यूं पूरे देश को गमजदा कर क्यूं चले गए जनरल रावत....!

ऋतुपर्ण दवे
अलविदा जनरल! किसी ने अपना भाई खोया, किसी ने भतीजा, किसी ने दोस्त तो किसी ने काबिल अफसर, देश ने प्रमुख रक्षा अध्यक्ष यानी चीफ ऑफ डिफेन्स स्टाफ (CDS) खोया तो मेरे शहडोल ने अपने दामाद और बेटी को खोया।

जैसे ही टीवी पर खबरिया चैनलों ने चल रहे कार्यक्रमों को रोका, यहां तक कि ब्रेक को खत्म कर ब्रेकिंग खबर दी कि सीडीएस बिपिन रावत उनकी पत्नी और शहडोल की बेटी मधुलिका को लेकर जा रहा देश में सबसे उन्नत हैलीकॉप्टर एमआई 17-वी-5 अपने मुकाम से बस 8-10 किमी पहले क्रैश हो गया है तो हर कोई सन्न रह गया।

पूरा देश स्तब्ध हो टीवी, सोशल मीडिया, मोबाइल पर पल-पल का अपडेट लेकर दुआओं में लग गया। विधि का विधान देखिए शाम होते-होते वह मनहूस खबर आ गई, जिसने आशंकाओं पर आखिर मुहर लगा दी।

उत्तराखण्ड के पौड़ी के द्वारीखाल ब्लॉक की ग्रामसभा बिरमोली के तोकग्राम सैणा के मूल रूप से रहने बिपिन रावत अपनी तीसरी पीढ़ी के फौजी योध्दा थे। योग्यता ने उन्हें देश का पहला सीडीएस बनाया।

16 मार्च 1958 को जन्में बिपिन रावत के पिता लक्ष्मण सिंह रावत भी लेफ्टिनेट जनरल थे। उनके दादा भी ब्रिटिश आर्मी में सूबेदार रहे। पूरे घर में फौज का अनुशासन और वातावरण था। सैन्य परिवार से होने के कारण बचपन से ही उनकी इच्छा फौज में जाने की रही। जनरल रावत की औपचारिक शिक्षा देहरादून के कैम्ब्रियन हॉल स्कूल और सेंट एडवर्ड स्कूल शिमला में हुई।

राष्ट्रीय रक्षा अकादमी, खड़कवासला और भारतीय सैन्य अकादमी, देहरादून में गए। 1978 में सेना की 11वीं गोरखा राइफल की 5वीं बटालियन से शुरू कैरियर सैना के सर्वोच्च पद सीडीएस तक पहुंचा।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय से फिलॉसफी में पीएचडी। मेरठ कॉलेज के डिफेंस स्टडीज डिर्पाटमेंट से 2011 में रोल ऑफ मीडिया इन आर्म्ड फोर्सेस विषय में पीएचडी एक अनुशासित छात्र के रूप में की। ऊंचे पदों पर रहकर भी शिक्षा के प्रति जबरदस्त लगाव और पद का जरा भी गुरूर न होना आपकी पहचान थी।

मेजर पद पर रहते हुए जनरल बिपिन रावत ने जम्मू-कश्मीर के उरी में एक कंपनी की कमान संभाली। बतौर कर्नल किबिथू में एलएसी के साथ अपनी बटालियन का नेतृत्व किया। ब्रिगेडियर पद पर पदोन्नत होकर सोपोर में राष्ट्रीय राइफल्स के 5 सेक्टर और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य के एक मिशन में बहुराष्ट्रीय ब्रिगेड की कमान संभाली जहां उन्हें दो बार फोर्स कमांडर की प्रशस्ति से सम्मानित किया गया।

जब बिपिन रावत ने डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कॉन्गो में यूनाइटेड नेशंस के नार्थ किवु ब्रिगेड का कामकाज संभाला तब यूनाइटेड नेशंस पीस-कीपिंग फोर्सेस में सब कुछ ठीक नहीं था। स्थानीयजन पीस-कीपिंग को घृणा से देखते थे और उनकी गाड़ियों पर पथराव किया करते थे। जनरल रावत ने इन सबको भांपा और नए सिरे से काम शुरू किया।

बढ़ते संघर्ष को देख टोंगा, कन्याबायोंगा, रुत्शुरु और बुनागाना जैसे फ्लैशप्वाइंट में विद्रोहियों को कुचलने और शांति लागू करने के लिए मशीनगनों और तोपों से लैस पैदल सेना के लड़ाकू वाहनों की तैनाती का आदेश दिया। उन्होंने आम लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाने के लिए हेलीकॉप्टर्स का इस्तेमाल किया। स्थानीयों के लिए ही बाद में वही आशा की किरण बने जिसने सैनिकों के लिए ताली बजाई, खुशियां मनाई, क्योंकि भारतीय हेलीकॉप्टरों ने ही विद्रोही ठिकानों पर रॉकेट दागे, जिसके कारण कॉन्गो की सेना उन्हें पीछे धकेल सकी थी। इस तरह जनरल रावत ही थे जिन्होंने स्थानीय लोगों में विश्वास जगा लिया।

