मप्र में अफीम और लहसुन बन सकते हैं चुनावी मुद्दा, किसानों की नाराजगी बढ़ाएगी सत्तारूढ़ दल की मुश्किल

मुस्तफा हुसैन

बुधवार, 26 सितम्बर 2018 (17:31 IST)
संघ परिवार की नर्सरी कहे जाने वाले मालवा में चुनावी चौसर जम चुकी है। वर्तमान में इस चौसर पर सबसे महत्वपूर्ण 'किसान' है, जिसे कहते ज़रूर 'अन्नदाता' हैं, लेकिन मानता कोई नहीं।
 
हाल ही में नीमच मंडी में लहसुन एक रुपए किलो बिका तो किसान जमकर नाराज़ हुए और लहसुन फेंक गए। बोले इसमें लाने ले जाने का भाड़ा ही नहीं निकल रहा। जब व्यापारियों से बात की तो वे बोले कि सरकार ने जीएसटी लगा दिया पेट्रोल, डीज़ल के भाव आसमान पर चले गए तो मांग घट गई। जाहिर है जिंसों के भाव गिरने का मतलब किसान गड्‍ढे में और किसान गड्ढे में तो देश गड्‍ढे में।
 
मालवा दो फसलों के लिहाज़ से सबसे महत्वपूर्ण है। एक लहसुन और दूसरा अफीम। इस इलाके में किसान अफीम की खेती करता था, लेकिन सरकार की पॉलिसी ऐसी आई कि अफीम के पट्टे कम होते चले गए। कभी इस अंचल में एक लाख अफीम परिवार हुआ करते थे। जब अफीम की फसल आती थी तो बाजारों की रौनक बढ़ जाती थी। उत्सव होता था। जमकर खरीदारी करते थे लोग, लेकिन अब ऐसा नहीं होता।
 
अफीम के घटते पट्‍टों ने कारोबार की कमर तोड़ दी। डोडा चूरा की पॉलिसी ने भी किसानों का नुकसान किया। सरकार ने डोडा चूरा बेचने की बजाय जलाने का फरमान जारी कर दिया। उसके बाद बवाल आया पोस्ता दाना पर जो कभी नकद क्रॉप हुआ करती थी। एक तरफ जहां डोडा चूरा पॉलिसी में बदलाव के बाद पोस्ता भूसा नियम विलोपित हो गया तो पोस्ता कारोबारियों को एनडीपीएस का डर सताने लगा। उन्होंने भारतीय पोस्तादाना की खरीदारी बंद कर दी तो दूसरी तरफ सरकार ने चाइना और टर्की के पोस्ते के लिए भारतीय बाज़ार खोल दिए जो भारतीय पोस्तादाना 500 से 600 रुपए किलो बिकता था, उसकी तुलना में 250 से 300 रुपए किलो का चाइना और टर्की का पोस्ता नीमच, मंदसौर और जावरा मंडियों में आ गया। इस पोस्ते के आयात ने अफीम किसानों की कमर को और तोड़ दिया। 
 
जब अफीम के पट्टे कटे और एनडीपीएस के मामले बेहिसाब बनने लगे तो किसान डायवर्ट हुआ और उसने लहसुन की खेती को अपनाया, लेकिन अब लहसुन के दाम गिरने लगे। पिछले तीन साल से लहसुन किसानों को रुला रहा है। किसान को समझ नहीं पड़ रही है कि वो क्या करे और क्या न करे।
 
लगता है आगामी चुनाव में अफीम और लहसुन एक बड़ा मुद्दा होंगे। किसान नेताओं से इस मामले में सवाल पूछेंगे और जवाब भी तलब करेंगे कि आखिर हमारा कसूर क्या है? अफीम और लहसुन के कारण मालवा रिच बेल्ट माना जाता था। इसके चलते यहां खुशहाली थी, लेकिन अब मायूसी है।
 
किसान के साथ इन दोनों फसलों से जुड़े व्यापारी भी दुखी हैं क्योंकि जीएसटी, पेट्रोल-डीज़ल के ऊंचे दाम, टर्की और चाइना के पोस्ते का आयात, नया पोस्ता भूसा नियम नहीं बनना जैसे अनेकों मुद्दे हैं जिससे नीमच मंडी बेनूर हो गई इन हालातों में जब नेता किसानों और व्यापारियों के दरवाज़े जाएंगे तो सवाल तो पूछेंगे ही।

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