चीन के वुहान से मृत्यु का तांडव करने वाली यह महामारी इटली, ईरान, ब्राजील, अमेरिका सहित समूचे यूरोपीय देशों को मृत्यु की भयावहता से कंपित कर दिया।
विश्व की सारी शक्तियां बेबस, लाचार और असहाय सी हो चुकी हैं। लाशों के अम्बार लग चुके हैं जिनका कोई नहीं है। यह त्रासदी अपने में गंभीर, भयावह और सम्पूर्ण मानव जाति के अस्तित्व के लिए चुनौती लेकर आई है।
जमीन से लेकर आसमां को मुठ्ठी में भरने का स्वप्न और यत्न करने वाला मनुष्य निरीह-लाचार होकर अपने आदमयुग में जाने को विवश हो गया।
विदेशों से यात्रा कर आए हुए लोगों की लापरवाही और कोरोना के संक्रमण की व्यापकता को प्रारंभिक चरण में नजरअंदाज करने के कारण कोरोना महामारी ने सम्पूर्ण विश्व सहित भारत को अपने आगोश में ले लिया है।
होली के बाद से ही अचानक से कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या में होती बढ़ोत्तरी ने सारे देश को एक गहरा सदमा दिया। बस! सवाल यही रह गया कि काश! दिसंबर और जनवरी से ही हमने कोरोना को मात देने के कारगर कदम उठाए होते।
किन्तु वहीं दूसरी ओर देश की सरकार और प्रधानमंत्री ने जब इसे गंभीरता से लिया तो होली के अवसर से ही सामाजिक दूरी बनाए रखने की अपील की। २२ मार्च को जनता कर्फ्यू के पालन ने राष्ट्र की एकता का वह परिचय दिया जिसने यह शक्ति प्रदान की कि हम कोरोना जैसी महामारी को हराने में सफल होंगे।
यह वही ऊर्जा थी जिसने प्रधानमंत्री के द्वारा- २४ मार्च से लेकर १५ अप्रैल तक के राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन की घोषणा करने का संबल प्रदान किया जिसमें जन-जन के जीवन रक्षा का उपाय है।
यह समय समूचे विश्व पर आए उस संकट का है जिससे बचने का उपाय किसी के पास नहीं बचा है। यदि इस महामारी से कोई बचा सकता है तो सामाजिक दूरी का दृढ़संकल्प।
ऐसे में यह हमारी नैतिक और जीवनरक्षा मानें या राष्ट्ररक्षा मानें लेकिन लॉकडाउन का कठोरता के साथ पालन करना हमारी प्रथम और सर्वोपरि प्राथमिकता होनी चाहिए।
क्योंकि हमारी बाहर निकलने की लापरवाही हमारी जान पर तो आफत लाएगी ही इसके साथ ही हमारे अपनों के लिए संकट और जिस-जिस के सम्पर्क में हम आएंगे उसके जीवन के लिए सीधा खतरा है।
विश्व इतिहास में कोरोना जैसी महामारी का ऐसा विभीषक स्वरूप आज तक नहीं आया जिससे बचने का कोई उपाय नहीं सूझा हो।
ऐसा भी नहीं है कि हमारे जीवन में निराशा घर कर गई हैं, वहीं दूसरी ओर इस महामारी से निजात पाने के लिए विभिन्न मोर्चों पर सरकार, स्वास्थ्य विभाग, सुरक्षाकर्मी, मीडिया डटे हुए हैं।
लॉकडाउन की परिस्थितियों ने जिन्हें एकदम से लाचार और विवश बना दिया है, जिन लोगों के पास घर नहीं है, दैनिक रोजगार एवं जीवन यापन का कोई जरिया नहीं बचा है।
उनके प्रति सरकार की जिम्मेदारी है कि प्रत्येक स्थानों पर दिहाड़ी पर मजदूरी करने वाले, गरीब, निराश्रित लोगों के लिए भोजन, आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं की आपूर्ति सही ढंग से की जाए।
चूंकि जीवन को चलाए रखने के लिए आवश्यक हो चुका है कि जिन क्षेत्रों में होम डिलेवरी की व्यवस्था नहीं है उन सही जगहों में व्यवसाइयों से सम्पर्क कर खाद्य सामग्रियों का वितरण के लिए होम डिलेवरी करने की सुरक्षित व्यवस्था के ऐहतियातन कदम प्रशासनिक स्तर पर उठाए जाने चाहिए।
