गांधी-150 : वैचारिक क्रांति एवं रचनात्मक कार्यक्रम का उत्सव

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-डॉ. कश्मीर उप्पल
 
हमारे उपभोक्तावादी समाज का अर्थ केवल उपभोग करने वाला समाज ही नहीं, वरन एक कायर समाज भी होता गया है। किशन पटनायक कहते थे कि 'दुनिया में मनुष्य समूहों का इतने बड़े पैमाने पर शोषण कभी नहीं हुआ था, जो 19वीं और 20वीं सदी में हुआ था तथा 21वीं सदी में होने वाला है। आज इसे होता हम देख रहे हैं। इसका कारण भी बताया कि 'गुलामी में एक सुरक्षा है। अनुकरण और निर्भरता में भी एक सुरक्षा है- खासकर बौद्धिक निर्भरता में। इसीलिए इसकी लत लग जाती है। जो लोग, व्यक्ति या समूह लंबे समय तक गुलाम बने रहते हैं, उनके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आ जाता है। ज्यादा समय तक गुलाम रहने वाले देशों और कम समय तक या न के बराबर गुलाम रहने वाले देशों के चरित्र में एक भिन्नता होती है।'
 
आज देश के वातावरण में हमारे भय का कारण अपना समाज नहीं, सरकार है, अधिकारी हैं और भय का पर्याय बना दिए गए कानून हैं। हमारे देश के लेखकों, पत्रकारों और समाजसेवियों की असामान्य हत्याओं को असहाय होकर देखने को हम अभिशप्त हैं।
 
नेल्सन मंडेला ने अमेरिकी पत्रिका 'टाइम' में प्रकाशित एक लेख में लिखा था कि 'जब औपनिवेशिक मनुष्य ने सोचना छोड़ दिया था और उसके समर्थ होने का अहसास लुप्त हो चुका था, गांधी ने उसे सोचना सिखाया और उसके सामर्थ्य के अहसास को पुनर्जीवित किया।'
 
आज देश के अंधकारपूर्ण वातावरण में एक रोशनी दिखाई देती है। वह रोशनी है गांधी विचार और कर्म की। यदि आज महात्मा गांधी होते तो 150 साल के होते। उन्हीं की याद में देश की 3 शीर्षस्थ संस्थाओं- गांधी स्मारक निधि, गांधी शांति प्रतिष्ठान और राष्ट्रीय गांधी संग्रहालय ने महात्मा गांधी की 150वीं जन्म-जयंती को एक वैचारिक क्रांति के तौर पर मनाए जाने का निर्णय लिया है और गांधी के सुझाए रचनात्मक कार्यक्रमों को पुन: देश के सम्मुख रखे जाने की रणनीति बनाई है।
 
गांधी-150 के इस महत्वपूर्ण आयोजन एवं संयोजन के लिए राष्ट्रीय विमर्श के बाद प्रादेशिक स्तर पर सम्मेलन आयोजित किए गए। इन सम्मेलनों से प्राप्त सुझावों, सम्मतियों के आधार पर एक राष्ट्रीय संयोजन समिति का गठन किया गया। नवगठित गांधी : 150 की राष्ट्रीय संयोजन समिति की पहली बैठक पिछले दिनों 23-24 जून को गांधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में संपन्न हुई। इस बैठक को देश के विभिन्न भागों से आए प्रतिनिधियों के साथ ही प्रमुख गांधीवादी विचारकों, लेखकों, संपादकों आदि ने संबोधित किया। यह स्मरणीय है कि सन्‌ 1995 में गांधी-125 के आयोजन में भी गांधी विचार की संस्थाओं ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उस वक्त तत्कालीन केंद्र और राज्य सरकारों का इस आयोजन में पर्याप्त सहयोग मिला था।
 
वर्तमान सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों एवं माहौल को ध्यान में रखते हुए गांधी-150 जयंती महत्वपूर्ण अवसर के रूप में देश के समक्ष उपस्थित हो रही है। वरिष्ठ गांधी विचारक, चिंतक एवं गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष रामचन्द्र राही ने अपने वक्तव्य में कहा कि देशभक्ति में हिंसा का कोई स्थान नहीं है। हमें देश में सत्याग्रह की शक्ति पैदा करनी है। गांधी की ताकत लोक, सत्य और अहिंसा से बनती है। गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत ने अपने प्रारंभिक वक्तव्य में कहा कि हमारे सामने गांधी के अलावा कोई विकल्प नहीं है। गांधी हमारी तलवार भी हैं और ढाल भी। हमारी लड़ाई सांप्रदायिकता, जातीयता और स्वयं से भी है। यह समय हमारे लिखने, बोलने और चलने का समय है।
 
वरिष्ठ लेखक एवं विचारक अरविंद मोहन ने अपनी बात रखते हुए कहा कि इस समय हमारे देश की आर्थिक नीतियों का सूत्रधार अमेरिका है और उसके संचालक दिल्ली में बैठे हैं। हमें इस समय सांप्रदायिकता को मुद्दा नहीं बनाना चाहिए, क्योंकि उसका फायदा वर्तमान सत्ता को होगा।
 
