चीन के नापाक इरादों पर दोहरा प्रहार जरूरी

सुनील चौरसिया
बुधवार, 24 जून 2020 (15:26 IST)
यह सही ही कहा गया है कि 'नरमी उतनी ही बरतो, जितनी जरूरी हो अन्यथा समस्या विकराल हो जाती है और समस्या तत्काल नहीं सुलझाई तो बाद में यह नासूर बन जाती है'। इस तरह देखा जाए तो भारत पूरे विश्व में 'शांतिदूत' के नाम से पहचाना जाता है। भारतीय संस्कृति द्वारा अपने पड़ोसियों के साथ मिल-जूलकर रहने की मंशा जगजाहिर है, परंतु हमेशा ही पड़ोसियों ने इसका फायदा उठाया और धोखा देकर हिन्दुस्तान के साथ छलावा करता रहा है।
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वर्तमान में लद्दाख स्थित गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच हुई हिंसक झड़प में भारत के कई जांबाज सिपाही शहीद हो गए, जो कि अत्यंत दु:खद और निंदनीय घटना है। चीन द्वारा भारतीय सेनाओं पर किया गया कायरतापूर्ण बर्ताव यह बताता है कि पड़ोसी देशों को भारतीय शांति रास नहीं आती और यही कारण है कि भारत को विचलित करने हेतु 'अशांतिप्रिय देश' चीन और पाकिस्तान हमेशा भारत के समक्ष नई-नई समस्याओं को खड़ा करने से बाज नहीं आते। धोखा देना इनकी आदत है और इन देशों द्वारा हमारी विनम्रता को हमेशा कायरता में परिवर्तित करने का प्रयास किया जाता रहा है।
 
अब भारत को यह अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि चीन कभी भी भारत का दोस्त नहीं रहा है और न ही कभी भविष्य में रहेगा। दरअसल, चीन विश्व में भारत की बढ़ती हुई लोकप्रियता और तरक्की से भी बौखलाया हुआ है। वह यह भी महसूस कर रहा है कि यदि भारत को उलझाया नहीं गया तो यह देश एक दिन चीन के समकक्ष आ खड़ा होगा।
 
चीन की हमेशा से यही रणनीति रही है कि शांतिप्रिय देश में अशांति और अस्थिरता पैदा की जाए ताकि भारत विश्व में अपनी सुदृढ़ स्थिति को कायम न कर सके। समय-समय पर हिन्दुस्तान में अशांति और अस्थिरता फैलाने के उद्देश्य से पाकिस्तान को भी भारत के खिलाफ उकसाने का काम करता रहा है, साथ-ही-साथ अपना भौगोलिक क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए सीमा रेखा पर उल्लंघन करना इसकी आदत आम बात हो गई है। विनम्रता के कारण हम अपने में ही सिमटते जा रहे हैं और क्रूरता करके वह हमेशा भारत में पसरने का जुगाड़ लगाता रहा है।
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हिन्दुस्तान को सन् 1962 के भारत-चीन युद्ध से सीख लेने की जरूरत है, क्योंकि उस समय वहां के प्रधानमंत्री चाऊ-एन-लाई ने 'हिन्दी-चीनी, भाई-भाई' का नारा दिया और चुपके से भारत पर आक्रमण करने का आदेश भी दे दिया। चीन की मित्रतापूर्वक बातों पर विश्वास करना खुद अपने पैरों पर कुल्हारी मारने जैसी बात है। वह भारत के लिए कभी भी भरोसे लायक देश न था, न है और न कभी रहेगा।
चीन भी इस बात को भली-भांति समझता है कि अब भारत की स्थिति सन् 1962 जैसी नहीं है। समय के साथ-साथ भारतीय सेना भी पहले से अधिक मजबूत एवं ताकतवर बन गई है। फिर भी वह भारत पर अपना झूठा रौब कायम करना चाहता है ताकि भारतीय नेतृत्व चीन से लड़ने की हिम्मत न जुटा पाए। यही कारण है कि वह भारत की विनम्रता को कायरता साबित करने के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है। यह कभी पाकिस्तान के साथ मिलकर हिन्दुस्तान में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए तो कभी भारतीय नस्ल को आपस में लड़ाकर कमजोर करने का प्रयास करता रहा है।
 
दरअसल, चीन कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया की आंखों की किरकिरी बना हुआ है और दुनिया का ध्यान दुसरी जगह भटकाना चाहता है। संभवत: उसकी ओर से भारतीय सीमा पर विवाद को बढ़ावा देकर पूरी दुनिया का ध्यान कोरोना से हटाकर भारत-चीन युद्ध की ओर लगाने का हो सकता है। पिछले दिनों भारतीय सेना के साथ चीन का जो व्यवहार हुआ, वह बेहद निंदनीय और बेहूदापन से अभिप्रेत है। भारत के लिए भी इसका मुंहतोड़ जवाब देना जरूरी हो गया है ताकि भविष्य में वे इस तरह की हरकतों से बाज आ सके।
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यदि युद्ध होता है तो दोनों ही देशों को गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे, लेकिन भारत द्वारा एकतरफा शांति की पहल करना भविष्य में दु:खद परिणाम को बढ़ावा देने जैसा होगा। आज तक भारत अपने पड़ोसी देशों के साथ मिलकर रहने की जरूरत को समझता रहा है, परंतु जब पड़ोसी देश भारत को तबाह और बर्बाद करने की मंशा से आंख दिखलाए तो हिन्दुस्तान का भी कर्तव्य बनता है कि वह अपने दुश्मनों को करारा जवाब देने में कोई कमी न करे। अपनी ओर से लड़ाई को बढ़ावा मत दो, परंतु जब कोई जान-बूझकर लड़ाई करने पर उतारू हो जाए तो फिर उसे छोड़ो भी नहीं।
 
आज चीन के लिए भारत एक बहुत बड़ा व्यापारिक क्षेत्र बना हुआ है, अत: आज की जरूरत है कि हम चीनी सामानों का जितना ज्यादा हो सके, कम से कम उपयोग करें और धीरे-धीरे अपनी आत्मनिर्भरता के लिए आवश्यक प्रयास करते रहें ताकि अपना देश हर तरह की जरूरत के सामानों को खुद निर्मित करने के काबिल बन सके। जब हम आत्मनिर्भर बन जाएंगे तब हमारी आत्मनिर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए मील का पत्थर साबित होगी और हम संपन्नता की ओर अपनी कदम मजबूती के साथ बढ़ा सकेंगे।
 
अत: भारत द्वारा चीन पर दोहरा प्रहार (आर्थिक और सैनिक दृष्टि से) किए जाने की सख्त आवश्यकता है। इस रणनीति से ही चीन और पाकिस्तान को पछाड़ा जा सकता है। साथ ही देश की एकता और अखंडता पर भी विचार किया जाना चाहिए ताकि हमारे देश की फूटनीति खत्म हो सके एवं एक सशक्त देश के रूप में भारत का निर्माण हो सके।

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