उम्र के जिस पड़ाव पर मैं खड़ी हूं,
जब तुम्हें वहां से देखती हूं
सच कहती हूं
किन्तु थाम कर हाथ तुम्हारा
बहा ले जाएं कोई साथ तुम्हें भी,
आंखों में जब तुम्हारी
वो उम्मीद का तारा देखती हूं
सच कहती हूं
तब तुम मुझको मां नहीं लगती.
नमन ,वंदन, स्तवन के शब्दों से परे भी
कई शब्द होते हैं
जिन्हें सुनना चाहती हो तुम,
यह महसूस करने लगी हूं अब.
आंखों में स्नेहयुक्त
लालसा
अब तेरी वेदना-संवेदना की,
समर्पण की,स्नेह की,स्पर्शों की
भागीदारिणी हो गई हूं मैं