देखो पहाड़ की चोटी पर बंजारे बादलों ने डेरा डाला है कुछ बूंदें समेटने के लिए धरती ने आंचल फैलाया है। स्नेह भरा एक आंचल सूना-सा एक गांव, बंजर-सी एक धरती हमारी तकते हैं राह क्या सताते नहीं तुम्हें वो मिटटी, आंगन, अश्वत्थ की छाया अक्सर बाबा की मार से बचाती मां के आंचल की छाया कितने प्यार से मां ने तुम्हें 'अश्वत्थ' ये नाम दिया था उसके जैसे बड़े और आराध्य बनो मां ने ये वरदान दिया था मां की सूनी आंखों को अब स्नेह की बौछारों की जरुरत है गर्मी में चूल्हा फूंकती मां को तुम्हारी छांह की जरुरत है
बादलों से एक पोटली उधार लेकर आओ हम भी लौट चले, शतरंज की शह-मात छोड़कर आओ हम भी लौट चले, तुम बन जाओ माली फिर से हम फूलों से एक बाग भरे सूनी है मां की गोद कब से आओ हम आबाद करें।