पिछली बार नरेंद्र मोदी सरकार ने जब असम में एनआरसी लागू किया था तो वहां की जनता ने इसका स्वागत किया था। दरअसल भाजपा के इसी वादे पर पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा का जनाधार बढ़ा था, लेकिन अब उसी मुददे पर भाजपा का जमकर विरोध हो रहा है और वो घिरती नजर आ रही है। कहीं इसका खामियाजा भाजपा को आने वाले विधानसभा चुनावों में न भुगतना पड़े।
इस बार असम ही नहीं, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर की तस्वीर कुछ बदली हुई सी है। इस बार वहां सरकार के ताजा नागरिकता बिल के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं, आगजनी की जा रही है, ट्रेनें रोकी जा रही है। कुल मिलाकर जबरर्दस्त विरोध है। आलम यह है कि असम में आर्मी तैनात की जा रही है। हालांकि कुछ हद तक पिछली बार भी यह विवाद था कि जो असम के असल निवासी हैं, उन्हें नागरिकता की सूची से बाहर रखा गया।
तो समझने वाली बात यह है कि इस बार वहां ऐसा क्या हुआ कि असम में बिल का विरोध किया जा रहा है। दरअसल, पूरा बवाल इसलिए हो रहा है क्योंकि इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मों के प्रवासियों के लिए नागरिकता के नियम को आसान बना दिया गया है। अभी भारत की नागरिकता के लिए किसी भी व्यक्ति को भारत में कम से कम 11 साल तक रहना जरूरी था, लेकिन नए संशोधित बिल के मुताबिक इस सीमा को घटाकर 6 साल कर दिया गया है। यानी अब 6 साल पहले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के लोगों को भारत में आसानी से नागरिकता मिल सकेगी। यानी सरकार ने भारत में रह रहे प्रवासियों के लिए नागरकता आसान बना दी है।
क्या है असम और विपक्ष के तर्क?
ऐसे में विपक्ष ने इस बिल पर राजनीतिक दांव खेला है। विपक्ष का कहना है कि सरकार ने खासतौर से मुस्लिम समुदाय के लोगों को निशाना बनाया है। इससे यह बहस भी चल पड़ी है कि मुस्लिमों का क्या होगा? सरकार को इस बात के लिए जवाब देना पड़ रहा है कि मुस्लिमों को डरने और घबराने की जरूरत नहीं है। जबकि इधर असम और शेष पूर्वोत्तर के नागरिकों का तर्क है कि इस बिल से उनकी रोजी-रोटी पर सवाल खडा हो जाएगा। उनका कहना है कि इससे उनके अस्तित्व और पहचान पर भी संकट है।
आगे क्या होगा भाजपा का?
अभी पूर्वोत्तर राज्यों में बिल को लेकर विरोध जारी है। इन राज्यों में उग्र प्रर्दशन के साथ आगे चलकर शांतिपूर्वक विरोध की भी बात कही जा रही है। संसद में भी बहस चल रही है। बिल को लेकर कई विरोधाभास है, ऐसे में जिस मुद्दे पर भाजपा इन राज्यों में उभरी थी, कहीं वहीं राज्य उसे बैकफुट पर न ले आए। हालांकि मोदी सरकार को लोगों को यह समझाने में बड़ी दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा कि शरणार्थी और घुसपैठियों में क्या फर्क है? दूसरा यह भी कि खुद सरकार को यह समझने में भी दिक्कत होगी कि कौन मुस्लिम शरणार्थी है और कौन घुसपैठिया, क्योंकि कुछ लोग रोहिंग्या के समर्थन में खड़े हैं जिनका संबंध पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से नहीं है। फिलहाल इस बिल को लेकर कई विरोधाभाष है जिन्हें सभी पक्षों को समझना जरूरी है।