गुलमोहर, तुम खिलते रहना

प्रज्ञा पाठक
गुलमोहर खिलने के दिन आ गए। जब गर्मी अपने पूरे शबाब पर होती है, तब गुलमोहर भी अपनी पूरी रक्ताभा के साथ खिलता है।बचपन से ही गर्मी का मौसम मुझे खिझाता था,लेकिन गुलमोहर देखते ही मन आनंदित हो जाता था।ऐसा लगता मानो प्रकृति दुल्हन की भांति सज गई है।गुलमोहर का चटख लाल रंग दुल्हन के जोड़े की ही तो याद दिलाता है।
 
साहित्यिक समझ विकसित होने पर गुलमोहर में छिपी कुछ शिक्षाएं समझ आने लगीं।यूँ तो वसंत में कई प्रकार के फूल खिलते हैं, लेकिन गुलमोहर के लिए विशेष परिश्रम नहीं करना पड़ता।मात्र पानी ही पर्याप्त है।खाद ना भी दें,तो स्वयं ही पल्लवित हो जाता है। गुलमोहर की ये विशेषता हमें सिखाती है कि यदि साधन सीमित हों,तब भी अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और आत्मविश्वास के बल पर सफलता अर्जित की जा सकती है।
 
और देखिये,सूर्य देवता का महा आतप सहकर जो अपने सम्पूर्ण सौंदर्य में खिले,वह गुलमोहर इस सीख का भी संवाहक है कि जीवन में जब कष्टों और दुःखों की अग्नि अपने चरम स्वरुप में धधक रही हो, तब डटकर उनसे मुकाबला करते हुए अपने कर्म पर अडिग रहें।जब हम ऐसा करने में सफल हो जाते हैं, तब गुलमोहर की भांति हमारे व्यक्तित्व और कृतित्व की आभा चहुँ ओर फैल जाती है।
 
गुलमोहर के फूल प्रायः सहज ही वृक्ष से जमीन पर गिरते हैं।उनका यूँ सरलता से उपलब्ध हो जाना 'बड़ा' बनकर भी विनम्र बने रहने की शिक्षा देता है। अन्य शब्दों में कहें तो यह कि व्यक्ति शीर्ष पर पहुंचने के बाद भी जमीन से जुड़ा रहे, 'खास' बनकर भी मन और आचरण से आम रहे।
 
वैसे ये एक संवेदनशील लेखक-मन की सहज ग्राह्यता है, जिसने गुलमोहर में शिक्षा अनुभूत की।कोई जरुरी नहीं कि आप गुलमोहर को इस अर्थ में ग्रहण करें। ग्रीष्म ऋतु धीरे धीरे अपने चरम की ओर अग्रसर है। गुलमोहर भी अपने पूर्ण सौंदर्य को पाने के लिए कर्मरत है।आप दोनों का आनंद लीजिये।हाँ,जब आवश्यकता पड़े,तो तनिक अपनी अन्तर्दृष्टि जागृत कीजियेगा।आप अवश्य ही पाएंगे कि प्रकृति में बहुत कुछ प्रेरणास्पद है।

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