर ऊँचा है दोस्त - अज़ीज़ अंसारी