आजकल देश और समाज में चहूंओर सोशल मीडिया का चलन बढ़ता ही जा रहा है। केवल युवा ही नहीं हर वर्ग में इसकी गहरी पैठ स्पष्ट दिखाई दे रही है। देश व समाज में सोशल मीडिया का प्रयोग सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही प्रकार से बखूबी किया जा रहा है। अब यह उपयोग करने वाले की मानसिकता पर निर्भर है कि वह किस प्रकार इस मंच का प्रयोग करता है।
कोई किसी बुजुर्ग दंपति की मदद करने हेतु उनके बहते अश्रु पोंछने के लिए उनकी छोटी सी खाने की दुकान का वीडियो बनाकर सोशल मीडिया पर साझा कर रातों-रात उनका संकटमोचक बन जाता है, तो कोई इस माध्यम का प्रयोग समाज में अराजकता फ़ैलाने के लिए अफवाह के रूप में भी कर सकता है। धर्म जगत भी सोशल मीडिया के प्रभावों से अछूता नहीं है। आज इस माध्यम से समाज में अनेक ऐसे तथ्य प्रचारित-प्रसारित किए जा रहे हैं जिनका वास्तविकता से दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है या उनकी मूल भावना प्रचारित संदेशों से भिन्न है।
ऐसा ही एक वीडियो आज ध्यानार्थ आया जिसमें हथिया नक्षत्र को लेकर एक वीडियो प्रसारित किया गया और इसके सत्य होने का दावा किया गया है। इसमें बताया गया कि 'हथिया' नक्षत्र जब आता है तो बादल हाथी की सुंड की तरह तालाबों और नदियों से पानी खींचता है।' इससे संबंधित घटना का वीडियो भी प्रसारित किया गया है। जिसमें एक जलाशय से पानी बादल की ओर वाष्पीभूत होते दिखाया भी जा रहा है।
अब बात करें इसकी सचाई और प्रामाणिकता की तो वह मैं अपने सुधि पाठकों पर छोड़ता हूं, किंतु उन्हें किसी निर्णय पर पहुंचने में सहायतार्थ कुछ कसौटियां अवश्य दे देना चाहता हूं, जिसके आधार पर वे इस वीडियो की सचाई और प्रामाणिकता की पुष्टि स्वयं कर सकेंगे। पहली बात तो मुहूर्त व ज्योतिष शास्त्र के समस्त 27 नक्षत्रों (मतांतर से अभिजित सहित 28) में 'हथिया' नामक कोई नक्षत्र नहीं है। प्रत्येक नक्षत्र में 13 अंश 20 कला होते हैं। एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं। प्रत्येक नक्षत्र 4 चरण होते हैं जिनका मान 3 अंश 20 कला होता है। अब यदि देशज भाषा अनुसार 'हथिया' नक्षत्र का साम्य ज्योतिष शास्त्र में खोजें तो वह हमें 'हस्त' नक्षत्र में मिलता है क्योंकि 'हस्त' नक्षत्र का उल्लेख हमें शास्त्रों में मिलता है।
देश के कई भागों मुख्यत: ग्रामीण क्षेत्रों में वैदिक शास्त्रों के सिद्धांतों के आधार पर देशज व लोकोक्तिनुमा कुछ सूत्र बना लिए जाते हैं जैसे 'चित्रा, स्वाति, विशाखा में मेघ गाज गरिरंग। सुख सुभिक्ष की धारणा, निर्णय शकुन प्रसंग॥' इस सूत्र में बताया गया है कि जब चित्रा, स्वाति, विशाखा नक्षत्र में बादलों की गर्जना के साथ बिजली चमकती है तो यह सुख अर्थात् अच्छी वर्षा का संकेत होता है।
दूसरा उदाहरण देखें- 'श्रीगणेश आर्द्रा रवि मेघ गाज अधिरंग। निर्णय शकुन शास्त्र का भावी समय कुरंग॥' इस सूत्रानुसार जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में हो और मेघ की गर्जना के साथ बिजली चमके तो यह आपदा का संकेत होता है।
इसी प्रकार इस प्रचलित वीडियो के साथ जो तथ्य बताया जा रहा, वह भी इसी प्रकार के किसी सूत्र का फलित है जिसका आशय इस प्रकार प्रतीत हो रहा है कि 'हस्त नक्षत्र में भीषण गर्मी के कारण जलाशयों का जल वाष्पीभूत होगा।' यहां तक तो ठीक किंतु जो घटना इसके साथ वीडियो के माध्यम से प्रचारित की जा रही है उसकी प्रामाणिकता की बात करें तो 'हस्त' जिसे हथिया बताया जा रहा है वह तो 5 मई, 1 जून, 29 जून, 26 जुलाई, 22 अगस्त, 16 अक्टूबर इन सभी दिनों में था।
शास्त्रोक्त नियम सार्वभौम होते हैं जैसे अग्नि सभी को एक जैसा ताप देती है, जल की आर्द्रता सभी को एक जैसा प्रभावित करती है। सूर्योदय, सूर्यास्त, ग्रहण का समय पंचांग के अनुसार पूरे देश में समान रूप से लागू होता है। यदि इस सूत्र के साथ हुई घटना को सत्य मानें तो यह परिणति देश के सभी जलाशयों पर एक समान रूप से लागू होनी चाहिए थी, जो कि नहीं हुई। हस्त नक्षत्र का प्रभाव तो पूरे देश में समान रूप से हुआ है पर यह तथाकथित घटना एक विशेष क्षेत्र को छोड़कर किसी अन्य राज्य के किसी भी क्षेत्र में दिखाई नहीं दी।
अब इसी प्रकार की बातों को आधार बनाकर कई तर्कशास्त्री हमारे धर्म पर प्रश्नचिह्न लगाने में सफल हो जाते हैं। मेरे देखें अपने निजी हित के लिए शास्त्रों के प्रामाणिक तथ्यों को इस प्रकार से प्रस्तुत करना सर्वथा अनुचित है। अत: पाठकगण सोशल मीडिया पर निरंतर प्रचलित हो रहे, इस प्रकार के समस्त संदेशों की प्रामाणिकता के प्रति अपने विवेक के आधार पर निर्णय करें।