ज्योति जैन
जीवन के इक्कीस वर्ष बाद, मां जानी मैंने तुम्हारी पीड़ा जब अपना अंश अपनी बिटिया अपनी बांहों में पाई मैंने। मेरे रोने पर तुम छाती से लगा लेती होगी मुझे, यह तो मुझे ज्ञात नहीं पर घुटने-कोहनी जब छिल जाते थे गिरने पर याद है मुझे तुम्हारे चेहरे की वो पीड़ा।
क्षमा कर दोगी मां, मेरी भूलों को, क्योंकि अब जान गई हूं कि बच्चे कितने ही गलत हो मां सदा ही क्षमा करती है।