जेएनयू को आमतौर पर वामपंथ (Left Politics) का गढ़ माना जाता है, पिछले कई दिनों से फीस को लेकर, बोलने की आजादी को लेकर और विचारधारा की लड़ाई को लेकर जेएनयू खबरों में है, रविवार की रात में हुई मारपीट को लेकर यह एक बार फिर से चर्चा में है, लेकिन जानना दिलचस्प होगा कि तमाम विवादों और बहस के अलावा यहां लेफ्ट के अलावा निर्दलीय, फ्री थिंकर, समाजवादी और दक्षिणपंथी विचारधारा से जुड़े लोग भी छात्रसंघ (Student Union) में चुने गए हैं। इसके साथ ही कई देशी और विदेशी हस्तियां यहां से पढ़ाई कर निकली।
यहां से कौन क्या बना
निर्मला सीतारमण- विदेशमंत्री, एमए इकोनॉमिक्स
एस जयशंकर- विदेशमंत्री, पीएचडी इंटरनेशनल रिलेशन
मेनका गांधी- सांसद और पूर्व मंत्री, जर्मन भाषा
अली जैदान- लिबिया के पूर्व प्रधानमंत्री
अब्दूल सैतार मुराद- मिनिस्टर ऑफ इकोनॉमी, अफगानिस्तान
बाबूराम भट्टाराई- नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री
योगेंद्र यादव- चुनाव विशेषज्ञ, एमए
सीताराम येचुरी- सीपीआई एम नेता, एमए इकोनॉमिक्स
अहमद बिन सैफ अल नहयान- चेयरमेन, एतिहाद एयरवेज
अभिजीत बनर्जी- नोबल पुरस्कार सम्मान
आलोक जोशी- पूर्व रॉ चीफ
जेएनयू से पढ़े विपक्षी नेता
इनके अलावा राज्यसभा सांसद रहे एनसीपी के महासचिव डीपी त्रिपाठी जेएनयू स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष रहे हैं वामपंथी नेता सीताराम येचुरी यहां से इकोनॉमिक्स में एमए किया है। प्रकाश करात यहां से पढ़ चुके हैं। बसपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधींद्र भदौरिया ने भी यहीं पढ़ाई की। दलित नेता उदित राज और अशोक तंवर भी यहां पढ़ चुके हैं। स्वराज इंडिया के प्रमुख और चुनाव विशेषज्ञ योगेंद्र यादव भी यहां पढ़ चुके हैं।
ये हस्तियां भी निकली जेएनयू से
डीपी त्रिपाठी महासचिव एनसीपी, अरविदं गुप्ता, डायरेक्टर विवेकानंद फाउंडेशन, दीपक रावत आईएएस, मनू महाराज आईपीएस, संजुक्ता पाराशर आईपीएस, सुभाषिनी शंकर आईपीएस, अमिताभ कांत सीईओ नीति आयोग, सैयद आसिफ इब्राहिम पूर्व आईबी चीफ, वेणु राजमणी नीदरलैंड के राजदूत, सुधींद्र भदौरिया बसपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता, उदित राज दलित नेता और पूर्व सांसद ने भी जेएनयू से पढ़ाई की है।
क्यों है जेएनयू खास
देश की टॉप 10 यूनिवर्सिटीज में जेएनयू का नाम 3 नंबर पर आता है। देश के कई छात्र जेएनयू में एडमिशन और पढ़ाई का सपना देखते हैं।
जेएनयू यानी जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए 1969 में संसद में अधिनियम बनाया गया था, जिसे 22 दिसंबर 1966 को देश की संसद में पास किया गया।
जेएनयू सेना के उन जवानों को भी डिग्री प्रदान करता है, जो एनडीए के तहत सेना में गए थे।
इसे देश का सबसे सस्ता विश्वविद्यालय कहा जाता है क्योंकि यहां 5 रुपए में एडमिशन होता है।
सरकार हर साल जेएनयू को 244 करोड रुपए खर्च के लिए देती है।
जेएनयू में एक स्टूडेंट पर करीब 3 लाख रुपए से ज्यादा सालाना खर्च आता है।
विवाद जो जेएनयू में हुए
जेएनयू की स्थापना का उदेश्य कई विषयों पर अध्ययन और रिसर्च को लेकर हुआ था, इसके लिए यह जाना भी जाता है, लेकिन अपने विवादों के लिए भी जेएनयू लगातार चर्चा में है।
जब देशभर में दूर्गा पूजा मनाई जाती है तो ठीक इसी दौरान जेएनयू में महिषासूर दिवस मनाया जाता है, इसे लेकर भी समय-समय पर जेएनयू विवाद और बहस के केंद्र में रहा है।
साल 2010 में जब दंतेवाडा में नक्सली हमले में देश के 75 जवान शहीद हो गए तो जेएनयू में विजय दिवस मनाया गया था। इस घटना के बाद भी देश में खूब बवाल मचा।
साल 2012 में जेएनयू में बीफ फेस्टिवल मनाया गया था, जिसके बाद हाईकोर्ट ने इस फेस्टिवल पर प्रतिबंध लगा दिया था।
9 फरवरी 2016 को जेएनयू के छात्रों ने 2001 में भारतीय संसद पर हमले के दोषी अफज़ल गुरु की फांसी की तीसरी बरसी पर कार्यक्रम आयोजित किया था। इस कार्यक्रम का नाम कश्मीरी कवि आगा शाहिद अली के काव्य संग्रह ‘बिना डाक-घर वाला देश’ (जो जम्मू कश्मीर के एक हिंसक समय के बारे में है) पर रखा गया था। जिसके बाद देशभर में काफी हंगामा हुआ था।
एक अन्य कार्यक्रम के दौरान कुछ छात्रों ने, भारत की बर्बादी तक, जंग लड़ेंगे, जंग लड़ेगे/ 'कितने अफजल मारोगे, हर घर से अफजल निकलेगा' / 'पाकिस्तान जिंदाबाद' आदि भारत विरोधी नारे लगाए थे।
12 फरवरी 2016 को छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था। उस पर देशद्रोह का आरोप लगाए गए थे।
हाल ही में यहां फीस बढ़ोतरी को लेकर छात्रों ने प्रदर्शन किया था, जिसके बाद देशभर में विवाद और हंगामे हुए। रविवार की रात को एक बार फिर से जेएनयू में छात्र संगठनों के बीच मारपीट को लेकर खबर आई है।