प्रसिद्ध लेखक अशोक वाजपेयी ने कहा कि हम गांधी से सबसे दूर पहुंच चुके देश में गांधी-150 मना रहे हैं। 4 साल पहले देश की स्थिति अच्छी नहीं, तो खराब भी नहीं थी। भारतीय परंपरा में सांप्रदायिकता नहीं है। इस समय हिन्दू को कट्टर हिन्दू, मुसलमान को कट्टर मुसलमान और ईसाई को कट्टर ईसाई बनाया जा रहा है। इसी प्रकार लेखकों, पत्रकारों और समाजसेवियों के साथ कई घटनाएं हो चुकी हैं।
 
प्रसिद्ध पत्रकार-संपादक ओम थानवी ने कहा कि राजनीतिक दल गांधी के नाम का दुरुपयोग कर रहे हैं। देश के आम लोगों में गुस्सा है, पर उन्हें नेतृत्व देने वाला कोई नहीं है। गांधी के सिद्धांतों के आधार पर विरोध और प्रतिरोध हो, पर रस्म-अदायगी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने सलाह दी कि देश में कहीं भी तनाव बढे, तो गांधीवादी समूह को वहां जाना चाहिए। राष्ट्रीय समिति की इस बैठक को सुकन्या भरतराम और डॉ. पीसी गांधी ने भी संबोधित किया। राष्ट्रीय संयोजन बैठक में तिब्बती लामा, जो धर्मशाला से पधारे थे, ने कहा कि तिब्बत में बुद्ध के साथ गांधी को भी याद किया जाता है। गांधी का सत्याग्रह का सिद्धांत तिब्बत में लोकप्रिय है।
 
गांधी-150 के आयोजन के लिए राष्ट्रीय समिति और प्रांतीय समितियां गठित की गई है और कई राज्यों में इसके गठन की प्रक्रिया जारी है। राष्ट्रीय स्तर पर गांधीजनों के एक कार्यकारी समूह का गठन किया जा रहा है, वहीं साहित्य निर्माण समिति, प्रेस-मीडिया समिति, कोष-निर्माण, युवा एवं महिला, कार्यक्रम समिति, अंतरराष्ट्रीय समिति का गठन किया गया।
 
राष्ट्रीय समिति की इस बैठक में जाने-माने गांधी विचारक एसएन सुब्बाराव ने कहा कि कार्यकर्ता निर्माण सबसे बड़ा काम है। इस हेतु गांधी-विचार शिविर लगाए जाने चाहिए। लेखक विजय प्रताप ने कहा कि स्थानीय इतिहास लिखा जाना चाहिए। दलित और आदिवासी समाज आजकल समाज की मुख्य धारा से कट रहा है, उसे जोड़ना चाहिए। हरित-स्वराज्य समिति बनाकर पर्यावरण संरक्षण के कार्यक्रम भी चलने चाहिए। संदीप जोशी ने सुझाव दिया कि चम्पारण आंदोलन की तरह देश के सभी राज्यों के किसानों की समस्याओं का दस्तावेजीकरण हो। इस बैठक में देशभर से पहुंचे राष्ट्रीय संयोजन समिति के सदस्यों ने भी अपने सुझाव दिए।
 
इस बैठक के अंत में रामचन्द्र राही ने कहा कि हमें ऐसे रचनात्मक कार्यक्रम नहीं चाहिए, जो यथास्थितिवाद को मजबूत करते हों। समाज परिवर्तन के काम को ही मजबूत करना रचनात्मक कार्यक्रम है। हमें गांधी-150 के अवसर पर यह अच्छी तरह समझ लेना होगा कि गांधी कोई दैवीय शक्ति प्राप्त पुरुष नहीं थे। उन्होंने अपनी पूरी ईमानदारी, निष्ठा और समझ के साथ अन्याय सहने वाले समाज में जीवंतता और प्रतिरोध की शक्ति पैदा की थी। आज के संदर्भ में गांधी का 'हिन्द-स्वराज' का यह संदेश समकालीन बन जाता है- 'पहले लोगों को पीट-पीटकर गुलाम बनाया जाता था तथा आज लोगों को पैसे और भोग का लालच देकर गुलाम बनाया जाता है।' आज भी हमारा देश हमें पुकार रहा है, परंतु हम प्रतिदिन अपनी और अपने परिवार की पुकार में देश की पुकार को अनसुना कर देते हैं। हम मानने लगे हैं कि देश में यह होता ही रहता है। यही गांधी मार्ग और हमारे मार्ग में अंतर है। गांधी के सपनों से हमारे सपने कितने अधिक व्यक्तिगत होते चले गए हैं, इसका हमें कभी अहसास होता नहीं है। (सप्रेस)
 
(डॉ. कश्मीर उप्पल शासकीय महात्मा गांधी स्मृति स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटारसी से सेवानिवृत्त प्राध्यापक हैं।)

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