मन क्या है? मन कैसे खुलता है? मन का दिल से क्या रिश्ता है? कैसे मन खुलता है तो दिल भी खुलता है? वास्तव में हम जो महसूस करते हैं जैसा सोचते और विचारते हैं वह मन की अवस्था होती है। मन हमारी सोच से बनता है, हमारे विचारों से बनता है। कहते हैं जैसी हमारी सोच होती है वैसे ही हम बन जाते हैं। कई बार हमने यह भी सुना है कि वास्तव में जीवन की कोई भी समस्या बड़ी नहीं होती बल्कि उस समस्या के प्रति हमारा नजरिया उसे बड़ा बना देता है।
इसी तरह मन और दिल के बीच बड़ा महीन सा रिश्ता है। सबसे पहले हमें सोच के स्तर पर बदलना होगा और अपने दिल को बड़ा बनाना होगा। छोटी-छोटी बातें हमारे व्यक्तित्व को छोटा बनाती है। जीवन में ऊंचे लक्ष्य और उदार सोच लेकर चलें तो हमारा व्यक्तित्व भी बड़ा बनता है। लेकिन मन कभी-कभी एकतरफा सोचकर उदास हो जाता है ऐसे में उसे खिलने और खुलने के लिए जरूरी है कि अपने दिल को विशाल बनाया जाए। कोई बात हमारे दिल को चूभती है और हम मन को संकुचित कर लेते हैं लेकिन अगर दिल को मासूम बनाया जाए तो थोड़ी देर के लिए आपको दुख हो सकता है किंतु फिर आप अपने मन को सरल-तरल पानी की तरह पाते हैं।
यही बात व्यक्तित्व के अन्य बाहरी स्तर पर भी लागू होती है। हम अपनी अभिव्यक्ति को हमेशा प्रखर बनाएं। इससे हम उदार और खुले दिल के बनेंगे। हममें ना सिर्फ अपनी बात को कहने का साहस आएगा बल्कि हम इतने सहज भी बनेंगे कि दूसरों के तर्क, दूसरों के विपक्षी विचार को सुनने का भी हौसला रख सकेंगे। इस तरह मनभेद नहीं होगा चाहे मतभेद हो जाए।