उरी में 19वीं इन्फैंट्री डिवीजन के जनरल ऑफिसर कमांडिंग के रूप में जब जनरल रावत ने पदभार संभाला जब उन्हें मेजर जनरल के पद पर पदोन्नत किया गया। एक लेफ्टिनेंट जनरल के रूप में, उन्होंने पुणे में दक्षिणी सेना को संभालने से पहले दीमापुर में मुख्यालय वाली तीसरी कोर की कमान संभाली।

सेना कमांडर ग्रेड में पदोन्नत होने के बाद उन्होंने दक्षिणी कमान के जनरल ऑफिसर कमांडिंग इन चीफ का पद ग्रहण किया। थोड़े समय बाद वाइस चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ पद पर पदोन्नत हुए। 17 दिसंबर 2016 को भारत सरकार द्वारा 27 वें सेनाध्यक्ष बने।

जनरल बिपिन रावत 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक हेतु बनी योजना में भी शामिल थे, जिसमें भारतीय सेना नियंत्रण रेखा के पार पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर तक चली गई थी और इसकी निगरानी साउथ ब्लॉक से कर रहे थे। सेवा के दौरान, जनरल रावत को परम विशिष्ट सेवा पदक, उत्तम युद्ध सेवा पदक, अति विशिष्ट सेवा पदक, विशिष्ट सेवा पदक, युद्ध सेवा पदक और सेना पदक से अलंकृत किया गया।

देश के पहले सीडीएस के रूप में नियुक्त जनरल बिपिन रावत ने 1 जनवरी 2020 को सीडीएस का पदभार ग्रहण किया और दो ही वर्षों में सर्वोच्च पद पर रहते हुए यह कभी न थकने वाला योध्दा अपने मिशन के दौरान ही काल कलवित हो गया।

कोई ऐसे भी भला जाता है? एक शेर दिल इंसान देश की तीनों सेनाओं के शीर्षस्थ पद पर पहुंच इतनी जल्दी अनंत में विलीन हो जाएगा, शायद किसी ने भी नहीं सोचा था। हेलीकॉप्टर काफी नीचे उड़ते हुए धुंध में चला गया और क्रैश हो गया। सवाल तो कई हैं, जिनके जवाब देर-सबरे मिलेंगे।

शहडोल की बेटी मधुलिका का विवाह 14 अप्रेल 1986 को दिल्ली के 25 अशोका रोड में होटल कनिष्का में बड़ी धूमधाम से हुआ। बहुत ही नाजों से पली शहडोल की इस इकलौती बेटी ने कड़े फौजी अनुशासन में पति-धर्म निभाते हुए जनरल साहब का बखूबी आखिरी पल तक साथ दिया और दोनों ही अपनी दो बेटियों सहित भरा-पूरा परिवार, समाज और चाहने वालों को रोता, बिलखता छोड़ अनंत में विलीन हो गए।

मधुलिका राजघराने से हैं। उनके पिता रीवा रियासत के इलाकेदार और विधायक रहे हैं। उनके दादा भी विधायक रह चुके हैं। उनके चाचा गंभीर सिंह भी विधायक रहे हैं। मधुलिका के भाई हर्षवर्धन सिंह और जयवर्धन सिंह भी शहडोल जिले में समाजसेवा में विशिष्ट स्थान रखते हैं।

उनकी वयोवृध्द माता ज्योति प्रभा काफी सदमें हैं। शहडोल से तमाम यादें जनरल बिपिन रावत की जुड़ी हैं। आखिरी बार 2012 में आए और अब एक महीने बाद जनवरी 2022 शहडोल एक बार फिर पलक पांवड़े अपने दामाद और बेटी के स्वागत को आतुर था कि अचानक हेलीकॉप्टर का 10 किलोमीटर का बचा सफर जो उंगलियों पर गिने जाने लायक मिनटों का ही था, पूरा नहीं कर सका और क्रैश हो गया।

देश का जांबाज योध्दा, पहले प्रमुख रक्षा अध्यक्ष यानी चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बिपिन रावत अपनी पत्नी व 11 अन्य स्टाफ के साथ काल के क्रूर गाल में समा गए।

देश के साथ शहडोल की इस अपूर्णनीय क्षति में यह पहली बार दिखा जब किसी राजनेता नहीं, बल्कि फौजी की मौत पर सारा देश इस तरह गमजदा हो। सैल्यूट जनरल, सैल्यूट बहन मधुलिका और सैल्यूट सभी 11 जांबाज, जिन्होंने अपने मिशन को पूरा करते हुए देश की खातिर जान को कुर्बान कर दी।

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