यह जरूर है कि हमने आज तक के जीवन काल में कभी भी समाज से इतनी दूरी नहीं बरती हैं, जिसकी वजह से चिंता, निराशा एवं हजारों सवाल हमारे मनोमस्तिष्क में कौंधते रहते हैं।
किन्तु इसके इतर हमारा प्रयास यही होना चाहिए कि प्रत्येक परिस्थिति में हम इस समस्या का मुकाबला करें और इसके लिए हमें करना ही क्या है? सिर्फ हमें अपने घरों में रहना है, तथा स्वास्थ्य संबधित शासन के दिशा-निर्देशों का पालन करना है।
भाग-दौड़ भरी दुनिया में लोगों के पास अपनों के लिए समय नहीं था लेकिन यदि हम सकारात्मक तौर पर लें तो यह समय अपनों के बीच बिताने का सुनहरा अवसर है।
इसलिए हम घबराएं नहीं बिल्कुल पहले जैसे उन्मुक्त होकर घर में सबके बीच समय बिताएं और अपने आवश्यक कार्यों को घर से करें।
निराशा एवं भयावहता से निजात पाने के लिए हमारे पास कई कारगर उपाय हैं जो शिक्षा क्षेत्र से जुड़े हुए हैं वे अपने अध्ययन की रफ्तार बढ़ाएं और विषयवस्तु की तैयारी करें।
इसके साथ हम धार्मिक ग्रंथों, साहित्यिक किताबों का अध्ययन करें, ईश्वर की पूजा-अर्चना करें। योग-प्राणायाम, आसन के माध्यम से शरीर को मानसिक एवं आध्यात्मिक तौर पर पुष्ट बना सकते हैं। घर के अन्दर खेले जा सकने वाले छोटे -छोटे खेल खेलें।
यह डिजिटल युग है और इस समय हम अपनी मनपसंद की चीजें इन्टरनेट से पढ़ व देख सकते हैं। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि कोरोना से सम्बंधित किसी भी चीज या अफवाह को ह्वाट्सएप्प, फेसबुक सहित अन्य माध्यमों से फैलने से रोंके। क्योंकि जो भी आधिकारिक जानकारी होगी वह समाचार चैनलों और आधिकारिक बेवसाइटों के माध्यम से हम ले सकते हैं।
अफवाहों के कारण समाज में तेजी से नकारात्मकता का प्रसार होगा जो कि अनुचित है, इसलिए यथासंभव जितना हो सके हमें सकारात्मक विषयों को ही एक-दूसरे को भेजना चाहिए।
हमारे घर परिवार के जो व्यक्ति बाहर हैं, अन्य सभी रिश्तेदारों से फोन कॉल और वीडियो कॉल कर बातचीत करें जिससे एक दूसरे के निरंतर सम्पर्क में रह सकेंगे साथ ही किसी भी तरह की मानसिक चिंता को समाप्त करने में सक्षम हो पाएंगे।
यह हम सबको पता है कि यह संकट की घड़ी है किन्तु इस संकट से लड़ने की शक्ति भी हम में ही है। अतएव हमें संकल्पित होना होगा कि हम अपने घरों में ही रहेंगे और सुरक्षित रहेंगे।
यदि जनमानस लॉकडाउन एवं शासन के समस्त दिशा-निर्देशों का पालन करने में सफल होंगे तो यह भी निश्चित मानिए कि हम कोरोना के संक्रमण की यह चेन इन इक्कीस दिनों के अन्दर समाप्त करने में विजय हासिल कर पाएंगे!!
यह सत्य है कि दु:ख के बाद सुख आता है तथा परिस्थितियां समयानुसार परिवर्तित होती हैं इसलिए वह कल निश्चित तौर पर आएगा जब सारी स्थितियां पहले के जैसी सामान्य और विधिवत तरीके से संचालित होने लगेंगी।
इसलिए सकारात्मकता, आत्मानुशासन, धैर्य, संबल एवं संकल्प की प्रतिबद्धता के साथ कोरोना जैसी महामारी को हराने के लिए हमें बिना किसी घबराहट के तैयार होना होगा, क्योंकि आज की इस प्रतिबद्धता में ही हमारा कल सुरक्षित एवं भविष्य उज्जवल होगा!!